कुंभलगढ़ के किले का अनसुना रहस्य - Kumbhalgarh Fort Mystery in Hindi

कुंभलगढ़ के किले का अनसुना रहस्य - Kumbhalgarh Fort Mystery in Hindi, इसमें कुंभलगढ़ के किले से संबंधित कुछ अनजाने और रोचक तथ्यों की जानकारी दी गई है।

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आपने कुम्भलगढ़ के किले के बारे में तो सुना ही होगा, इस किले में इतनी ज्यादा ऐतिहासिक घटनाएँ घटी हैं जिनका जिक्र आपको इतिहास की किताबों के अलावा और कहीं मिलना मुश्किल है।

कुम्भलगढ़ का किला पूरी दुनिया में अपना एक अलग स्थान रखता है। यह वो धरोहर है जिसने पूरी दुनिया में भारत की स्थापत्य कला के साथ यहाँ के राजसी जीवन को प्रदर्शित किया है।

आज हम कुम्भलगढ़ के किले से सम्बंधित कुछ उन तथ्यों के बारे में  बात करने वाले हैं जिन्हें जानने के बाद आप इस किले के ऐतिहासिक महत्व को और ज्यादा जान पाएँगे। 

तो आइये शुरू करते हैं और जानते हैं कुम्भलगढ़ के किले से जुड़ी कुछ अनजानी राज की बातें।

कुंभलगढ़ किले के अनजाने तथ्य - Unknown facts about Kumbhalgarh Fort


> कुम्भलगढ़ का किला वास्तु एवं शिल्प के साथ-साथ अपने सामरिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए इतना ज्यादा प्रसिद्ध है कि वर्ष 2013 में यूनेस्को ने इसे वर्ल्ड हेरिटेज साईट घोषित किया।

> कुम्भलगढ़ के किले को हिडन जेम्स भी कहा जाता है। दरअसल इस दुर्ग की सबसे बड़ी खासियत इसकी लोकेशन है। घने जंगल के बीच चारों तरफ अरावली की पहाड़ियों से घिरा होने की वजह से यह दुर्ग बहुत पास से भी दिखाई नहीं देता है।

अपनी इस बनावट और लोकेशन की वजह से यह दुर्ग शत्रुओं से बचा रहा क्योंकि दुर्ग तक पहुँचना बहुत ही ज्यादा  मुश्किल था।

> इस किले को कुम्भलगढ़ के अतिरिक्त कुम्भलमेर, मेवाड की आँख, अजयगढ आदि नामों से भी जाना जाता है। यह किला समुद्र तल से लगभग 1100 मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ है।

इस दुर्ग की ऊँचाई के लिए अकबर के नवरत्न अबुल फजल ने लिखा है कि यह दुर्ग इतनी अधिक ऊँचाई पर बना है कि नीचे से ऊपर देखने पर सिर से पगड़ी नीचे गिर जाती है।

> कुम्भलगढ़ का किला चारों तरफ से एक बहुत मजबूत दीवार से घिरा हुआ है। इस पूरी दीवार में एक निश्चित दूरी पर अर्ध कुम्भ यानी आधे मटके जैसी आकृति की बुर्ज बनी हुई है।

कुम्भलगढ़ की यह दीवार चीन की दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार है जिसकी लम्बाई लगभग 36 किलोमीटर और चौड़ाई लगभग सात मीटर है। इस दीवार पर एक साथ चार घुड़सवार चल सकते हैं।

> किले की दीवार के निर्माण की भी एक रहस्यमय कहानी है। कहते हैं कि सन् 1443 में जब इस दीवार का निर्माण कार्य शुरू हुआ तब इसमें कई अड़चनें आने लग गई।

इन अड़चनों को दूर करने के लिए राणा कुंभा ने एक संत को बुलवाया और अपनी परेशानी बताई। उस संत ने कहा कि दीवार का निर्माण तभी हो सकता है जब कोई अपनी इच्छा से अपनी बलि दे।


राणा कुंभा की चिंता को देखकर एक संत अपनी बलि देने के लिए तैयार हो गया। उस संत ने कहा कि वह पहाड़ी पर चलेगा और जहाँ भी रुके उस जगह उसकी बलि दे दी जाए और उस स्थान पर देवी का एक मंदिर बनवाया जाए।

कहते हैं कि 36 किलोमीटर तक चलने के बाद वो संत रुक गया। जहाँ पर वो रुका उसी स्थान पर उस की बलि दे दी गई। इस तरह कुंभलगढ़ की 36 किलोमीटर लंबी दीवार का निर्माण कार्य पूरा हो पाया। 

> कुम्भलगढ़ का किला कई विशाल दरवाजों यानी पोल से सुरक्षित किया गया है। इन दरवाजों में हनुमान पोल पर हनुमानजी की एक प्राचीन प्रतिमा स्थित है।

यह प्रतिमा महाराणा कुम्भा की मंडोर पर जीत का प्रतीक है। हनुमान जी की इस प्रतिमा को महाराणा कुम्भा मंडोर से लेकर आये थे।

> महाराणा कुम्भा से पहले इस कुम्भलगढ़ के दुर्ग की जगह पर मौर्य वंशी राजाओं के दुर्ग के खंडहर थे। बाद में महाराणा कुम्भा ने वर्तमान में दिखाई देने वाले इस दुर्ग का निर्माण 1443 से 1458 के बीच अपने प्रसिद्ध शिल्पी एवं वास्तुकार मंडन की देखरेख में करवाया था।

> कुम्भलगढ़ दुर्ग पर गुजरात के सुल्तान अहमद शाह और मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी सहित अकबर की मुगल सेना ने कई बार आक्रमण किये लेकिन एक बार के अलावा इस दुर्ग पर किसी का भी अधिकार नहीं रहा।

हल्दीघाटी के युद्ध के बाद अकबर के सेनापति शाहबाज खान ने 1578 ईस्वी में इस दुर्ग पर अधिकार किया था लेकिन 1585 तक यह दुर्ग पुनः महाराणा प्रताप के कब्जे में आ गया।

इस प्रकार यह दुर्ग अपने पूरे इतिहास में केवल 7 वर्ष तक मुगल बादशाह अकबर के अधिकार में रहा। अकबर के अलावा दूसरा कोई भी शासक इस दुर्ग पर कब्जा नहीं कर पाया।

> कुम्भलगढ़ का किला कठिन समय में चित्तौड़ के महाराणाओं की शरण स्थली भी रहा है। ऐसा बताया जाता है कि हल्दी घाटी के युद्ध के बाद में महाराणा प्रताप बहुत समय तक इस किले में रहे थे।

इसी धरोहर में महाराणा कुम्भा के पौत्र एवं राणा रायमल के पुत्र कुँवर सांगा (राणा सांगा) और कुंवर पृथ्वीराज का बचपन गुजरा।

जब चित्तौड़ के किले में बनवीर ने कुंवर उदय सिंह की जगह पन्ना धाय के पुत्र चंदन की हत्या कर दी थी, तब पन्ना धाय कुँवर उदय सिंह को बचा कर कुम्भलगढ़ ले कर आई थी। कुँवर उदय सिंह का बचपन भी इसी किले में गुजरा था।

> कुम्भलगढ़ के किले में ही वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप पैदा हुए थे यानी कुम्भलगढ़ का किला महाराणा प्रताप की जन्म स्थली है। 

इस किले में वर्तमान बादल महल के पास झाली रानी का महल या झाली रानी का मालिया मौजूद है, इसी महल में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था।

> कुम्भलगढ़ दुर्ग के भीतर पहाड़ी के शिखर पर एक और दुर्ग बना हुआ है जिसे कटारगढ़ के नाम से जाना जाता है। इसी कटारगढ़ में कुम्भा महल बना हुआ है।

> कुम्भलगढ़ किले की सबसे ऊँची जगह बादल महल है। यह महल आकाश में बादलों से भी ऊँचा है। बारिश के मौसम में इस महल से नीचे चारों तरफ बादल ही बादल दिखाई देते हैं।

बादल महल इस परिसर का सबसे नया निर्माण है जिसका निर्माण महाराणा फतेह सिंह ने करवाया था। बादल महल थोड़ी भव्यता लिए हुए है जिसमें जनाना और मर्दाना महल शामिल है।

> बताया जाता है कि महाराणा कुम्भा के काल में किले के अन्दर 360 से अधिक मंदिर थे जिनमें 300 से अधिक जैन मंदिर थे। आज भी आपको किले में जगह जगह इन मंदिरों के अवशेष दिखाई देते हैं।

> किले में वेदी मंदिर समूह मौजूद हैं। इस मंदिर समूह को महाराणा कुम्भा ने 1457 ईस्वी में किले का निर्माण पूर्ण होने पर यज्ञ करने के लिए बनवाया था। यज्ञ संपन्न करने की जगह होने की वजह से इसे यज्ञवेदी के नाम से जाना जाता है।

> 1458 ईस्वी में महाराणा कुम्भा ने नीलकंठ महादेव के मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर में भोलेनाथ की विशाल प्रतिमा है। कहते हैं कि महाराणा कुम्भा भोलेनाथ के पास बैठकर उनकी पूजा करते थे।

> महाराणा कुम्भा ने कुम्भलगढ़ के दुर्ग में मामादेव का मंदिर बनवाया था। इस मंदिर को कुम्भ श्याम मंदिर भी कहा जाता है।

इस मंदिर से थोड़ी दूरी पर एक कुंड के समीप किसी से पराजित ना होने वाला महाराणा कुम्भा, राज गद्दी की लालसा में अपने पुत्र कुंवर ऊदा सिंह (उदय सिंह प्रथम) के हाथों मारा गया।

> किले में राणा सांगा के भाई पृथ्वीराज की दो छतरियाँ बताई जाती है। एक छतरी दुर्ग की पश्चिमी तलहटी में है जहाँ इनका निधन हुआ था एवं दूसरी छतरी मामादेव मंदिर के पास स्थित कुंड के निकट है जहाँ पर इनका दाह संस्कार हुआ था।

पृथ्वीराज की 12 स्तंभों से निर्मित छतरी अपने शिल्प के लिए काफी प्रसिद्ध है। पृथ्वीराज को उसकी तेज धावक गति की वजह से उडणा पृथ्वीराज (Udna Prathviraj) के नाम से जाना जाता था।

कुंभलगढ़ के किले की मैप लोकेशन - Map Location of Kumbhalgarh Fort



कुंभलगढ़ किले के रहस्य का वीडियो - Video of Kumbhalgarh Fort Mystery



कुंभलगढ़ के किले की फोटो - Photos of Kumbhalgarh Fort


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लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
रमेश शर्मा

मेरा नाम रमेश शर्मा है। मुझे पुरानी ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना, इनके इतिहास के बारे में जानना और प्रकृति के करीब रहना बहुत पसंद है। जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं इनसे मिलने के लिए घर से निकल जाता हूँ। जिन धरोहरों को देखना मुझे पसंद है उनमें प्राचीन किले, महल, बावड़ियाँ, मंदिर, छतरियाँ, पहाड़, झील, नदियाँ आदि प्रमुख हैं। जिन धरोहरों को मैं देखता हूँ, उन्हें ब्लॉग और वीडियो के माध्यम से आप तक भी पहुँचाता हूँ ताकि आप भी मेरे अनुभव से थोड़ा बहुत लाभ उठा सकें।

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