हल्दीघाटी के सारे योद्धा एक साथ - Maharana Pratap Smarak Udaipur in Hindi

हल्दीघाटी के सारे योद्धा एक साथ - Maharana Pratap Smarak Udaipur in Hindi, इसमें उदयपुर की मोती मगरी पर महाराणा प्रताप स्मारक के बारे में बताया है।

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उदयपुर के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में एक ऐसा दर्शनीय स्थल भी है जहाँ जाने पर मन गौरव से भर जाता है और ह्रदय में देश प्रेम जाग उठता है। यह स्थल एक पहाड़ी है जिसे मोती मगरी के नाम से जाना जाता है।

मोती मगरी पर महाराणा प्रताप का प्रसिद्ध स्मारक बना हुआ है जिसे महाराणा भगवंत सिंह मेवाड़ ने 70 के दशक में विकसित करवाया था।

यह स्मारक महाराणा प्रताप और मुगल शहंशाह अकबर की सेना के बीच हुए विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी के युद्ध को श्रद्धांजलि देने के साथ उन सभी प्रमुख शूरवीरों की यादगार है जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए लड़े गए इस युद्ध में भाग लिया था।

मोती मगरी पर महाराणा प्रताप की चेतक पर बैठी हुई प्रतिमा के साथ-साथ के अलग-अलग स्थलों पर उनके सहयोगियों भीलूराणा पूंजा, झाला मान, दानवीर भामाशाह और सेनापति हकीम खाँ सूर की कांस्य प्रतिमाएँ लगी हुई हैं।

मोती मगरी का महाराणा प्रताप के स्मारक के साथ-साथ ऐतिहासिक रूप से भी बड़ा महत्व है। मोती मगरी ही वह जगह है जिस पर उदयपुर को बसाने वाले महाराणा उदय सिंह का सबसे पहला निवास था। इस निवास के प्रमाण आज भी यहाँ पर स्थित मोती महल के खंडहरों के रूप में मौजूद है।

प्रताप स्मारक मोती मगरी विशेषता एवं यात्रा - Pratap Smarak Moti Magri Speciality and Tour


मुख्य प्रवेश द्वार से टिकट लेकर अन्दर जाने के बाद पहाड़ी पर ऊपर चढ़ना होता है। ऊपर जाने के लिए सीढ़ियों से पैदल या फिर सड़क के जरिये व्हीकल से जाया जा सकता है।

पहाड़ी पर दूर-दूर कई टूरिस्ट पॉइंट्स बने हुए हैं जिन्हें देखने के लिए पैदल के बजाये आपको अपने व्हीकल से जाना चाहिए ताकि आप आसानी से सभी पॉइंट्स देख पाएँ।

पहाड़ी पर बने टूरिस्ट पॉइंट्स में भामाशाह स्टेचू, भामाशाह पार्क, मोती महल, फ़तेह सागर व्यू पॉइंट, हकीम खाँ सूरी स्टेचू, महाराणा प्रताप मुख्य समारक, वीर भवन, भीलू राणा पूंजा स्टेचू, झालामान स्टेचू और ईगल (सनसेट पॉइंट) शामिल हैं।

भामाशाह स्टेचू - Bhamashah Statue


भामाशाह स्टेचू (Bhamashah Statue), दानवीर भामाशाह का है जिन्होंने हल्दीघाटी के युद्ध में भाग लेने के साथ-साथ युद्ध के पश्चात संघर्ष जारी रखने के लिए अपनी सारी संपत्ति महाराणा प्रताप को भेंट कर दी थी। भामाशाह स्टेचू के पास भामाशाह पार्क बना हुआ है।

भीलू राणा पूंजा स्टेचू - Bhilu Rana Punja Statue


भीलू राणा पूंजा स्टेचू (Bhilu Rana Punja Statue), भीलों के सरदार राणा पूंजा (भीलू राणा) का है जिन्होंने हल्दीघाटी के युद्ध में अपनी भील सेना के साथ महाराणा प्रताप का साथ दिया। युद्ध के पश्चात भी ये गुरिल्ला युद्ध प्रणाली से मुगलों की सेना से लड़ते रहे।

राणा पूंजा के इस अविस्मरणीय योगदान की वजह से आज भी इन्हें मेवाड़ के राज्य चिन्ह में महाराणा प्रताप के साथ स्थान मिला हुआ है।

झालामान स्टेचू - Jhalaman Statue


झालामान स्टेचू (Jhalaman Statue), बड़ी सादड़ी के मानसिंह का है जिनकी सात पीढ़ियाँ मेवाड़ के लिए अपने प्राणों का बलिदान देती रही। इनके पुरखों का बलिदान राणा सांगा के समय सेनापति अज्जाजी से शुरू होकर अगली सात पीढ़ियों तक गया।

हल्दीघाटी के युद्ध में इन्होंने महाराणा प्रताप को बचाने के लिए उनकी जगह मेवाड़ के राज्य चिन्ह धारण करके युद्ध किया।


इस युद्ध में झालामान वीरगति को प्राप्त हुए थे। झाला मान को झाला मन्नाजी (Mannaji) और झाला बीदाजी (Bidaji) के नाम से भी जाना जाता है।

हकीम खाँ सूरी स्टेचू - Hakim Khan Suri Statue


हकीम खाँ सूरी स्टेचू (Hakim Khan Suri Statue), महाराणा प्रताप के सेनापति और मेवाड़ के शस्त्रागार (मायरा) के प्रमुख हकीम खाँ सूरी का है।

ये इकलौते मुस्लिम सरदार थे जिन्होंने महाराणा प्रताप की तरफ से हल्दीघाटी के युद्ध में भाग लेकर अपने प्राणों का बलिदान दिया था।

इनका स्टेचू देखकर लगता है कि ये पहाड़ी के एक निर्जन से छोर पर बना हुआ है जहाँ पर आसानी से जाना मुमकिन नहीं है।

मोती महल - Moti Mahal


मोती महल (Moti Mahal) के खंडहरों में देखने का अधिक कुछ नहीं है लेकिन इनका ऐतिहासिक महत्व है। महाराणा उदय सिंह द्वारा निर्मित ये महल वो जगह है जहाँ से उदयपुर की शुरुआत हुई थी।

यहाँ पर रहते-रहते ही पिछोला के किनारे पर उदयपुर शहर को बसाने की प्लानिंग की गई थी।

महाराणा प्रताप स्मारक - Maharana Pratap Memorial


मोती महल के पास ही महाराणा प्रताप का मुख्य स्मारक है। मुख्य स्मारक के सामने एक बड़ा तिरंगा हमेशा लहराता रहता है।

मुख्य स्मारक एक चौड़े पक्के फर्श पर बना हुआ है। मुख्य स्मारक पर महाराणा प्रताप की घोड़े पर बैठी हुई कांस्य की 11 फीट ऊँची और 7 टन वजनी प्रतिमा है। प्रतिमा के निचले गुम्बद पर हल्दीघाटी के युद्ध का चित्रण किया हुआ है।

वीर भवन संग्रहालय - Veer Bhawan Museum


वीर भवन (Veer Bhawan Museum) एक संग्रहालय है जिसके सामने हल्दीघाटी के युद्ध के लिए प्रस्थान करते हुए महाराणा प्रताप और उनके सेनानायकों की प्रतिमाएँ बनी हुई है।

इस संग्रहालय में कई पुरानी पेंटिंग्स के द्वारा मेवाड़ का इतिहास, चित्तौड़गढ़ का मॉडल, हल्दीघाटी युद्ध भूमि का मॉडल, कुम्भलगढ़ का मॉडल, उदयपुर के सिटी पैलेस का मॉडल, शस्त्र दीर्घा, हल्दीघाटी की पवित्र मिट्टी के साथ महाराणा प्रताप के जीवन का विवरण मौजूद है।

फ़तेह सागर व्यू पॉइंट - Fateh Sagar Lake View Point


फ़तेह सागर व्यू पॉइंट (Fateh Sagar Lake View Point) से पूरी फतेहसागर झील नजर आती है। यहाँ से ढलते सूरज को भी देखा जा सकता है। मोती मगरी पर कुछ पार्क भी बने हुए हैं। शाम के समय यहाँ पर लाइट एंड साउंड शो का आयोजन भी होता है।

प्रताप स्मारक मोती मगरी कैसे पहुँचें? - How to reach Pratap Smarak Moti Magri?


मोती मगरी की लोकेशन के बारे में अगर बात की जाये तो यह फतेहसागर झील के किनारे पर स्थित एक पहाड़ी है जिसे मोती मगरी के साथ-साथ पर्ल हिल (Pearl Hill) के नाम से भी जाना जाता है।

उदयपुर रेलवे स्टेशन से महाराणा प्रताप स्मारक की दूरी लगभग 6 किलोमीटर है। यहाँ पर जाने के लिए कार या बाइक का उपयोग किया जा सकता है।

इस तरह हम कह सकते हैं कि मोती मगरी पर बना हुआ प्रताप स्मारक दर्शनीय स्थल होने के साथ साथ एक ऐसा स्थल है जहाँ पर मेवाड़ के उन स्वाभिमानी शूरवीरों को नमन करने का अवसर मिलता है जिन्होंने अपने स्वाभिमान और स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया।

जब भी आपको उदयपुर जाने का मौका मिले तो आपको मोती मगरी पर स्थित इस गौरव स्थल पर अवश्य जाना चाहिए।

प्रताप स्मारक मोती मगरी की मैप लोकेशन - Map Location of Pratap Smarak Moti Magri



प्रताप स्मारक मोती मगरी का वीडियो - Video of Pratap Smarak Moti Magri



प्रताप स्मारक मोती मगरी की फोटो - Photos of Pratap Smarak Moti Magri


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लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
रमेश शर्मा

मेरा नाम रमेश शर्मा है। मुझे पुरानी ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना, इनके इतिहास के बारे में जानना और प्रकृति के करीब रहना बहुत पसंद है। जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं इनसे मिलने के लिए घर से निकल जाता हूँ। जिन धरोहरों को देखना मुझे पसंद है उनमें प्राचीन किले, महल, बावड़ियाँ, मंदिर, छतरियाँ, पहाड़, झील, नदियाँ आदि प्रमुख हैं। जिन धरोहरों को मैं देखता हूँ, उन्हें ब्लॉग और वीडियो के माध्यम से आप तक भी पहुँचाता हूँ ताकि आप भी मेरे अनुभव से थोड़ा बहुत लाभ उठा सकें।

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