यहाँ हुआ था महाराणा प्रताप का राजतिलक - Maharana Pratap Ka Rajtilak Sthal, इसमें मेवाड़ की पुरानी राजधानी गोगुन्दा की महादेव बावड़ी के बारे में बताया है।
{tocify} $title={Table of Contents}
महाराणा प्रताप मेवाड़ के ही नहीं पूरे भारत के गौरव हैं। अपने राज्य की स्वतंत्रता और स्वाभिमान के लिए इन्होंने अपने सुखी जीवन को त्यागकर आम जनता के बीच रहकर मुगलों की सेना से लड़ते हुए अपना जीवन गुजारा।
आज हम वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के राजतिलक स्थल का भ्रमण करेंगे और जानेंगे कि इस जगह की हालत अब कैसी है। तो आइए शुरू करते हैं।
महाराणा प्रताप के राजतिलक स्थल का इतिहास, Maharana Pratap Ke Rajtilak Sthal Ka Itihas
महाराणा प्रताप का राजतिलक स्थल वो ऐतिहासिक जगह है जहाँ पर महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ था और कुँवर प्रताप सिंह मेवाड़ के महाराणा बनें थे।
महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक की भी एक रोचक कहानी है। दरअसल हुआ यह था कि विक्रम संवत 1629 यानी 28 फरवरी 1572 में फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को होली के दिन महाराणा उदय सिंह की मृत्यु हो गई।
मेवाड़ राजपरिवार की परंपरा के अनुसार सबसे बड़ा पुत्र दाह संस्कार में सम्मिलित नहीं होता था, लेकिन कुँवर प्रताप ने इस परिपाटी को तोड़ा और महाराणा उदय सिंह के अंतिम संस्कार में शामिल हुए।
महाराणा प्रताप के छोटे भाई कुँवर जगमाल ने महाराणा प्रताप के महल में नहीं होने का फायदा उठाया और अपने आपको मेवाड़ का शासक घोषित कर दिया।
बाद में जब मेवाड़ के सामंतों को इस बात का पता चला तो उन्होंने इस पर आपत्ति उठाई।
सभी सामंतों ने आपस में विचार विमर्श करके प्रचलित परिपाटी के अनुसार महाराणा उदय सिंह के सबसे बड़े पुत्र कुँवर प्रताप को योग्य मानते हुए महाराणा स्वीकार किया।
बाद में कुँवर प्रताप को इस महादेव बावड़ी पर बिठाकर उनका राजतिलक किया। इस प्रकार 28 फरवरी 1572 ईस्वी को महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ।
महाराणा प्रताप के राजतिलक स्थल की यात्रा और विशेषता, Maharana Pratap Ke Rajtilak Sthal Ki Yatra Aur Visheshta
आज लगभग 450 वर्ष बीतने के बाद भी वह महादेव बावड़ी और शिव मंदिर दोनों अपनी जगह पर वैसे ही हैं जैसे महाराणा प्रताप के समय थे। उस समय इस बावड़ी का पानी पीने के काम में लिया जाता था।
इस बावड़ी के चारों कोनों पर चार छतरियाँ बनी हुई है। इन चार छतरियों में से मंदिर के पास वाली एक छतरी में महाराणा प्रताप की प्रतिमा लगी हुई है।
महाराणा प्रताप की प्रतिमा वाली छतरी ही वह जगह है जहाँ पर महाराणा प्रताप को बैठाकर उनका राजतिलक किया गया था।
महाराणा प्रताप की प्रतिमा को देखकर ऐसा महसूस होता है कि जैसे अभी आपके सामने महाराणा प्रताप का राजतिलक हो रहा है। आप अपने सामने महाराणा प्रताप को महसूस करने लग जाते हैं।
बावड़ी में पानी भरा हुआ है लेकिन लोग बताते हैं कि अब इस बावड़ी का पानी पीने के काम में नहीं लिया जाता है। वैसे पानी का रंग देखकर भी ऐसा ही लगता है कि शायद अब यह पीने के लायक नहीं है।
बावड़ी के बगल में ही एक शिव मंदिर बना हुआ है। बहुत से खंभों पर टिका यह मंदिर अपनी बनावट से ही प्राचीन नजर आता है।
