हाड़ी रानी ने क्यों काटा अपना शीश? - Hadi Rani Palace Salumber in Hindi

हाड़ी रानी ने क्यों काटा अपना शीश? - Hadi Rani Palace Salumber in Hindi, इसमें रावत रतन सिंह चुण्डावत की हाड़ी रानी के बलिदान और उसके महल की जानकारी है।

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क्या आप जानते हैं कि राजस्थान की भूमि पर एक ऐसी वीरांगना रानी पैदा हुई है जिसने अपने हाथों से अपना शीश काटकर निशानी के रूप में अपने पति को भिजवा दिया था? आपके दिमाग में यह प्रश्न जरूर उठ रहा होगा कि यह रानी कौन थी और इसने ऐसा क्यों किया?

यह तो आप जानते ही हैं कि राजस्थान की मिट्टी वो मिट्टी है जिसमें पग पग पर अपनी आन बान और शान के लिए मर मिटने वाले वीरों और वीरांगनाओं का खून मिला हुआ है।

यहाँ के वीरों ने जहाँ एक तरफ केसरिया बाना पहनकर शाके करके अपने प्राण त्यागे हैं वहीं दूसरी तरफ यहाँ की वीरांगनाओं ने जौहर करके अपनी मान मर्यादा की रक्षा की है।

राजस्थान के क्षत्रिय वीरों ने मृत्यु को मात्र एक खिलौना ही समझा है। इन्होंने सदियों से अपने कर्तव्यों के पालन के लिए अपने प्राणों का बलिदान बिना किसी संकोच के दिया है।

जब भी कभी इन वीरों का मन किसी मोह माया की वजह से डगमगाया है तब यहाँ की वीरांगनाओं ने अपने प्राण देकर उस डगमगाते मन को भटकने से बचाया है।

आज हम ऐसी ही एक रानी के बारे में जानेंगे जिसने युद्ध में जाते अपने पति के भटकते मन को भटकने से बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया। यह रानी हाड़ी रानी के नाम से जानी जाती है।

इनके बारे में एक कवि ने लिखा है कि “राव सलूम्बर के चुंडा ने, मांगी एक निशानी थी, शीश काटकर भेजा जिसने, वह तो हाड़ी रानी थी।” इनके बारे में किसी दूसरे कवि ने यह लिखा है कि "चुण्डावत मांगी सैनाणी, सिर काट दे दियो क्षत्राणी"।

सबसे पहले हम सोलहवीं शताब्दी के उस घटनाक्रम को समझते हैं जिसमे ये घटना घटी थी। हुआ कुछ ऐसा था कि कृष्णगढ यानि अजमेर के पास स्थित किशनगढ़ के राजा रूपसिंह की पुत्री चारुमती की सुन्दरता के बारे में सुनकर मुग़ल शहंशाह औरंगजेब ने चारुमती को विवाह का प्रस्ताव भिजवाया।

चारुमती ने इस विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इसके जवाब में औरंगजेब ने चारुमती से जबरदस्ती विवाह करने के लिए विक्रम संवत 1717 में सैन्यबल के साथ किशनगढ़ आने का सन्देश भेजा।

इस सन्देश को पाकर चारुमती ने मन ही मन मेवाड़ के महाराणा राज सिंह को अपना पति स्वीकार कर महाराणा को विवाह हेतु सन्देश भेजा।

महाराणा राज सिंह ने यह विवाह प्रस्ताव स्वीकार कर सलूम्बर के नवविवाहित चुण्डावत राव रतन सिंह को सन्देश भिजवाया कि वो किशनगढ़ के आगे आगरा मार्ग पर औरंगजेब को तब तक रोके जब तक राजसिंह, चारुमती से विवाह करके वापस उदयपुर ना पहुँच जाये।

सलुम्बर के चुण्डावत रावत रतनसिंह को यह सन्देश उनके मित्र और महाराणा के दूत शार्दुल सिंह ने दिया। रावत रतनसिंह का विवाह दो दिन पहले ही बूंदी के हाड़ा राजा की पुत्री इन्द्रकुंवर या सलह कंवर या सहल कंवर के साथ हुआ था।

सलह कंवर को बूंदी के हाड़ा शासक की पुत्री होने के कारण हाड़ी रानी कहा जाता है। नया नया विवाह होने की वजह से रावत रतनसिंह का मन युद्ध में जाने को लेकर डगमगा रहा था, पत्नी के मोह की वजह से उनका मन भटक रहा था।

आदेश की वजह से रावत रतनसिंह को रणक्षेत्र में तो जाना ही था, इसलिए ये भटकते मन के साथ अपनी नवविवाहित रानी से विदा लेकर रणक्षेत्र में जाने के लिए महल से निकले।

महल के बाहर इन्हें फिर रानी की याद आई और इन्होंने अपने एक सेवक को भेजकर रानी से एक सैनाणी यानी निशानी लेकर आने के लिए कहा।

जब सेवक ने रानी से निशानी के लिए कहा तो रानी समझ गई कि उनके पति के कर्तव्य के बीच में उनका प्रेम आ रहा है और पत्नी के मोह की वजह से उनका मन डांवांडोल हो रहा है।

रानी को यह आशंका हुई कि कही उसके मोह के कारण उसके पति रणक्षेत्र में पूरे मन से युद्ध नहीं कर पाए और जिस कार्य के लिए वो युद्ध में जा रहे हैं वो पूर्ण ना हो।

इसलिए रानी ने उस कारण को ही समाप्त करने का निर्णय लिया जिसकी वजह से उनके पति का मन डांवांडोल हो रहा था। रानी ने निशानी देने के लिए अपनी एक सेविका से तलवार मंगवाई और अपने हाथों से अपना शीश काटकर निशानी के रूप में दे दिया।

सेविका ने रानी का सिर थाल में रखकर उसे चुनरी से ढककर सेवक को दिया। सेवक ने जब रावत रतनसिंह को यह निशानी दी तो रावत सहम गए।

रानी के सिर को देखकर उन्हें अपने कर्तव्य का ज्ञान हुआ। तब रावत ने कर्तव्य बोध की इस अनोखी निशानी को अपने गले में माला की तरह पहना और रणक्षेत्र के लिए प्रस्थान किया।

रणक्षेत्र में रावत रतनसिंह ने औरंगजेब की सेना को तब तक रोके रखा जब तक महाराणा राज सिंह का विवाह चारुमती के साथ संपन्न नहीं हो गया।

इस प्रकार रावत रतनसिंह ने उन्हें सौंपे हुए कार्य को पूरी तरह से संपन्न किया और युद्ध में लड़ते लड़ते अंत में वीरगति को प्राप्त हुए। इतिहास में कर्तव्य का ज्ञान करवाने के लिए इस तरह के बलिदान का कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता है।

रानी की वीरता और बलिदान को देखते हुए राजस्थान पुलिस में इस वीरांगना के नाम पर राजस्थान में हाड़ी रानी महिला बटालियन रखा गया है।


टोंक के टोडा रायसिंह में भी हाड़ी रानी के सम्मान में इनके नाम पर एक बावड़ी बनी हुई है जिसे हाड़ी रानी की बावड़ी या कुंड कहा जाता है।

आज हम उसी हाड़ी रानी के महल को देखेंगे और साथ में देखेंगे वो कक्ष जिसमें हाड़ी रानी ने अपना शीश काटा था।

उदयपुर से लगभग 72 किलोमीटर दूर सलूम्बर में हाड़ी रानी और रावत रतन सिंह के महल अभी भी मौजूद हैं। इस जगह पर आप उदयपुर से जयसमंद होकर जा सकते हैं।

सलूम्बर के अन्दर एक रावला मौजूद है जिसमें प्रवेश के लिए एक बड़ा गेट बना हुआ है। गेट से अन्दर जाने पर बड़ा मैदान और कुछ महल दिखाई देते हैं। महल के कई हिस्सों में सरकारी स्कूल चल रहे हैं।

