इन महलों में रहे थे महाराणा प्रताप - Palace and Cenotaph of Maharana Pratap in Hindi

इन महलों में रहे थे महाराणा प्रताप - Palace and Cenotaph of Maharana Pratap in Hindi, इसमें चावंड में महाराणा प्रताप के महल, छतरी आदि की जानकारी है।

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हम सभी जानते हैं कि वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का लगभग पूरा जीवन मुगल शासक अकबर से संघर्ष करते हुए बीता था। इस संघर्ष में उनकी शक्ति का केंद्र कभी कुंभलगढ़ रहा तो कभी गोगुन्दा।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाराणा प्रताप के जीवन के अंतिम 12 वर्ष यानी 1585 ईस्वी से लेकर 1597 ईस्वी तक का समय बिना किसी युद्ध के शांति के साथ गुजरा था।

जी हाँ, महाराणा प्रताप ने 1585 ईस्वी तक मुगलों से युद्ध करके लगभग पूरे मेवाड़ को वापस अपने अधिकार में ले लिया था।

इसके बाद 1585 ईस्वी में महाराणा प्रताप ने चावंड को अपनी राजधानी बना लिया और अपनी अंतिम साँस तक यहीं रहे। महाराणा प्रताप के समय में यहीं पर ही रागमाला जैसी मशहूर चावंड चित्र शैली का जन्म हुआ।

आज हम चावंड का भ्रमण करके महाराणा प्रताप के महल, चामुंडा माता के मंदिर के साथ उस जगह को भी जानेंगे जहाँ पर महाराणा प्रताप का दाह संस्कार किया गया था।

तो चलते हैं चावंड और देखते हैं महाराणा प्रताप से जुड़ी हुई इन धरोहरों को। आइए शुरू करते हैं।

महाराणा प्रताप का किला (महल) - Maharana Pratap's Fort (Palace)


गरगल नदी के किनारे पर पहाड़ों के बीच बसा हुआ चावंड कस्बा महाराणा प्रताप की अंतिम राजधानी रहा है। इस कस्बे में गरगल नदी के पास एक पहाड़ी पर महाराणा प्रताप के किले के अवशेष आज भी दिखाई देते हैं।

ये वही किला है जिसमें महाराणा प्रताप ने अपना अंतिम समय गुजारा था। इसी किले के अंदर कुँवर अमरसिंह का राज्याभिषेक हुआ और वो मेवाड़ के महाराणा बने।

सड़क पर मुख्य प्रवेश द्वार से अंदर जाने पर सामने ही थोड़ी ऊँचाई पर महाराणा प्रताप का किला दिखाई देता है।

इस किले तक पैदल ही जाना पड़ता है। ऊपर जाने पर किले का दरवाजा दिखाई देता है जिसमें से अंदर जाने पर महलों के अवशेष दिखाई देते हैं।

सीढ़ियों से ऊपर जाने पर महलों की छोटी-छोटी टूटी फूटी दीवारें दिखाई देती हैं। इन दीवारों को देखकर ऐसा लगता है कि किसी समय पर यह काफी बड़ा महल रहा होगा।

महल की दीवारें और फर्श जगह-जगह से टूटी फूटी हालत में है। आपको इस पर घूमते समय सावधानी रखनी है क्योंकि जिस फर्श पर आप घूम रहे हैं वो ग्राउन्ड फ्लोर नहीं है।

यह फर्श ऊपरी मंजिलों का है और इसके नीचे कुछ मंजिलें और बनी हुई है। इन निचली मंजिलों में जाने के सभी रास्ते अब बंद कर दिए गए हैं।


महल के चारों तरफ बहुत से खंडहर नजर आते हैं। ये खंडहर शायद उस समय के सामंतों और दूसरे प्रभावशाली व्यक्तियों के निवास स्थान होंगे।

महल के आस पास जगह-जगह पर दरवाजों और कंगूरों के निकले हुए पत्थर बिखरे पड़े हैं। वैसे पुरातत्व विभाग द्वारा किले में जीर्णोद्धार करवाया गया है।

महाराणा प्रताप के किले (महल) का इतिहास - History of Maharana Pratap's Fort (Palace)


महाराणा प्रताप के इस किले में रहने की वजह से इसे प्रतापी किला कहा जाता है लेकिन मूल रूप से इस किले का निर्माण छप्पनिया राठौड़ वंश ने करवाया था।

महाराणा प्रताप के समय चावंड का यह क्षेत्र छप्पन यानी 56 इलाकों के समूह कहलाता था। महाराणा प्रताप ने सरदार लूणा चावण्डिया राठौड़ को हराकर इस किले पर कब्जा किया था।