इस मंदिर में महाराणा प्रताप भोलेनाथ की आराधना किया करते थे। मंदिर के अंदर गणेशजी और भगवान विष्णु की प्रतिमा भी विराजमान है।
मंदिर के ठीक सामने चतुर्मुखी शिवलिंग और नंदी की प्रतिमा मौजूद है। इन प्रतिमाओं को देखने से लगता है कि ये काफी प्राचीन है और इन पर समय का असर साफ दिखाई देता है।
इन प्रतिमाओं को देखने से लगता है कि कहीं ये प्रतिमाएं इस शिव मंदिर की मूल प्रतिमाएं तो नहीं है क्योंकि समय के साथ-साथ मंदिर का जीर्णोद्धार भी हुआ होगा।
इस महादेव बावड़ी और शिव मंदिर का निर्माण महाराणा खेता यानी महाराणा क्षेत्र सिंह के काल में हुआ था। बाद में महाराणा मोकल और महाराणा उड़ाई सिंह ने इनका जीर्णोद्धार करवाया था।
बगल में ही एक पुराना कमरा बना हुआ है। इस कमरे के बाहर लिखा हुआ है कि इस मंदिर में महाराणा प्रताप ने वर्षों तपस्या की थी। इसके बाहर एक धूणा बना हुआ है।
पास में ही हनुमान जी का मंदिर बना हुआ है। यह मंदिर महाराणा प्रताप के समय का नहीं है। यह बाद में बना है।
मंदिर के आस पास कुछ छतरियाँ बनी हुई है। ये छतरियाँ किन लोगों की याद में बनी है इसकी जानकारी नहीं मिल पाई है। शायद राजपरिवार के सदस्यों की छतरियाँ रही होंगी।
महाराणा प्रताप के राजतिलक स्थल का विकास, Maharana Pratap Ke Rajtilak Sthal Ka Vikas
राजतिलक स्थली के आगे एक पूरा बगीचा विकसित किया गया है। दरअसल, वर्ष 2007 में मेवाड़ कॉम्पलेक्स योजना में राजतिलक स्थली के संरक्षण के लिए राज्य सरकार ने 6 करोड़ 76 लाख रुपए मंजूर किए थे।
इस पैसे से बावड़ी के जीर्णोद्धार के साथ यहाँ पर बगीचा विकसित किया गया, एक एम्फीथियेटर (Amphitheatre) में दर्शकों के बैठने के लिए गोलाकार सीढ़ी बनाई गई है।
साथ ही महाराणा प्रताप और राणा पूंजा की बड़ी प्रतिमाएं लगाई गई और राजतिलक स्थली के चारों तरफ चारदीवारी बनाई गई।
महाराणा प्रताप के राजतिलक स्थल के पास घूमने की जगह, Maharana Pratap Ke Rajtilak Sthal Ke Paas Ghumne Ki Jagah
महाराणा प्रताप का राजतिलक स्थल के आस पास महाराणा उदय सिंह की छतरी, धोलिया जी का पहाड़ और मायरा की गुफा आदि घूमने की जगह है। ये सभी जगह यहाँ से 10 किलोमीटर के अंदर ही है।
महाराणा प्रताप के राजतिलक स्थल तक कैसे जाएँ?, Maharana Pratap Ke Rajtilak Sthal Par Kaise Jayen?
महाराणा प्रताप का राजतिलक गोगुन्दा के अंदर महादेव बावड़ी पर हुआ था। गोगुन्दा, मेवाड़ की राजधानी रहा है। उदयपुर-पिंडवाड़ा हाईवे पर स्थित गोगुन्दा की उदयपुर से दूरी लगभग 37 किलोमीटर है।
महाराणा प्रताप के राजतिलक स्थल पर आप बस या अपने खुद के व्हीकल से जा सकते हो। यहाँ जाने के लिए ट्रेन की सुविधा नहीं है।
उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। ऐसी ही नई-नई जानकारियों के लिए हमसे जुड़े रहें। जल्दी ही फिर मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ।
तब तक के लिए धन्यवाद, नमस्कार।
महाराणा प्रताप के राजतिलक स्थल की मैप लोकेशन, Maharana Pratap Ke Rajtilak Sthal Ki Map Location
महाराणा प्रताप के राजतिलक स्थल की फोटो, Maharana Pratap Ke Rajtilak Sthal Ki Photos
लेखक
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}