यहाँ रावण ने शिवजी को चढ़ाया अपना शीश - Kamalnath Mahadev Mandir Jhadol in Hindi

यहाँ रावण ने शिवजी को चढ़ाया अपना शीश - Kamalnath Mahadev Mandir Jhadol in Hindi, इसमें उदयपुर में झाड़ोल के कमलनाथ महादेव मंदिर की जानकारी दी गई है।

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हम सभी को पता है कि रावण की नाभि के अंदर अमृत कुंड था जिसकी वजह से रावण को मार पाना असंभव सा ही था। क्या आपको पता है कि रावण को यह अमृत कुंड राजस्थान में एक जगह शिव की आराधना करने पर मिला था।

रावण ने भगवान शिव की 12 वर्ष से अधिक समय तक तपस्या करके इस अमृत कुंड को प्राप्त किया था। आपको यह जानकार और ज्यादा आश्चर्य होगा कि जिस स्थान पर रावण ने तपस्या करके इस अमृत कुंड प्राप्त किया था उस स्थान का संबंध महाराणा प्रताप से भी रहा है।

रावण ने जिस शिवलिंग की पूजा की थी वो शिवलिंग आज भी उसी स्थान पर बने शिव मंदिर के अंदर मौजूद है। इस शिव मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ पर शिव से पहले उनके भक्त लंकापति रावण की पूजा की जाती है।

अगर आपने भोलेनाथ की पूजा से पहले रावण की पूजा नहीं की तो आपको शिव की पूजा का कोई फल नहीं मिलेगा यानी आपकी पूजा निष्फल हो जाएगी।

तो आज चलते हैं पहाड़ों के बीच घने जंगल में स्थित इस धार्मिक और ऐतिहासिक जगह पर जिसका सम्बन्ध त्रेता युग में रावण और कलयुग में महाराणा प्रताप से रहा है। तो आइए शुरू करते हैं।

कमलनाथ महादेव मंदिर का भ्रमण और विशेषता - Tour and Speciality of Kamalnath Mahadev


अरावली की पहाड़ियों में घने जंगल के बीच हजारों वर्ष पुराना शिव मंदिर बना हुआ है। इन पहाड़ियों को आवरगढ़ की पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है।

घने जंगल में होने के कारण मंदिर के आस पास जंगली जानवर भी मौजूद हैं। बारिश के मौसम में मंदिर के सामने से ही एक नाला बहने लग जाता है।

समय के साथ मंदिर में काफी बदलाव आ गया है। मंदिर के गर्भगृह के अंदर सामने ही शिवलिंग स्थापित हैं। शिवलिंग गोल ना होकर दो भागों में है जिनमें एक भाग बड़ा और दूसरा छोटा है

मंदिर की एक ताख में लंकापति रावण की प्रतिमा और दूसरी ताख में भगवान विष्णु की प्रतिमा विराजित है। ये दोनों प्रतिमाएँ काले रंग के पत्थर की हैं।

जैसा कि हमने पहले भी बताया कि इस मंदिर में शिव की पूजा से पहले रावण की पूजा करनी होती है, अगर आपने ऐसा नहीं किया, तो आपकी पूजा फलदाई नहीं होगी यानी बेकार हो जाएगी।

यह वही स्थान है जहाँ पर त्रेता युग में रावण ने 12 वर्षों तक इस शिवलिंग की तपस्या की थी। रावण रोजाना शिवलिंग पर 108 कमल के पुष्प चढ़ाकर पूजा करता था।

गर्भगृह की सामने की तरफ एक धूणी बनी हुई है। सामने काले पत्थर की कुछ प्राचीन प्रतिमाएँ स्थापित हैं जिनमें से एक प्रतिमा नवगृह की भी है। इनके बगल में हनुमान जी की प्रतिमा विराजित है।

