परशुरामजी ने फरसे से काटकर बनाई गुफा - Parshuram Mahadev Mandir Kumbhalgarh, इसमें राजसमंद में परशुराम महादेव की गुफा के बारे में जानकारी दी गई है।
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राजस्थान अपने किलों, महलों और रेगिस्तान के लिए तो दुनिया में जाना जाता ही है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसी राजस्थान में भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुरामजी ने महाभारत के योद्धा कर्ण को शिक्षा दी थी।
इसी राजस्थान में वो जगह है जहाँ पर परशुरामजी ने भोलेनाथ की कठोर तपस्या करके उनसे धनुष, अक्षय तरकश और अपना प्रसिद्ध फरसा प्राप्त किया था। इसके बाद ही ये राम से परशुराम कहलाये थे।
तो आज हम आपको अरावली की पहाड़ियों में घने जंगल के बीच उस गुफा के अंदर लेकर चलते हैं जहाँ पर परशुरामजी ने भोलेनाथ की तपस्या करके इन दिव्य अस्त्रों को प्राप्त किया था।
इस जगह पर कल्प वृक्ष, रुद्राक्ष वृक्ष, शिव और गौरी कुंड के साथ कुछ मंदिर बने हुए हैं। तो आइए शुरू करते हैं।
परशुराम महादेव की यात्रा और विशेषता, Parshuram Mahadev Ki Yatra Aur Visheshta
अरावली की पहाड़ियों के बीचों बीच एक गुफा भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुरामजी की तपस्या स्थली रही है। ऐसा कहा जाता है कि परशुरामजी ने यहाँ पर बारह हजार वर्षों तक तपस्या की थी।
आपको पता ही होगा कि हिन्दू धर्म के अनुसार दुनिया में सात लोग अजर अमर है जिनमें परशुरामजी के अलावा हनुमान जी, राजा बलि, विभीषण, अश्वत्थामा, महर्षि व्यास और कृपाचार्य शामिल हैं।
इनके साथ ही महामृत्यंज्य मंत्र की रचना करने वाले ऋषि मार्कण्डेय को भी अमर माना जाता है। ये सभी लोग चिरंजीवी हैं यानी ये सभी हमेशा जिंदा रहेंगे, इनकी कभी मृत्यु नहीं होगी।
चारों तरफ से पहाड़ों और घने जंगल से घिरी इस जगह पर जाना ही अपने आप में बड़ा मनोरंजक है। घने जंगल में टेढ़ी मेढ़ी सड़कों पर सफर करना एक अलग ही आनंद देता है।
परशुरामजी की गुफा तक जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक रास्ता मेवाड़ में फूटा देवल से होकर और दूसरा रास्ता मारवाड़ में कुंड धाम से होकर जाता है। फूटा देवल पहाड़ के ऊपर और कुंड धाम पहाड़ के नीचे जमीन पर है।
परशुराम महादेव की गुफा इन दोनों के लगभग बीच में है। फूटा देवल की समुद्र तल से ऊँचाई कुंभलगढ़ के किले के बराबर यानी 3600 फुट है।
फूटा देवल से परशुराम महादेव की गुफा तक जाने के लिए लगभग डेढ़ किलोमीटर तक पैदल चलकर पहाड़ से नीचे उतरना पड़ता है। रास्ते में रैम्प के साथ सीढ़ियाँ हैं।
कुंड धाम से परशुराम महादेव की गुफा तक जाने के लिए लगभग ढाई किलोमीटर चलकर पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है। इस रास्ते में भी रैम्प के साथ सीढ़ियाँ हैं।
दोनों रास्तों का अपना अलग मजा है, ये रास्ते आपको अपनी लोकेशन के हिसाब से चुनने होंगे। अगर आप मेवाड़ से आ रहे हैं तो आपको फूटा देवल होकर और मारवाड़ से आ रहे हैं तो कुंड धाम होकर आना पड़ेगा।
फूटा देवल से परशुराम महादेव की गुफा, Phuta Deval Se Parshuram Mahadev Ki Gufa