रतन सिंह का महल तो काफी जर्जर अवस्था में है और इसे आम जनता के लिए बंद कर दिया गया है। इसमें जाने का रास्ता भी बंद ही है।

हाड़ी रानी के महल का जीर्णोद्धार कर इसे एक पैनोरमा का रूप दिया गया है। इस महल को देखने के लिए दस रुपये का नाम मात्र का शुल्क लिया जाता है।

हाड़ी रानी के इस तीन मंजिला महल को सात झरोखे होने की वजह से सात गोखड़ा महल के नाम से जाना जाता है। ये वही महल है जिसमें हाड़ी रानी ने अपने विवाह के बाद कुछ दिन बिताये थे और जिसमें इन्होंने अपना शीश काटकर बलिदान दिया था।

महल के कई कक्षों में हाड़ी रानी की वीरता को दर्शाते हुए सिलिकॉन और मेटल की कई प्रतिमाएँ लगाई गई हैं जिनमें हाड़ी रानी द्वारा अपना शीश काटने की प्रतिमा अद्भुत है।

इस प्रतिमा को देखकर मन सिहर जाता है। सोचिये जब हम एक प्रतिमा को देखकर सिहरन महसूस करते हैं तो रावत रतनसिंह का क्या हाल हुआ होगा, जब उन्होंने अपनी पत्नी के कटे हुए शीश को हकीकत में देखा था।

महल के सबसे ऊपरी भाग में वो कक्ष बना हुआ है जिसमें हाड़ी रानी ने अपना शीश काटा था। इस कक्ष में वो प्रतिमा लगी है जिसमें हाड़ी रानी अपना शीश काटकर सेविका को दे रही है।

इस ऐतिहासिक कक्ष में आपको कुछ अजीब सा महसूस होता है और आप कुछ क्षणों के लिए उस युग में पहुँच जाते हैं जिसमें ये सब घटित हुआ था। ऐसा लगता है जैसे वो घटनाक्रम आपके सामने घट रहा हो।

महल की सबसे ऊपरी छत से आपको पूरा सलूम्बर नजर आता है। पास ही पहाड़ी पर सोनार माता का प्रसिद्ध मंदिर नजर आता है। अगर आपके पास समय है तो आपको इस मंदिर में जरूर जाना चाहिए।

महल के पीछे एक बड़ा तालाब या झील बनी हुई है। इस झील के बीच में सुन्दर जल महल बना हुआ है। पूरी झील में कमल ही कमल लगे हुए हैं। पास में ही एक बगीचा बना हुआ है जिसमें सघन हरियाली है।

अगर आप ऐतिहासिक स्थलों को देखने में रुचि रखते हो तो आपको हाड़ी रानी के बलिदान को महसूस करने के लिए एक बार हाड़ी रानी के महल में जरूर जाना चाहिए।

हाड़ी रानी के बलिदान पर कवि मेघराज मुकुल की कविता - Poem by poet Meghraj Mukul on the sacrifice of Hadi Rani


हाड़ी रानी के बलिदान पर कवि मेघराज “मुकुल” ने एक कविता लिखी है, जो इस प्रकार है -

सैनांण पड्यो हथलेवे रो, हिन्लू माथै में दमकै ही
रखडी फैरा री आण लियां, गमगमाट करती गमकै ही
कांगण-डोरों पूंछे माही, चुडलो सुहाग ले सुघडाई
चुन्दडी रो रंग न छुट्यो हो, था बंध्या रह्या बिछिया थांई

अरमान सुहाग-रात रा ले, छत्राणी महलां में आई
ठमकै सूं ठुमक-ठुमक छम-छम, चढ़गी महलां में सरमाई
पोढ़ण री अमर लियां आसां, प्यासा नैणा में लियां हेत
चुण्डावत गठजोड़ो खोल्यो, तन-मन री सुध-बुध अमित मेट

