पचार के राजा ने लड़ा था मावंडा-मंढोली का युद्ध - Pachar Fort in Hindi

पचार के राजा ने लड़ा था मावंडा-मंढोली का युद्ध - Pachar Fort in Hindi, इसमें खाटूश्यामजी के पास स्थित पचार के किले के बारे में जानकारी दी गई है।

Pachar Fort in Hindi

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सीकर जिले में कई ठिकाने रहे हैं जिनमें से एक ठिकाने का नाम प्रमुखता से लिया जाता है जिसे पचार ठिकाने के नाम से जाना जाता है। यह ठिकाना प्रसिद्ध खाटूश्यामजी कस्बे से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर है।

जयपुर से यहाँ की दूरी लगभग 75 किलोमीटर है और जयपुर से यहाँ पर आने के लिए दो रास्ते हैं। पहला रास्ता राष्ट्रीय राजमार्ग 52 पर गोविन्दगढ़ से बधाल होकर है। दूसरा रास्ता जोबनेर से रेनवाल होकर है।

यह कस्बा अपना ऐतिहासिक महत्व रखता है। यहाँ पर मौजूद प्राचीन गढ़, महल, हवेलियाँ और मंदिर आदि विरासत के रूप में मौजूद हैं। आज हम आपको यहाँ पर मौजूद पचार फोर्ट के बारे में बताते हैं।

इस फोर्ट के बाहर एक परकोटा बना हुआ है जिसमें एक बड़ा दरवाजा मौजूद है। दरवाजे से अन्दर आने पर सामने की तरफ यह गढ़ नजर आता है और बाईं तरफ महल नजर आता है।

अगर हम यहाँ के इतिहास के बारे में बात करें तो प्राप्त जानकारी के अनुसार पचार के गढ़ का निर्माण ठाकुर भीम सिंह ने 1725 ईस्वी में करवाया था।

इनके उत्तराधिकारी ठाकुर गुमान सिंह को एक महान योद्धा माना जाता है जिन्होंने जयपुर और भरतपुर रियासत के मध्य लड़े गए प्रसिद्ध मावंडा-मंढोली (Maonda Mandholi Battle) के युद्ध में जयपुर ठिकाने की तरफ से भाग लेकर अपने प्राणों का बलिदान दिया था।

युद्ध में इनकी वीरता के लिए कहा जाता है कि रण भूमि में लड़ते-लड़ते इनका सिर कटकर अलग हो गया था लेकिन ये सिर कट जाने के बाद भी लड़ते रहे।

इनकी वीरता को देखकर जयपुर राज्य की तरफ से इन्हें और इनके उत्तराधिकारियों को “सरकार” नामक टाइटल से नवाजा गया। (Reference - https://www.indianrajputs.com/view/pachar)

बाद में ठाकुर सरकार बाघ सिंह ने पचार में नरसिंह मंदिर का निर्माण करवाया। ठाकुर सरकार गोपाल सिंह ने महल का निर्माण कार्य शुरू करवाया जिसे ठाकुर सरकार गणपत सिंह ने पूर्ण करवाया।


वर्ष 1995 में इस महल को एक हेरिटेज होटल में तबदील कर दिया गया जिसकी वजह से कई देशी और विदेशी पर्यटकों ने शेखावाटी की संस्कृति को करीब से देखा और समझा।

वर्तमान में इस गढ़ के एक हिस्से में टेलीफोन विभाग का ऑफिस बना हुआ है और दूसरा हिस्सा रिहायशी कार्यों के लिए उपयोग में लिया जा रहा है।

देखने में तो यह गढ़ ठीक-ठाक दशा में प्रतीत होता है लेकिन समय के साथ-साथ यह अपने वैभव को खोता जा रहा है।

अगर समय रहते इस धरोहर का उचित संरक्षण नहीं किया गया तो भावी पीढ़ियों को यह विरासत देखने का सौभाग्य नहीं मिलेगा।

मावंडा-मंढोली का युद्ध - Battle of Mawanda-Mandholi


मावंडा मंडोली का यह युद्ध 14 दिसंबर 1767 को जयपुर के राजा माधोसिंह और भरतपुर के राजा जवाहर सिंह के बीच हुआ। जयपुर की तरफ से युद्ध में राजा माधोसिंह के सेनापति और सामंत मौजूद थे जबकि भरतपुर की तरफ से राजा जवाहर सिंह खुद मौजूद थे।

यह युद्ध नीमकाथाना शहर से केवल सात किलोमीटर दूर मावंडा-मंढोली गांवों के बीच एक जगह पर हुआ था। इस युद्ध को जयपुर के इतिहास का काफी भीषण युद्ध माना जाता है जिसमें दोनों तरफ की सेनाओं के लगभग दस हजार सैनिक मारे गए थे।

इस युद्ध में मारे गए योद्धाओं की याद में 1768 ईस्वी में राजपूत मुगल शैली में कुछ छतरियों और चबूतरों का निर्माण किया गया। स्थानीय लोग इन छतरियों की जगह को मोर्चा के नाम से जानते हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार इनमें जयपुर के दीवान हरसहाय, बख्शी गुरूसहाय, सेनापति राव दलेल सिंह और उनके पुत्र कुँवर लक्ष्मण सिंह की छतरियों के पास ही कुछ योद्धाओं के चबूतरे बने हैं।

इन छतरियों में कुछ छतरियाँ सुरक्षित हैं बाकी कई चबूतरों के अवशेष भी दिखाई दे जाते हैं। सुरक्षित छतरियों में जयपुर के दीवान राजा हरसहाय की छतरी तत्कालीन स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना है।

छतरियों में इनसे संबंधित वीरगति को प्राप्त हुए राजाओं के पद चिन्ह मौजूद हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में लोग पगल्या के नाम से जानते हैं। छतरियों में देवनागरी और उर्दू भाषा में लेख लिखे हुए हैं।

पचार के किले की मैप लोकेशन - Map Location of Pachar Fort



पचार के किले का वीडियो - Video of Pachar Fort



पचार के किले की फोटो - Photos of Pachar Fort


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लेखक (Writer)

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}

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डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
रमेश शर्मा

मेरा नाम रमेश शर्मा है। मुझे पुरानी ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना, इनके इतिहास के बारे में जानना और प्रकृति के करीब रहना बहुत पसंद है। जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं इनसे मिलने के लिए घर से निकल जाता हूँ। जिन धरोहरों को देखना मुझे पसंद है उनमें प्राचीन किले, महल, बावड़ियाँ, मंदिर, छतरियाँ, पहाड़, झील, नदियाँ आदि प्रमुख हैं। जिन धरोहरों को मैं देखता हूँ, उन्हें ब्लॉग और वीडियो के माध्यम से आप तक भी पहुँचाता हूँ ताकि आप भी मेरे अनुभव से थोड़ा बहुत लाभ उठा सकें।

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