मेवाड़ के महाराणा के लिए क्यों जरूरी है धूणी दर्शन? - Dhuni Darshan for Maharana of Mewar

मेवाड़ के महाराणा के लिए क्यों जरूरी है धूणी दर्शन? - Dhuni Darshan for Maharana of Mewar, इसमें मेवाड़ के महाराणा के लिए धूणी दर्शन के महत्व को बताया है।

Dhuni Darshan for Maharana of Mewar

पिछले चार सौ सालों से चली आ रही एक पुरानी परंपरा के अनुसार मेवाड़ में राजतिलक के बाद नए महाराणा को उदयपुर के सिटी पेलेस में धूणी के दर्शन और कैलाशपुरी में एकलिंग जी के दर्शन करने बहुत जरूरी होते हैं। आप इस परंपरा को राजतिलक का एक हिस्सा मान सकते हैं।

आज हम उदयपुर के सिटी पेलेस में मौजूद उस स्थान के बारे में जानते हैं जहाँ पर ये धूणी मौजूद है और समझते हैं कि इस धूणी का मेवाड़ के राजपरिवार के लिए क्या महत्व है।

सिटी पेलेस का निर्माण होने से पहले इस जगह पर एक संत प्रेमगिरी महाराज तपस्या किया करते थे। एक बार महाराणा उदय सिंह जब इस जगह पर आए तब प्रेमगिरी महाराज ने महाराणा को इस जगह पर महल का निर्माण कर नया शहर बनाने के लिए कहा।


संत के आशीर्वाद से महाराणा ने इस जगह पर राजमहल की नींव रखकर उसका निर्माण शुरू करवाया। सन् 1559 ईस्वी में राजमहल का जो सबसे पहला हिस्सा बनकर तैयार हुआ उसे नौ चौकी महल कहा जाता है। इस महल के बनने के साथ ही महाराणा ने उदयपुर शहर भी बसा दिया।

महाराणा उदय सिंह द्वारा बनवाया गया यह महल सोलह खंभों के बीच नौ बराबर हिस्सों में बँटा हुआ है। समय-समय पर सभी महाराणाओं ने इसका जीर्णोद्धार करवाया जिसमें किसी ने इसमें घुटाई करवाई तो किसी ने इसमें जंगले और पीतल के किवाड़ लगवाए।

नौ चौकी महल के बीच में एक धूणी मौजूद है जो तपस्वी गोस्वामी प्रेमगिरी महाराज की है। इस महल में संत की पवित्र धूणी होने के कारण महाराणा अमर सिंह प्रथम के बाद मेवाड़ के सभी महाराणाओं का राजतिलक इस महल के सामने किए जाने की परंपरा है।

ऐसा माना जाता है कि इस धूणी का आशीर्वाद लेने से महाराणा के साथ राजपरिवार पर संत का आशीर्वाद बना रहता है और उनके किसी भी काम में कोई परेशानी नहीं आती है।

महाराणा उदय सिंह द्वारा इस जगह पर शुरू करवाया गए इस राजमहल का बाद के सभी महाराणाओं ने अपने-अपने हिसाब से विस्तार करवाया। आज हम जो सिटी पेलेस का जो इतना बड़ा स्वरूप देखते हैं उसकी शुरुआत प्रेमगिरी महाराज की इस धूणी वाली जगह से ही हुई थी।


लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

सोशल मीडिया पर हमसे जुड़ें (Connect With Us on Social Media)

हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें
हमें फेसबुकएक्स और इंस्टाग्राम पर फॉलो करें
हमारा व्हाट्सएप चैनल और टेलीग्राम चैनल फॉलो करें

डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
रमेश शर्मा

मेरा नाम रमेश शर्मा है। मुझे पुरानी ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना, इनके इतिहास के बारे में जानना और प्रकृति के करीब रहना बहुत पसंद है। जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं इनसे मिलने के लिए घर से निकल जाता हूँ। जिन धरोहरों को देखना मुझे पसंद है उनमें प्राचीन किले, महल, बावड़ियाँ, मंदिर, छतरियाँ, पहाड़, झील, नदियाँ आदि प्रमुख हैं। जिन धरोहरों को मैं देखता हूँ, उन्हें ब्लॉग और वीडियो के माध्यम से आप तक भी पहुँचाता हूँ ताकि आप भी मेरे अनुभव से थोड़ा बहुत लाभ उठा सकें।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने