ये भगवान बिजनेस पार्टनर बनकर लेते हैं हिस्सा - Sanwaliya Seth Mandphiya Chittorgarh in Hindi

ये भगवान बिजनेस पार्टनर बनकर लेते हैं हिस्सा - Sanwaliya Seth Mandphiya Chittorgarh in Hindi, इसमें चित्तौड़ के तीनों साँवलियाजी मंदिरों की जानकारी है।

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भगवान कृष्ण के अनेक रूपों में सांवलिया सेठ का रूप अनोखा है। ऐसा माना जाता है कि नानी बाई का मायरा भरने के लिए इन्होंने सांवलिया सेठ का रूप धरा था।

चूँकि भगवान का यह रूप एक व्यापारी का था इसलिए इनकी ख्याति व्यापार जगत में काफी फैली और अनेक व्यापारी अपने व्यापार को बढाने के लिए इन्हें अपना पार्टनर बनाने लगे।

ये व्यापारी अपने व्यापार में हुए लाभ का एक निश्चित हिस्सा प्रतिवर्ष सांवलिया सेठ के मंदिर में भेंट करते हैं। वर्षों से यह परंपरा चलती आ रही है।

मंदिर के दान पात्रों में प्रतिवर्ष करोड़ों रुपयों का दान इसका प्रमाण है। कई बार तो मंदिर में लोग गाड़ियाँ और अन्य वस्तुएँ भी भेंट स्वरूप छोड़ जाते हैं।

चित्तौड़गढ़ जिले में सांवलिया सेठ के तीन मंदिर स्थित हैं जो कि आपस में लगभग दस किलोमीटर के क्षेत्र में स्थित है। इनमें से दो मंदिर भादसोड़ा गाँव में एवं एक मण्डफिया गाँव में स्थित है।

तीनों मंदिरों में सांवलियाजी की भव्य प्रतिमाएँ विराजित हैं। ये तीनों प्रतिमाएँ भादसोड़ा ग्राम में जमीन से खुदाई में एक साथ प्राप्त हुई थी। तीनों प्रतिमाओं की स्थापना से सांवलियाजी के तीन मंदिरों का निर्माण हुआ।

जिस स्थान से मूर्तियाँ प्राप्त हुई थी उस स्थान पर प्राकट्य स्थल मंदिर का निर्माण हुआ। दूसरा मंदिर राजपरिवार द्वारा भादसोड़ा ग्राम में बनवाया गया जिसे प्राचीन मंदिर के नाम से जाना जाता है। तीसरा मंदिर मण्डफिया में स्थित है।

इन तीनों मंदिरों में से मण्डफिया के सांवलिया सेठ का मंदिर सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इसे सांवलिया धाम के नाम से जाना जाता है। वैष्णव भक्तों की संख्या के हिसाब से यह मंदिर नाथद्वारा के श्रीनाथजी मंदिर के बाद दूसरे स्थान पर आता है।

सांवलियाजी का मंदिर आधुनिक शिल्प और वास्तु कला का अनुपम उदाहरण है। मंदिर परिसर 22500 वर्गफीट में फैला हुआ है। पूरा परिसर आपस में पत्थर से पत्थर को जोड़कर बनाया गया है।

सांवलिया सेठ का मुख्य मंदिर 250 फीट लंबा व 90 फीट चौड़ा है। मंदिर की छत स्तंभों पर टिकी हुई है जिनमें 42 पूर्ण और 44 अपूर्ण हैं। मुख्य शिखर की ऊँचाई 121 फीट है जिस पर स्वर्ण कलश लगा हुआ है।

गर्भगृह के बाहर 1765 वर्गफीट क्षेत्रफल का सभा मंडप बना हुआ है जिसके बीचो-बीच एक ही पत्थर से निर्मित 6 टन वजनी गुमठ बना हुआ है। कारीगरों की भाषा में इसे पत्थर की चाबी कहते हैं।

सांवलिया सेठ मंदिर इतिहास - Sanwaliya Seth Mandir History


सांवलिया सेठ का संबंध मीरा बाई से भी बताया जाता है। जनश्रुतियों के अनुसार मीरा बाई जिन गिरधर गोपाल की मूर्ति की पूजा किया करती थी वो सांवलिया सेठ की ही मूर्ति हैं।

मीरा बाई संत महात्माओं के साथ एक जगह से दूसरी जगह घूमती रहती थी। मीरा बाई के पश्चात ये मूर्तियाँ दयाराम नामक संत के पास उनकी धरोहर के रूप में थी।

जब औरंगजेब की मुगल सेना मंदिर तोड़ते-तोड़ते मेवाड़ पहुँची तो संत दयाराम ने इन मूर्तियों को बागुंड-भादसौड़ा की छापर (खुला मैदान) में एक वट-वृक्ष के नीचे गड्ढा खोद कर छुपा दिया।


समय बीतने के साथ संत दयाराम का देवलोकगमन हो गया और ये मूर्तियाँ उसी स्थान पर दबी रही। कालान्तर में वर्ष 1840 में मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुर्जर नामक ग्वाले द्वारा उस जगह पर खुदाई की गई तो वहाँ पर एक जैसी तीन मनोहारी मूर्तियाँ निकली।

खबर फैलने पर आस-पास के लोग प्राकट्य स्थल पर पहुँचने लगे। फिर सर्वसम्मति से सबसे बड़ी मूर्ति को भादसोड़ा ग्राम में प्रसिद्ध गृहस्थ संत पुराजी के पास ले जाया गया।

संत पुराजी के निर्देशन में उदयपुर मेवाड़ राज-परिवार के भींडर ठिकाने की ओर से सांवलिया जी का मंदिर बनवाया गया। सांवलिया सेठ का यह मंदिर सबसे पुराना मंदिर है इसलिए इसे सांवलिया सेठ के प्राचीन मंदिर के नाम से जाना जाता है।

मंझली मूर्ति को वहीं खुदाई की जगह स्थापित किया गया जिसे प्राकट्य स्थल मंदिर के नाम से जाना जाता है। सबसे छोटी मूर्ति भोलाराम गुर्जर द्वारा मंडफिया ग्राम ले जाई गई।

कालांतर में इन तीनों जगहों पर भव्य मंदिर बनते गए। तीनों मंदिरों की ख्याति भी दूर-दूर तक फैली। आज दूर-दूर से लाखों यात्री प्रति वर्ष श्री सांवलिया सेठ के दर्शन करने आते हैं।

कहते हैं कि जो भी सच्ची श्रद्धा के साथ सांवलिया सेठ के यहाँ आता है तो भगवान श्रीकृष्ण उसकी मनोकामनाएँ अवश्य पूर्ण करते हैं।

सांवलिया सेठ मंदिर की मैप लोकेशन - Map Locations of Sanwaliya Seth Mandir





सांवलिया सेठ मंदिर का वीडियो - Video of Sanwaliya Seth Mandir



सांवलिया सेठ मंदिर की फोटो - Photos of Sanwaliya Seth Mandir


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लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।

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