पहले हम फूटा देवल से परशुराम महादेव की गुफा तक जाने वाले रास्ते के बारे में बात कर लेते हैं।
फूटा देवल पहुँचने पर आपको कल्प वृक्ष और कदम वृक्ष के दर्शन के लिए द्वार से अंदर जाना होता है। यह कल्प वृक्ष कोई साधारण वृक्ष नहीं है। यह मन की इच्छा पूरी करने वाला चमत्कारी वृक्ष है।
प्रवेश द्वार से अंदर प्रवेश करते ही कल्प वृक्ष दिखाई देता है। इसके आगे कामधेनु गाय, एक और कल्प वृक्ष, कलपेश्वर महादेव, रुद्राक्ष वृक्ष, इच्छाधारी अमृत कुंड है। इसके पास काफी बड़ा स्वास्तिक बना हुआ है।
यहाँ से थोड़ा आगे जाने पर चमत्कारी कदम के वृक्ष लगे हुए हैं। इसके साथ इस परिसर में कुछ मंदिर भी बने हुए हैं।
कल्प वृक्ष और कामधेनु गाय के बारे में पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि एक बार परशुरामजी के पिता ऋषि जमदग्नि के यहाँ राजा सहस्रबाहु अपनी सेना सहित आ गए थे।
तब ऋषि जमदग्नि, देवराज इंद्र देव से कल्प वृक्ष और कामधेनु गाय माँग कर धरती पर लाए थे ताकि वे राजा और उनकी सेना के खाने पीने और रहने की व्यवस्था कर सकें।
फूटा देवल मंदिर पर हर वर्ष सावन के महीने में तीन दिनों तक विशाल मेला भरता है जिसमें हजारों श्रद्धालु भोलेनाथ के दर्शन के लिए आते हैं। पूरे सावन में लाखों भक्तजन गुफा मंदिर में दर्शन करते हैं।
फूटा देवल के पास ही पहाड़ी पर सनसेट पॉइंट बना हुआ है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई 3800 फीट है यानी यह सनसेट पॉइंट कुंभलगढ़ के किले से भी 200 फीट ज्यादा ऊँचा है।
यहाँ जाने के लिए लगभग आधा किलोमीटर की ट्रैकिंग करके जाना पड़ता है। सनसेट पॉइंट से कुंभलगढ़ का किला, परशुराम महादेव की गुफा, देसूरी, सादड़ी, रणकपुर के साथ जवाई बाँध दिखाई देते हैं।
फूटा देवल से ही परशुराम महादेव की गुफा तक जाने का रास्ता शुरू होता है। थोड़ा आगे जाने पर राम भक्त शबरी माता का मंदिर बना हुआ है।
इसके थोड़ा आगे कुछ प्राचीन मूर्तिया और एक मंदिर का खंडहर नजर आता है। यह मंदिर काफी प्राचीन लगता है। यहाँ से आगे एक दरवाजा पार करके आगे जाना होता है।
रास्ते में आपको कई जगह पर बंदरों का झुंड दिखाई देता है। कई जगह पर आपको रैम्प और कई जगह पर सिर्फ सीढ़ियाँ ही मिलेंगी।
जाते समय सिर्फ नीचे उतरना होता है इसलिए ज्यादा दिक्कत नहीं होती है लेकिन वापस आते समय सिर्फ चढ़ाई का सामना करना पड़ता है।
यहाँ से देखने पर दूर दूर तक सिर्फ घना जंगल दिखाई देता है। चारों तरफ पहाड़ और हरियाली बहुत सुंदर लगती है। इस जंगल में पैन्थर के साथ भालू, बंदर, साँप आदि जानवर काफी संख्या में रहते हैं।
लगभग सवा से डेढ़ किलोमीटर चलने के बाद हम परशुराम महादेव की गुफा तक जाने वाली सीढ़ियों के पास पहुँच जाते हैं।
कुंड धाम से परशुराम महादेव की गुफा, Kund Dham Se Parshuram Mahadev Ki Gufa
अब हम बात करते हैं उस रास्ते की जो कुंड धाम से परशुराम महादेव की गुफा तक जाता है।
कुंड धाम के गेट से अंदर जाने पर सामने कुछ मंदिर और धर्मशालाएँ बनी हुई है। इनके बगल में ऊपर से बहकर आने वाला पानी एक नदी के रूप में बहता है।