महाराणा प्रताप का स्मारक - Memorial of Maharana Pratap


महाराणा प्रताप के महलों के थोड़ा सा आगे ऊपर पहाड़ी पर महाराणा प्रताप का स्मारक बना हुआ है। स्मारक थोड़ी ऊँचाई पर बना हुआ है जिस पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई है।

ऊपर एक परकोटे से घिरे हुए बगीचे के बीच में महाराणा प्रताप और उनके चार प्रमुख सामंतों की प्रतिमाएँ बनी हुई है।

ये सभी वही वीर योद्धा हैं जिन्होंने हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मुगल सेना से संघर्ष किया था।

इन चारों वीरों के नाम झाला मानसिंह, राणा पुंजा, भामाशाह और हकीम खाँ सूर हैं। इन सबसे ऊपर महाराणा प्रताप अपने हाथ में भाला थामे खड़े हैं।

ये जगह काफी ऊँचाई पर है। यहाँ से चारों तरफ कई किलोमीटर दूर तक का नजारा साफ-साफ दिखाई देता है।

चामुंडा माता का मंदिर - Chamunda Mata Temple


महाराणा प्रताप के किले के पास ही चामुंडा माता का वह मंदिर बना हुआ है जहाँ कभी महाराणा प्रताप पूजा अर्चना के लिए जाया करते थे।

यहाँ पर जाने के लिए किले के बगल से रास्ता बना हुआ है। कस्बे के अंदर मुख्य सड़क पर चामुंडा माता के मंदिर में जाने के लिए तोरण द्वार बना हुआ है।

आप चाहें तो चामुंडा माता के दर्शन करने के बाद महल और स्मारक देख सकते हैं क्योंकि ये तीनों जगह पास-पास ही है और आपस में जुड़ी हुई है।

चामुंडा माता का मंदिर अब अपने पुराने स्वरूप में नजर नहीं आता है। मंदिर के बाहर सफेद रंग का ऑयल पैंट करने से इसकी मौलिकता खो गई है।

मंदिर के बाहर माता के आगे शीश झुकाए महाराणा प्रताप की बड़ी प्रतिमा लगी हुई है। महाराणा प्रताप की यह प्रतिमा इतनी जीवंत है कि ऐसा लगता है जैसे खुद महाराणा प्रताप माता के आगे शीश झुका रहे हैं।

मंदिर के अंदर चामुंडा माता की बड़ी मनमोहक प्रतिमा स्थापित है। महाराणा प्रताप इसी प्रतिमा की पूजा अर्चना किया करते थे।

मंदिर के सामने का दरवाजा सीधा महाराणा प्रताप के महलों तक जाता है। आप यहाँ से महाराणा प्रताप के महल देखने जा सकते हैं।

चामुंडा माता के मंदिर का इतिहास - History of Chamunda Mata Temple


ऐतिहासिक रूप से ऐसा कहा जाता है कि यह चामुंडा माता का यह मंदिर महाराणा प्रताप के चावंड पर अधिकार करने से पहले का बना हुआ है।

महाराणा प्रताप ने चावंड पर अधिकार करने के बाद चामुंडा माता के इस पुराने मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था।

महाराणा प्रताप की छतरी (समाधि स्थल) - Maharana Pratap's Chhatri (Mausoleum)


विक्रम संवत 1653 यानी 19 जनवरी 1597 को माघ शुक्ल एकादशी के दिन धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते समय अंदरुनी चोट लग जाने की वजह से महाराणा प्रताप का देहांत हो गया।

चावंड के महल से लगभग दो किलोमीटर दूर बन्डोली गाँव में तीन नदियों के संगम स्थल पर केजड़ झील के बीच में महाराणा प्रताप का दाह संस्कार किया गया।

महाराणा प्रताप के साथ माधो कँवर और रण कँवर सती हुई। केजड़ झील के बीच में दाह संस्कार स्थल पर महाराणा अमर सिंह ने 8 खम्भों की छतरी का निर्माण करवाया।

महाराणा प्रताप की समाधि के रूप में मौजूद यह छतरी आज भी लोगों की श्रद्धा का केंद्र बनी हुई है। वर्तमान में इस जगह को प्रताप सागर त्रिवेणी संगम के नाम से जाना जाता है।

केजड़ झील के बीचों बीच एक टापू पर एक बड़ा बगीचा बना हुआ है जिसके बीच में महाराणा प्रताप की छतरी बनी हुई है। बगीचे के किनारों पर सात और छतरियाँ बनी हुई है।