पण बाज रही थी सहनाई, महलां में गुंज्यो शंखनाद
अधरां पर अधर झुक्या रह गया, सरदार भूल गयो आलिंगन
राजपूती मुख पीलो पड्ग्यो, बोल्यो, रण में नही जवुलां
राणी ! थारी पलकां सहला, हूँ गीत हेत रा गाऊंला

आ बात उचित है कीं हद तक, ब्या” में भी चैन न ले पाऊ?
मेवाड़ भलां क्यों न दास, हूं रण में लड़ण नही ञाऊ
बोली छात्रणी, “नाथ ! आज थे मती पधारो रण माहीं
तलवार बताधो, हूं जासूं, थे चुडो पैर रैवो घर माहीं

कह, कूद पड़ी झट सेज त्याग, नैणा मै अग्नि झमक उठी
चंडी रूप बण्यो छिण में, बिकराल भवानी भभक उठी
बोली आ बात जचे कोनी, पति नै चाहूँ मै मरवाणो
पति म्हारो कोमल कुम्पल सो, फुलां सो छिण में मुरझाणो

पैल्याँ कीं समझ नही आई, पागल सो बैठ्यो रह्यो मुर्ख
पण बात समझ में जद आई, हो गया नैन इक्दम्म सुर्ख
बिजली सी चाली रग-रग में, वो धार कवच उतरयो पोडी
हुँकार “बम-बम महादेव”, ”ठक-ठक-ठक ठपक” बढ़ी घोड़ी

पैल्याँ राणी ने हरख हुयो, पण फेर ज्यान सी निकल गई
कालजो मुंह कानी आयो, डब-डब आँखङियां पथर गई
उन्मत सी भाजी महलां में, फ़िर बीच झरोखा टिका नैण
बारे दरवाजे चुण्डावत, उच्चार रह्यो थो वीर बैण

आँख्या सूं आँख मिली छिण में, सरदार वीरता बरसाई
सेवक ने भेज रावले में, अन्तिम सैनाणी मंगवाई
सेवक पहुँच्यो अन्तःपुर में, राणी सूं मांगी सैनाणी
राणी सहमी फ़िर गरज उठी, बोली कह दे मरगी राणी

फ़िर कह्यो, ठहर ! लै सैनाणी, कह झपट खडग खिंच्यो भारी
सिर काट्यो हाथ में उछल पड्यो, सेवक ले भाग्यो सैनाणी
सरदार उछ्ल्यो घोड़ी पर, बोल्यो, ल्या-ल्या-ल्या सैनाणी
फ़िर देख्यो कटयो सीस हंसतो, बोल्यो, राणी ! राणी ! मेरी राणी

तूं भली सैनाणी दी है राणी ! है धन्य- धन्य तू छत्राणी
हूं भूल चुक्यो हो रण पथ ने, तू भलो पाठ दीन्यो राणी
कह ऐड लगायी घोड़ी कै, रण बीच भयंकर हुयो नाद
के हरी करी गर्जन भारी, अरि-गण रै ऊपर पड़ी गाज

फ़िर कटयो सीस गळ में धारयो, बेणी री दो लाट बाँट बळी
उन्मत बण्यो फ़िर करद धार, असपत फौज नै खूब दळी
सरदार विजय पाई रण में, सारी जगती बोली, जय हो
रण-देवी हाड़ी राणी री, माँ भारत री जय हो ! जय हो !