आगे जाने पर कुछ कुंड बने हुए हैं। इन कुंडों में एनिकट से बहकर पहाड़ का पानी आ रहा है। बारिश के मौसम में एनिकट से बहता पानी साफ दिखाई देता है। इस मौसम में यह पानी बहुत तेज स्पीड से बहने लग जाता है।
इन कुंडों को श्री शिव गौरी गंगा कुंड कहते हैं। इनमें से एक कुंड महिलाओं और दूसरा पुरुषों के लिए बना हुआ है। इसके बगल में तीसरा कुंड बना है। इस कुंड के ऊपर से जाने के लिए एक छोटा पुल बना है।
पुल से थोड़ा आगे एक शिव मंदिर बना है जिसे अमरनाथ महादेव कहा जाता है। इसमें एक बड़ा शिवलिंग स्थापित है। पास में पत्थर की शिला पर कुछ मूर्तियाँ स्थापित है।
थोड़ा ऊपर की तरफ एक दो मंदिर और बने हैं। इनके पास ही एक धर्मशाला भी बनी है जहाँ पर रात को ठहरा जा सकता है। यहाँ से बगल में ही एनिकट का बहता पानी साफ नजर आता है।
इस धर्मशाला के पास से ऊपर गुफा की तरफ जाने के लिए सीढ़ियाँ और रैम्प दोनों बने हुए हैं। ऊँचाई से कुंड धाम का नजारा बड़ा सुंदर दिखाई देता है।
ऊपर रैम्प के रास्ते आगे जाने पर गुफा से लगभग आधी दूरी पर पाली जिले की सीमा समाप्त हो जाती है और राजसमंद जिले की सीमा शुरू होती है। गुफा राजसमंद जिले में है तो कुंड पाली जिले में आता है।
आगे आपको पहाड़ों में कभी थोड़ा ऊपर और कभी थोड़ा नीचे चलना पड़ता है। पूरे रास्ते में हरियाली है। दोनों तरफ पेड़ लगे हुए हैं जिनमें सीताफल के पेड़ भी काफी हैं। इन पेड़ों पर बंदर उछल कूद करते दिखाई देते हैं।
आगे एक जगह अमर गंगा प्याऊ नामक जगह आती है। इसका नाम प्याऊ है लेकिन इस पर पानी दिखाई नहीं दिया। यहाँ से आगे जाने पर गुफा के थोड़ा पहले शिकंजी बेचते हुए दो भाई केसर सिंह और खेम सिंह दिखाई दिए।
ये दोनों भाई सावन और उसके बाद कुछ महीनों तक इस रास्ते के बगल में पत्थरों के ऊपर ही रहते हैं। बरसों से रहने के कारण बरसात और जंगली जानवरों से इनका एक रिश्ता सा बन गया है।
हमने इन दोनों भाइयों से बात की है जिसका वीडियो आप हमारे चैनल पर देख सकते हैं।
गुफा के पास जाने से पहले थोड़ी सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है। ऊपर फूटा देवल की तरफ से आने वाला रास्ता यहाँ पर मिल जाता है। बगल में ही एक कुंड बना है जिसे परशुराम सरोवर के नाम से जाना जाता है।
यहाँ पर एक तरफ एक धर्मशाला बनी है। थोड़ा ऊपर संतों की समाधियाँ बनी हुई हैं। यहाँ से ऊपर सीधी सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं।
बारिश के मौसम में पानी बहता हुआ मिलता है। मुख्य गुफा के ठीक नीचे कालाजी-गोराजी और गंगा-जमुना की मूर्तियाँ विराजित हैं।
परशुराम महादेव की गुफा, Parshuram Mahadev Ki Gufa
इस गुफा को परशुरामजी ने अपने फरसे से काटकर बनाया था इसलिए इसकी आकृति भी ऐसी है जैसे किसी ने इसे धारदार हथियार से काटा हो। गुफा के अंदर पानी रिसता और टपकता रहता है।
सामने स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है जिनके पास पार्वती जी विराजित है। बगल में गणेशजी और कार्तिकेय स्थापित है। इनके पास में नंदी, पार्वती, गणेशजी और कार्तिकेय अलग से विराजित है।
कुछ लोग ऐसा भी बताते हैं कि यह शिवलिंग ना होकर परशुराम जी की मूर्ति है जिनके हृदय में शिव और पार्वती का निवास हैं, और इनके दोनों पैरो पर शिवजी के दोनों पुत्र कार्तिकेय और गणेश विराजमान है।
शिवलिंग के ऊपर गौमुख बना हुआ है जिसमें से शिवलिंग पर लगातार पानी गिरता रहता है। इस प्रकार शिवजी का अपने आप जलाभिषेक होता रहता है। पास में गाय के चार थन भी बने हुए हैं जिनसे पूरे साल जल की बूँदें गिरती रहती हैं।
शिवलिंग के पास ही शिला पर एक ब्रह्मराक्षस का सिर और धड़ बना हुआ है। बताया जाता है कि इस राक्षस को परशुरामजी ने अपने फरसे से मारा था।
यह गुफा पूरी तरह से प्राकृतिक है और एक ही चट्टान से बनी है। सामने की तरफ एक छोटी गुफा और है जो यहाँ से लगभग 6 किलोमीटर दूर वेरों का मठ नामक जगह पर खुलती है। ऐसा बताया जाता है कि परशुरामजी ने कर्ण को शिक्षा उस स्थान पर दी थी।
इस गुफा मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें शिवलिंग का मुँह और वर्तमान दरवाजा विपरीत दिशा में है। इसका कारण यह है कि उस समय इस गुफा में आने जाने का एकमात्र मार्ग यह छोटी गुफा ही थी जो शिवलिंग के सामने की तरफ है।
परशुराम जी त्रेता युग में यहाँ पर शिवलिंग के सामने बनी इस छोटी गुफा के रास्ते से आये थे। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ पर उन्होंने बारह हजार वर्षों तक भगवान शिव की गुप्त आराधना की थी।
वर्तमान रास्ता तो उन्होंने बाद में अपने फरसे से चट्टान को काटकर बनाया था। अब हम जिस रास्ते से गुफा में जाते हैं वह परशुरामजी का काटकर बनाया हुआ रास्ता ही है।
समय के साथ इस इस गुफा के अंदर जाने के लिए सीढ़ियाँ बन गई है। जब सीढ़ियाँ नहीं थी तब इस गुफा तक जाना काफी मुश्किल था।
परशुराम महादेव को राजस्थान का अमरनाथ कहा जाता है क्योंकि जिस प्रकार अमरनाथ धाम में साक्षात भगवान शिव निवास करते हैं ठीक उसी तरह यहाँ पर भी साक्षात शिव विराजित हैं।
परशुराम महादेव का इतिहास, Parshuram Mahadev Ka Itihas
अगर परशुराम महादेव के इतिहास के बारे में बात करें तो ऐसा बताया जाता है कि इस गुफा के अंदर परशुरामजी ने करीब बारह हजार वर्षों तक तपस्या की थी।
इनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने इन्हे सपरिवार दर्शन दिए। इसके प्रमाणस्वरूप यहाँ का स्वयंभू शिवलिंग अर्द्धनारीश्वर यानी शिव और पार्वती के रूप में है और साथ में पूरा शिव परिवार विराजित है।
परशुरामजी की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हे एक धनुष के साथ कभी ना खत्म होने वाला तरकश और एक फरसा प्रदान किया।
ऐसा बताया जाता है कि परशुरामजी ने यहाँ से करीब 6 किलोमीटर दूर वेरों का मठ नामक जगह पर भी गुफा के अंदर तपस्या की थी। उसी जगह पर परशुरामजी ने अंगराज कर्ण को शिक्षा दी थी।
वेरों का मठ बनास नदी का उद्गम स्थल है। यह नदी मातृकुंडिया नामक जगह से गुजरती है जहाँ पर परशुरामजी ने अपनी माता की हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए स्नान किया था।
परशुराम महादेव के पास घूमने की जगह, Parshuram Mahadev Ke Paas Ghumne Ki Jagah
अगर परशुराम महादेव के पास घूमने की जगह के बारे में बात करें तो आप वेरों का मठ, कुंभलगढ़ का किला, हमेरपाल तालाब आदि जगह देख सकते हो।
परशुराम महादेव कैसे जाएँ?, Parshuram Mahadev Kaise Jayen?