मंदिर के पास ही एक गोमुख कुंड है जहाँ पर पूरे वर्ष पानी की धारा बहती रहती है। इस धारा की एक विशेषता है कि चाहे कितनी भी बारिश हो या कितना भी अकाल पड़ जाए, इसका पानी एक ही गति से बहता है।

यह पानी स्वाद में नारियल पानी की तरह एकदम मीठा और शीतल है। इस पानी को गंगा जल के समान माना जाता है। यहाँ पर नहाना गंगा में नहाने जैसा समझा जाता है।

यहाँ पर इस क्षेत्र के आदिवासी अपने पूर्वजों की अस्थियाँ भी विसर्जित करते हैं। इस वजह से कमलनाथ महादेव को आदिवासियों का हरिद्वार भी कहा जाता है।

इस गोमुख कुंड को गंगा कुंड भी बोलते हैं। इस कुंड के आस पास कई प्राचीन प्रतिमाएँ लगी हुई है। ये सभी प्रतिमाएँ काले पत्थर से बनी हुई हैं।

मंदिर के सामने दोनों तरफ की पहाड़ियों को रावण टूक और वानर टूक कहा जाता है। मंदिर के पीछे से ऊपर पहाड़ पर जाने का कच्चा रास्ता बना हुआ है।

पहाड़ के ऊपर एक लंबा चौड़ा जंगली एरिया है जिसे आवरगढ़ कहा जाता है। पुराने समय में इस पहाड़ के टेढ़े मेढ़े रास्तों को स्थानीय भाषा में आवरे कहा जाता था।

बाद में इस क्षेत्र में एक गढ़ बन जाने के कारण इसे आवरगढ़ कहा जाने लगा। इस आवरगढ़ में आज भी पुराने महलों, मंदिरों, बावड़ियों और परकोटे के खंडहर मौजूद हैं।

ऊपर कुछ तालाब भी हैं जिनमें कमल के फूल लगने की वजह से इन्हें कमल तलाई कहा जाता है। इन सभी चीजों के कारण ऐसा लगता है कि पुराने समय में यहाँ पर कोई बड़ा नगर अवश्य रहा होगा।

कमलनाथ महादेव से रावण का संबंध - Relation of Kamalnath Mahadev with Ravan


ऐसा कहा जाता है कि रावण ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। भोलेनाथ ने तपस्या से प्रसन्न होकर रावण को वरदान मांगने के लिए कहा।

रावण ने भोलेनाथ को उसके साथ लंका जाने का वरदान मांगा। इस पर भोलेनाथ रावण के साथ शिवलिंग के रूप में लंका जाने के लिए तैयार हो गए लेकिन उन्होंने एक शर्त रख दी कि अगर उसने मार्ग में शिवलिंग को कहीं पर भी रखा तो वह उसी जगह स्थापित हो जाएँगे।

रावण कैलाश पर्वत से शिवलिंग लेकर लंका के लिए रवाना हुआ। चलते चलते वह इन आवरगढ़ की पहाड़ियों में पहुँचा। लगातार शिवलिंग उठाकर चलने की वजह से वह थक गया।

इसी थकान में वह शिवजी की शर्त को भूल गया और उसने शिवलिंग को नीचे रख दिया। शिवजी की शर्त के अनुसार शिवलिंग यहीं स्थापित हो गया।

बाद में रावण को अपनी गलती का एहसास हुआ। गलती का प्रायश्चित करने के लिए रावण यहीं पर स्थापित हुए शिवलिंग की तपस्या करने लगा। कहते हैं कि रावण ने इस जगह पर साढ़े बारह वर्ष तक तपस्या की थी।

वर्तमान मंदिर के सामने रावण टूक पहाड़ पर रावण यज्ञ कुंड बनाकर तपस्या करता था। रावण की तपस्या से डरकर देवता नहीं चाहते थे कि रावण की तपस्या सफल हो इसलिए वे भगवान विष्णु के पास गए।

देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने अपनी लीला रचकर रावण की तपस्या को भंग करने का प्रयास किया।

सबसे पहले तो यज्ञ को विफल करने के लिए वानर टूक से एक बन्दर कूदकर सीधा यज्ञ कुंड में आकर गिरा जिसकी वजह से रावण का यज्ञ खंडित हो गया।

रावण यज्ञ के अलावा रोजाना 108 कमल के फूल शिवलिंग पर अर्पित करता था। भगवान विष्णु ने अपनी माया से एक बार उसमें से एक फूल कम कर दिया। एक फूल कम होने पर रावण ने उस फूल की जगह अपना एक शीश काटकर भोलेनाथ को अर्पित कर दिया।

कुछ लोग ऐसा भी कहते हैं कि रावण ने अपना शीश नहीं बल्कि अपनी एक आँख भोलेनाथ को अर्पित की थी क्योंकि आँख को भी उपमा के रूप में कमल नयन कहा जाता है।

आखिर में भगवान शिव ने प्रसन्न होकर वरदान स्वरूप रावण की नाभि में अमृत कुंड की स्थापना कर दी। रावण द्वारा शिवलिंग पर कमल चढ़ाकर 12 वर्षों तक पूजा करने के कारण इस स्थान को कमलनाथ महादेव के नाम से जाना जाने लगा।

कमलनाथ महादेव की तरह रावण द्वारा शिव को प्रसन्न करने के पूजा और तपस्या करने की बात झारखंड के बैजनाथ धाम और कर्नाटक के मुरुदेश्वर मंदिर के बारे में भी कही जाती है।

कमलनाथ महादेव के कटे हुए शिवलिंग की कहानी - Story of severed Shivalinga of Kamalnath Mahadev


हम आपको बता दें कि कमलनाथ महादेव मन्दिर में शिवलिंग गोल आकार का न होकर बीच में से कटा हुआ है। शिवलिंग के बीच में से कटने की भी एक कहानी है।

ऐसा बताया जाता है कि कमलनाथ महादेव एक बछड़े के रूप में एक ग्वाले की गाय का सारा दूध पी जाते थे। एक दिन ग्वाला गाय का पीछा करता हुआ आया और उसने बछड़े को गाय का दूध पीते देखा।

ग्वाले को वो बछड़ा कुछ मायावी सा लगा, इस वजह से ग्वाले ने बछड़े के सिर पर कुल्हाड़ी से वार कर दिया जिससे बछड़े के सिर पर कटने का निशान हो गया।

बाद में जब महादेव, बछड़े से वापस शिवलिंग के रूप में आए तो कुल्हाड़ी के वार से कटने का वह निशान शिवलिंग पर भी दिखाई देने लग गया।

कमलनाथ महादेव से महाराणा प्रताप का संबंध - Relation of Kamalnath Mahadev with Maharana Pratap


कमलनाथ महादेव से महाराणा प्रताप का भी संबंध रहा है। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप इन्हीं आवरगढ़ की पहाड़ियों में आकर रहे थे। महाराणा प्रताप भी कमलनाथ महादेव की पूजा अर्चना के लिए आया करते थे।

इन आवरगढ़ की पहाड़ियों में महाराणा प्रताप के समय के मंदिर, बावड़ी, महल, परकोटा आदि के अवशेष आज भी मौजूद हैं।

इसी आवरगढ़ क्षेत्र के कोल्यारी गाँव में महाराणा प्रताप के घायल सैनिकों का इलाज किया जाता था। उस समय कोल्यारी गाँव सैनिकों के उपचार का प्रमुख केंद्र था।

महाराणा प्रताप ने जलाई थी यहाँ होली - Maharana Pratap lit Holi here


इस आवरगढ़ की पहाड़ियों का होलिका दहन से भी गहरा संबंध है। महाराणा प्रताप ने 1577 ईस्वी में आवरगढ़ की पहाड़ी पर होली जलाई थी।

आज भी इस पूरे क्षेत्र में सबसे पहले होलिका दहन यहीं पर होता है। यहाँ पर होलिका दहन होने के बाद पूरे आस पास के क्षेत्र में होलिका दहन होता है।

कमलनाथ महादेव के पास घूमने की जगह - Places to visit near Kamalnath Mahadev


कमलनाथ महादेव के आस पास घूमने की जगह के बारे में बात करें तो अगर आपके पास समय हो तो आपको मंदिर से ऊपर आवरगढ़ की पहाड़ी पर जरूर घूमना चाहिए।

आवरगढ़ पर घूमने के लिए आपको अपने साथ किसी लोकल व्यक्ति को जरूर ले लेना चाहिए ताकि वो आपको रावण टूक, होलिका दहन वाली जगह, महाराणा प्रताप के महल और मंदिर के खंडहर, बावड़ी, कमल तलाई और परकोटा आदि दिखा सके।

इसके साथ ही आप मंदिर तक आने वाले रास्ते में शनि मंदिर भी देख सकते हैं। यह शनि मंदिर भी काफी प्राचीन है। इसी शनि मंदिर से कमलनाथ तक आपको पैदल जाना होता है।

कमलनाथ महादेव मंदिर कैसे जाएँ? - How to reach Kamalnath Mahadev Temple?


अब हम इस बारे में बात करेंगे कि कमलनाथ महादेव मंदिर कैसे जाएँ। उदयपुर से कमलनाथ महादेव मंदिर की दूरी लगभग 65 किलोमीटर और झाड़ोल से लगभग 15 किलोमीटर है।

उदयपुर से कमलनाथ महादेव जाने के लिए आपको झाड़ोल, गोगला होते हुए मगवास जाना होगा। मगवास में आपको लेफ्ट टर्न लेकर दमाणा के सांवलिया जी मंदिर के सामने से जाना होगा।

आगे एक घाटी आती है जिसे पार करके शनि मंदिर तक जाना होता है। शनि मंदिर पर अपना वाहन पार्क करके कमलनाथ तक लगभग डेढ़ किलोमीटर का पथरीला सफर पैदल ही पार करना होता है।

अगर सड़क की कंडीशन की बात करें तो उदयपुर से मगवास तक फोरलेन हाईवे है। मगवास से आगे शनि मंदिर तक सिंगल रोड है और इसकी कंडीशन भी खराब है।

घाटी में कोई सड़क नहीं है, केवल पत्थर बिछे हुए हैं। घाटी में ऊपर की तरफ रास्ते में पानी बहता रहता है जिसकी वजह से रास्ते में काफी चिकनाई है।


इस जगह पर दो पहिया वाहन अकसर स्लिप होते रहते हैं। आपको यह घाटी थोड़ी सावधानी से पार करनी होगी।

मगवास से शनि मंदिर तक ऊँचे ग्राउंड क्लीयरेंस वाली गाड़ियाँ जैसे बोलेरो, जीप आदि जा सकती हैं। कम ग्राउंड क्लीयरेंस वाली कार का जाना काफी मुश्किल है। बाइक से जाया जा सकता है।

अगर आप एडवेंचर के साथ ऐतिहासिक और धार्मिक जगह घूमना चाहते हो तो कमलनाथ महादेव आपके लिए एक बेहतरीन जगह है।

तो आज बस इतना ही, उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। ऐसी नई-नई जानकारियों के लिए हमसे जुड़े रहें।

जल्दी ही फिर मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ। तब तक के लिए धन्यवाद, नमस्कार।

कमलनाथ महादेव मंदिर की मैप लोकेशन - Map Location of Kamalnath Mahadev Mandir



कमलनाथ महादेव मंदिर का वीडियो - Video of Kamalnath Mahadev Mandir



कमलनाथ महादेव मंदिर की फोटो - Photos of Kamalnath Mahadev Mandir


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लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।

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