हाड़ी रानी पर एक गाना "थी शुभ सुहाग की रात" - Song on Hadi Rani "Thi Shubh Suhag Ki Raat"


वर्ष 1966 में बनी हिंदी फिल्म "नई उमर की नई फसल" (Nai Umar Ki Nai Fasal) में मन्ना डे ने राजस्थान के सलुम्बर ठिकाने के रावत रतन सिंह चुण्डावत की हाड़ी रानी पर एक गाना गया था।

इस गाने का टाइटल "थी शुभ सुहाग की रात" (Thi Shubh Suhag Ki Raat) था, जो इस प्रकार है -

थी शुभ सुहाग की रात मधुर
मधु छलक रहा था कण कण में
सपने जगते थे नैनों में
अरमान मचलते थे मन में

सरदार मगन मन झूम रहा
पल पल हर अंग फड़कता था
होठों पर प्यास महकती थी
प्राणों में प्यार धड़कता था

तब ही घूँघट में मुस्काती
पग पायल छम छम छमकाती
रानी अन्तःअपुर में आयी
कुछ सकुचाती कुछ शरमाती

मेंहदी से हाथ रचे दोनों
माथे पर कुमकुम का टीका
गोरा मुखड़ा मुस्का दे तो
पूनम का चाँद लगे फ़ीका

धीरे से बढ़ चूड़ावत ने
रानी का घूँघट पट खोला
नस नस में कौंध गई बिजली
पीपल पत्ते सा तन डोला

अधरों से अधर मिले जब तक
लज्जा के टूटे छंद बंध
रण बिगुल द्वार पर गूँज उठा
शहनाई का स्वर हुआ मंद

भुज बंधन भूला आलिंगन
आलिंगन भूल गया चुम्बन
चुम्बन को भूल गई साँसें
साँसों को भूल गई धड़कन

सजकर सुहाग की सेज सजी
बोला न युद्ध को जाऊँगा
तेरी कजरारी अलकों में
मन मोती आज बिठाऊँगा

पहले तो रानी रही मौन
फिर ज्वाल ज्वाल सी भड़क उठी
बिन बदाल बिन बरखा मानो
क्या बिजली कोई तड़प उठी

घायल नागन सी भौंह तान
घूँघट उठाकर यूँ बोली
तलवार मुझे दे दो अपनी
तुम पहन रहो चूड़ी चोली

पिंजड़े में कोई बंद शेर
सहसा सोते से जाग उठे
या आँधी अंदर लिये हुए
जैसे पहाड़ से आग उठे

हो गया खड़ा तन कर राणा
हाथों में भाला उठा लिया
हर हर बम बम बम महादेव
कह कर रण को प्रस्थान किया

देखा जब पति का वीर वेष
पहले तो रानी हर्षाई
फिर सहमी झिझकी अकुलाई
आँखों में बदली घिर आई

बादल सी गई झरोखे पर
परकटी हंसिनी थी अधीर
घोड़े पर चढ़ा दिखा राणा
जैसे कमान पर चढ़ा तीर

दोनों की आँखें हुई चार
चुड़ावत फिर सुधबुध खोई
संदेश पठाकर रानी को
मँगवाया प्रेम चिह्न कोई

सेवक जा पहुँचा महलों में
रानी से माँगी सैनाणी
रानी झिझकी फिर चीख उठी
बोली कह दे मर गई रानी

ले खड्ग हाथ फिर कहा ठहर
ले सैनाणी ले सैनाणी
अम्बर बोला ले सैनाणी
धरती बोली ले सैनाणी

रख कर चाँदी की थाली में
सेवक भागा ले सैनाणी
राणा अधीर बोला बढ़कर
ला ला ला ला ला सैनाणी

कपड़ा जब मगर उठाया तो
रह गया खड़ा मूरत बनकर
लहूलुहान रानी का सिर
हँसता था रखा थाली पर

सरदार देख कर चीख उठा
हाँ हाँ रानी मेरी रानी
अद्भुत है तेरी कुर्बानी
तू सचमुच ही है क्षत्राणी

फिर एड़ लगाई घोड़े पर
धरती बोली जय हो जय हो
हाड़ी रानी तेरी जय हो
ओ भारत माँ तेरी जय हो

हाड़ी रानी के महल की मैप लोकेशन - Map Location of Hadi Rani Palace



हाड़ी रानी के महल का वीडियो - Video of Hadi Rani Palace



हाड़ी रानी के महल की फोटो - Photos of Hadi Rani Palace



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लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।

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