अब हम बात करते हैं कि परशुराम महादेव कैसे जाएँ?
परशुराम महादेव की यह गुफा कुंभलगढ़ से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है। अगर आप उदयपुर से यहाँ आना चाहते हैं तो आप उदयपुर से कुंभलगढ़ या सायरा होते हुए आ सकते हैं।
उदयपुर से परशुराम महादेव की दूरी 90 से 100 किलोमीटर के बीच है जो आपके आने वाले रास्ते पर निर्भर करती है।
उदयपुर से कुंभलगढ़ होते हुए आने पर आपको कुंभलगढ़ में प्रताप तिराहे पर राइट साइड में किले की तरफ ना जाकर लेफ्ट साइड में वेरों का मठ की तरफ जाने वाली सड़क पर आगे जाना होगा।
लगभग 4 किलोमीटर जाने के बाद राइट साइड में परशुराम महादेव जाने के लिए एक गेट आता है। आपको इस गेट में से आगे फूटा देवल तक जाना होता है।
उदयपुर से सायरा होकर जाने के लिए आपको गोगुंदा से आगे जसवंतगढ़ तिराहे पर राइट टर्न लेकर रणकपुर रोड पर सायरा तिराहे तक जाना है। इस तिराहे पर रणकपुर की तरफ ना जाकर वेरों का मठ होते हुए फूटा देवल तक जाना होता है।
अगर आप रणकपुर से यहाँ आना चाहते हैं तो आप रणकपुर से सायरा और वेरों का मठ होकर फूटा देवल तक जा सकते हैं। रणकपुर से आप सादड़ी, राजपुरा होकर कुंड धाम तक जा सकते हैं।
रणकपुर से सादड़ी होकर जाने पर लगभग 25 किलोमीटर की दूरी और सायरा होकर जाने पर लगभग 47 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।
फूटा देवल और कुंड धाम दोनों से गुफा तक आपको पैदल जाना होगा। बस आपको ये ध्यान रखना है कि फूटा देवल से गुफा तक जाने के लिए नीचे उतरना होता है जबकि कुंड धाम से चढ़ना होता है।
अगर आप जंगल और पहाड़ों के बीच एडवेंचर के साथ लाखों वर्ष पुरानी उस गुफा को देखना चाहते हैं जिसमें साक्षात भोलेनाथ विराजमान हैं तो आपको यहाँ पर जरूर जाना चाहिए।
आज के लिए बस इतना ही, उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी। कमेन्ट करके अपनी राय जरूर बताएँ।
इस प्रकार की नई-नई जानकारियों के लिए हमारे साथ बने रहें। जल्दी ही फिर से मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ, तब तक के लिए धन्यवाद, नमस्कार।
परशुराम महादेव की मैप लोकेशन, Parshuram Mahadev Ki Map Location
परशुराम महादेव का वीडियो, Parshuram Mahadev Ka Video
लेखक
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}