समाधि स्थल के मुख्य द्वार से टापू पर छतरी तक जाने के लिए एक पुल बना हुआ है जिसे महाराणा प्रताप सेतु कहा जाता है। इस पुल पर पैदल चलकर महाराणा प्रताप की छतरी तक जाना होता है।

समाधि स्थल तक जाने के लिए सड़क, पुल, बगीचा और इसकी सातों छतरियों का निर्माण वर्ष 1997 में राजस्थान सरकार ने करवाया था।

तीन नदियों का संगम होने की वजह से केजड़ झील को बड़ा पवित्र माना जाता है। महाराणा प्रताप का समाधि स्थल होने के साथ-साथ यह जगह पर्यटन के हिसाब से भी काफी बेहतरीन जगह है।

झील के बीचों बीच बगीचा और बगीचे तक जाने के लिए बना हुआ पुल फोटोग्राफी और घूमने के लिए भी एक उपयुक्त स्थान है।

वैसे अब राजस्थान सरकार मेवाड़ कॉम्पलेक्स योजना के तहत महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों के विकास के लिए कई कार्य करवा रही है।

इसी योजना के तहत चावंड में लगभग 5 करोड़ रुपये की लागत से महाराणा प्रताप पैनोरमा बनाने की घोषणा की है जिसमें महाराणा प्रताप के जीवन संघर्ष को दर्शाया जाएगा।

चावंड में महाराणा प्रताप के महल और समाधि स्थल पर कैसे जाएँ? - How to visit the palace and mausoleum of Maharana Pratap in Chavand?


उदयपुर से चावंड मे स्थित महाराणा प्रताप के किले की दूरी लगभग 60 किलोमीटर है। सड़क मार्ग से यहाँ पर जाने के दो रास्ते हैं। आप उदयपुर से ऋषभदेव या उदयपुर से सलूम्बर मार्ग के जरिये जा सकते हैं।

अगर आप उदयपुर से ऋषभदेव वाले रास्ते से चावंड जा रहे हैं तो आपको परसाद (Parsad) से पहले लेफ्ट टर्न लेकर परसाद चावंड रोड से चावंड जाना होगा।

अगर आप उदयपुर से सलूम्बर वाले रास्ते से चावंड जा रहे हैं तो आपको पलोदरा (Palodara) से आगे राइट टर्न लेकर चावंड जाना होगा।

चावंड में महाराणा प्रताप के महल, चामुंडा माता का मंदिर और स्मारक तीनों पास-पास ही हैं। इन तीनों को देखने के बाद आप बंडोली में महाराणा प्रताप की समाधि देखने के लिए जा सकते हैं।

महाराणा प्रताप के महल से महाराणा प्रताप की समाधि की दूरी लगभग ढाई किलोमीटर है। यह समाधि चावंड-केजड़ रोड पर केजड़ झील में बनी हुई है।

इस रोड पर लगभग डेढ़ किलोमीटर आगे जाने पर लेफ्ट साइड में समाधि स्थल का गेट आता है। इस गेट में से अंदर जाने पर समाधि स्थल आता है।

जब भी आपको उदयपुर जाने का मौका मिले तो वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप से जुड़ी इन धरोहरों को देखने जरूर जाना चाहिए।

तो आज बस इतना ही, उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। ऐसी ही नई-नई जानकारियों के लिए हमसे जुड़े रहें।

जल्दी ही फिर मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ। तब तक के लिए धन्यवाद, नमस्कार।

महाराणा प्रताप के महल की मैप लोकेशन - Map location of Maharana Pratap's palace



महाराणा प्रताप के महल का वीडियो - Video of Maharana Pratap's palace



महाराणा प्रताप के महल की फोटो - Photos of Maharana Pratap's palace


Chamunda Mata Mandir Chawand 1

Chamunda Mata Mandir Chawand 2

Chamunda Mata Mandir Chawand 3

Chamunda Mata Mandir Chawand 4

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Maharana Pratap Chhatri Kejad Lake 1

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Maharana Pratap Chhatri Kejad Lake 3

Maharana Pratap Chhatri Kejad Lake 4

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लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
Ramesh Sharma

My name is Ramesh Sharma. I am a registered pharmacist. I am a Pharmacy Professional having M Pharm (Pharmaceutics). I also have MSc (Computer Science), MA (History), PGDCA and CHMS. Being a healthcare professional, I want to educate people so I write blog articles related to healthcare system. I am creator so I write articles and create videos on various topics such as physical, mental, social and spiritual health, lifestyle, eating habits, home remedies, diseases and medicines to provide health education to people for their healthy life. Usually, I travel at hidden historical heritages to feel the glory of our history. I also travel at various beautiful travel destinations to feel the beauty of nature.

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