यहाँ हुई महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की मृत्यु - Chetak Samadhi Haldighati in Hindi

यहाँ हुई महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की मृत्यु - Chetak Samadhi Haldighati in Hindi, इसमें महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की समाधि की जानकारी है।

Chetak Samadhi Haldighati in Hindi 11

{tocify} $title={Table of Contents}

आपने राजा महाराजाओं, साधू महात्माओं की कई समाधियाँ बनी हुई जरूर देखी होगी लेकिन क्या आपने कभी किसी जानवर की समाधि बनी हुई देखी है?

जब हम इस समाधि पर जाते हैं और हमें उस जानवर की मृत्यु के कारण का पता चलता है तो हमारा मन उसके प्रति श्रद्धा से भर जाता है।

आप सोच रहे होंगे कि ये कौन सा जानवर है?, लेकिन अगर आपको बताया जाये कि इस जानवर का सम्बन्ध महाराणा प्रताप से है तो आप तुरंत पहचान जायेंगे कि हम महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के बारे में बात कर रहे हैं।

जी हाँ, ये वही चेतक है जिसने एक पाँव से घायल होने के बावजूद हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप को अपनी पीठ पर बैठाकर 20 फीट के नाले को एक छलांग में पार कर के महाराणा प्रताप को सेफ जगह पर पहुँचाया।

महाराणा को नाले के दूसरी तरफ सुरक्षित पहुँचाने के बाद इसने एक इमली के पेड़ के पास अपने प्राण त्याग दिए। इस इमली के पेड़ को खोड़ी इमली के नाम से जाना जाता है।

बाद में महाराणा प्रताप ने खुद अपनी निगरानी में महादेव के मंदिर के बगल में चेतक की समाधि को बनवाया।

वर्तमान में यह समाधि, हल्दीघाटी की युद्ध भूमि से लगभग एक-डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर बलीचा नाम की जगह पर बनी हुई है। इसे चेतक समाधि के साथ-साथ चेतक स्मारक या चेतक चबूतरा के नाम से भी जाना जाता है।

प्रवेश द्वार से प्रवेश करते ही सामने की तरफ एक ऊँचे चबूतरे पर यह समाधि बनी हुई है। समाधि एक छतरी के रूप में बनी हुई है।


छतरी के अन्दर स्मारक पत्थर पर चारों ओर चार प्रतिमाएँ बनी हुई है जिनमें महाराणा प्रताप को पूजा करते हुए और चेतक की सवारी करते हुए दिखाया गया है।

समाधि स्थल के बगल में नीचे की तरफ महाराणा प्रताप के समय का शिव मंदिर बना हुआ है। महाराणा प्रताप इस शिव मंदिर में पूजा अर्चना करके भोलेनाथ का आशीर्वाद लिया करते थे।

यह शिव मंदिर आज भी अपने स्थान पर उसी तरह अडिग खड़ा है जिस तरह से ये महाराणा प्रताप के टाइम पर था। मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार भी हुआ है इस वजह से इसकी प्राचीनता का अंदाजा नहीं लग पाता।

मंदिर के बाहर नंदी की प्रतिमा को देखकर मंदिर के लगभग पाँच सौ वर्ष पुराने होने का अंदाजा बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है।

चेतक समाधि के पास में देखने के लिए चेतक नाला और महाराणा प्रताप राष्ट्रीय स्मारक है। समाधि के सामने पहाड़ी पर महाराणा प्रताप राष्ट्रीय स्मारक बना हुआ है।

महाराणा प्रताप स्मारक पर बाइक या कार से जाया जा सकता है। पहाड़ी पर ऊपर चढ़ते समय रास्ते में लेफ्ट साइड में चेतक नाले का रास्ता है। यह 22 फीट चौड़ा वही नाला है जिसे चेतक ने एक जम्प में क्रॉस किया था।

ऊपर पहाड़ी पर महाराणा प्रताप राष्ट्रीय स्मारक पर चेतक पर बैठे हुए महाराणा प्रताप की बड़ी प्रतिमा बनी हुई है। महाराणा प्रताप की ज्यादातर प्रतिमाएँ चेतक के ऊपर बैठे हुए की ही मिलती है।

महाराणा प्रताप का मरते दम तक साथ देकर इतिहास में चेतक ऐसा अमर हुआ, कि आज जब भी कहीं महाराणा प्रताप का नाम आता है तो उनके साथ चेतक का नाम जरूर आता है।

इस स्मारक का लोकार्पण वर्ष 2009 में हुआ था। इस जगह से चारों तरफ दूर-दूर तक सुन्दर दृश्य दिखाई देता है। चारों तरफ जंगल ही जंगल दिखाई देता है।

अगर आप हल्दीघाटी जा रहे हैं तो आपको चेतक और महाराणा प्रताप के इन स्मारकों पर जरूर जाना चाहिए।

चेतक स्मारक की मैप लोकेशन - Map Location of Chetak Smarak



चेतक स्मारक का वीडियो - Video of Chetak Smarak




चेतक स्मारक की फोटो - Photos of Chetak Smarak


Chetak Samadhi Haldighati in Hindi 1

Chetak Samadhi Haldighati in Hindi 2

Chetak Samadhi Haldighati in Hindi 3

Chetak Samadhi Haldighati in Hindi 4

Chetak Samadhi Haldighati in Hindi 5

Chetak Samadhi Haldighati in Hindi 6

Chetak Samadhi Haldighati in Hindi 7

Chetak Samadhi Haldighati in Hindi 8

Chetak Samadhi Haldighati in Hindi 9

Chetak Samadhi Haldighati in Hindi 10

Chetak Samadhi Haldighati in Hindi 12

लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

सोशल मीडिया पर हमसे जुड़ें (Connect With Us on Social Media)

हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें
हमें फेसबुकएक्स और इंस्टाग्राम पर फॉलो करें
हमारा व्हाट्सएप चैनल और टेलीग्राम चैनल फॉलो करें

डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
रमेश शर्मा

मेरा नाम रमेश शर्मा है। मुझे पुरानी ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना, इनके इतिहास के बारे में जानना और प्रकृति के करीब रहना बहुत पसंद है। जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं इनसे मिलने के लिए घर से निकल जाता हूँ। जिन धरोहरों को देखना मुझे पसंद है उनमें प्राचीन किले, महल, बावड़ियाँ, मंदिर, छतरियाँ, पहाड़, झील, नदियाँ आदि प्रमुख हैं। जिन धरोहरों को मैं देखता हूँ, उन्हें ब्लॉग और वीडियो के माध्यम से आप तक भी पहुँचाता हूँ ताकि आप भी मेरे अनुभव से थोड़ा बहुत लाभ उठा सकें।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने