हिंदी कविताएँ भाग 1 - Hindi Poems Part 1

हिंदी कविताएँ भाग 1 - Hindi Poems Part 1, इसमें हिन्दी भाषा की कविताएँ सम्मिलित की गई हैं जिसमें अलग अलग मूड की कुल दस कविताएँ शामिल की गई हैं।

Hindi Poems Part 1

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1. हमारा तिरंगा हिंदी कविता


भारत की शान, हमारा तिरंगा
सबकी पहचान, हमारा तिरंगा

पूरब की आन, पश्चिम की बान
उत्तर की शान, दक्षिण का मान
भारतीयों की जान, हमारा तिरंगा

भारत की शान, हमारा तिरंगा
सबकी पहचान, हमारा तिरंगा

घर-घर पर जब तिरंगा, शान से फहराए
मन में श्रद्धा, आस्था, देशप्रेम जगाए
देश की पहचान, हमारा तिरंगा

भारत की शान, हमारा तिरंगा
सबकी पहचान, हमारा तिरंगा

तिरंगे का अशोक चक्र, बहुत कुछ सिखाए
समय का महत्व, 24 भागों में बताए
भारत की प्रगति दिखाए, हमारा तिरंगा

भारत की शान, हमारा तिरंगा
सबकी पहचान, हमारा तिरंगा

हम सब एक है, तिरंगा सिखाता है
अपने तीनों रंगो के, मायने बताता है
भारत महान जताए, हमारा तिरंगा

भारत की शान, हमारा तिरंगा
सबकी पहचान, हमारा तिरंगा

2. नहीं सोचा था हिंदी कविता


नहीं सोचा था,
कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगा
जब जीवन अंधकार में डूबता जायेगा
किसी भी ओर उजाला नजर नहीं आयेगा
मन हद से ज्यादा आशंकित हो जायेगा
गुजरता बीतता, एक एक पल डराएगा

नहीं सोचा था,
कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगा
जब कुछ भी समझ में नहीं आयेगा
मन हमेशा किसी सोच में डूबा रहेगा
मेहनत बेअसर और भाग्य रूठ जायेगा
लगेगा कि सोना भी छुआ तो मिट्टी बन जायेगा

नहीं सोचा था,
कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगा
जब तथाकथित घर और परिवार छूट जायेगा
जैसे अकेला आया था, उसी तरह अकेला रह जायेगा
उम्मीद और भरोसा, इस कदर टूट कर बिखर जायेगा
दिल अब किसी पर भी यकीन नहीं कर पायेगा

नहीं सोचा था,
कि जिंदगी में ऐसा दौर भी आएगा
जब जीवन की दोपहर में दर-दर भटकता रह जायेगा
जीने की इच्छा शक्ति से धीरे धीरे दूर होता जायेगा
तू अब तक समझ में नहीं आया, आगे भी नहीं आयेगा
शायद यही नियति तेरी, तू एक दिन यूँ ही गुजर जायेगा

3. हथियार डालकर ना मरो हिंदी कविता


जब जीवन में निराशा और नाउम्मीदी बढ़ जाए
जब चारों तरफ अंधकार दिखाई देने लग जाए
जब हौसला पूरी तरह से पस्त होने लग जाए
जब उम्मीद का सूरज अस्त होने लग जाए

तो एक बार जरूर गौर कर लेना
उन महाराणा प्रताप के जीवन पर
जिन्होंने अकबर की दासता के सुखों को त्यागकर
स्वाभिमान और स्वतंत्रता के दुखों को अपनाकर
वन-वन भटक कर, गुफाओं में रहकर
भोजन की जगह घास की रोटी खाकर
कभी अपने लक्ष्य से मुँह नहीं मोड़ा

प्रताप का पूरा जीवन भागदौड़ और संघर्षों में बीता है
एकलिंग, इनके कृष्ण और स्वाभिमान इनकी गीता है
जब-जब इनके बीवी बच्चों ने घास की रोटी खाई है
तब-तब ये भी टूटे हैं, इनकी भी अंतरात्मा घबराई है
करुण दृश्य देखने के बाद, ये और मजबूती से खड़े हुए
सब समस्याओं के बाद भी, रहे अपने लक्ष्य पर अड़े हुए

अब जरा गौर करना अपने जीवन पर
तौलना इसे महाराणा प्रताप के जीवन के साथ
फिर खुद से पूछना कि
क्या तुमने किसी राजवंश में जन्म लिया है?
क्या तुम किसी रियासत के राजा रहे हो?
क्या तुम्हें अपना राज्य गवाना पड़ा है?
क्या तुम्हें अपने परिवार के साथ जंगल में भटकना पड़ा है?
क्या तुमने अपने परिवार के साथ गुफाओं में रात बिताई है?
क्या तुमने अपने बीवी, बच्चों को घास की रोटी खिलाई है?

महाराणा का जीवन, त्याग और बलिदान से ओत-प्रोत है
जिसमे हल्दी घाटी का मैदान, अनंत ऊर्जा का स्रोत है
महाराणा का संघर्ष और लक्ष्य, दोनों ही बहुत बड़े थे
वो अपने लिए नहीं, अपनी मातृभूमि के लिए लड़े थे
तुम अपने जीवन के लिए भी लड़ नहीं पा रहे हो
असफलताओं का दोष किसी ओर को दिए जा रहे हो

क्या तुम्हारा संघर्ष महाराणा के संघर्ष से भी बड़ा है?
क्या तुमसे लड़ने के लिए कोई बादशाह अकबर खड़ा है?
अगर नहीं, तो फिर आत्मविश्वास में कमी क्यों हैं?
अगर नहीं, तो फिर आँखों में अकसर नमीं क्यों है?
महाराणा से प्रेरणा लेकर, सब कुछ फिर से शुरू करो
संघर्ष का नाम ही जीवन है, संघर्षों से ना डरो

सही है, सफलता में हस्त रेखाओं का भी योगदान होता है
लेकिन, वो लोग भी तो सफल होते हैं, जिनके हाथ नहीं होते
कहते हैं कि निरंतर कर्म करने से भाग्य बदल जाता है
चींटी का अथक परिश्रम, इसी बात को दिखलाता है
तुम कुछ कर सकते हो, अपनी मेहनत से इसे साबित करो
मरना एक दिन सबको है, हथियार डालकर तो ना मरो


4. फूलों को महक दी कुदरत ने हिंदी कविता


फूलों को महक दी कुदरत ने
काँटों को हमें महकाना है
जो काम किसी से हो ना सका
वो काम हमें कर जाना है।

सूरज से उजाला क्यों मांगे
चाँद सितारों से क्यों उलझे
जीवन की अँधेरी रातों में
अब खुद को हमें चमकाना है।

दौलत के नशे में चूर हो क्यों
ताकत पे बेहद मगरूर हो क्यों
दुनिया है तमाशा दो दिन का
सब छोड़ यहीं पर जाना है।

लफ्जों की भी कीमत होती है
लफ्जों का तुम सम्मान करो
शायद वो हकीकत बन जाए
जो लफ्ज अभी अफसाना है।

ऐ दोस्त बहारों का मौसम
हर वक्त नहीं रहने वाला
जो आज खिला है गुलशन में
उस फूल को कल मुरझाना है।

5. सोशल मीडिया के सिपाही हिंदी कविता


जब से सोशल मीडिया आया है
फेसबुक व्हाट्सएप और ट्विटर का बुखार
सभी तरफ छाया है
नशा इस कदर बढ़ गया है
नफरत का जहर हर तरफ फैल गया है
जीवन की आपाधापी में
एक दौड़ सी लगी रहती है
हर मसला सोशल मीडिया पर सुलझाने के लिए
एक होड़ सी लगी रहती है।

अगर बात देशभक्ति की हो तो
हर कोई भगत सिंह बनकर
शब्दों का असला लेकर
सोशल मीडिया के परिसर में
धमाके कर अपनी देशभक्ति साबित करता है
फर्क इतना है कि
भगत सिंह आजादी के लिए
सूली पर चढ़ गए थे
और ये सोशल मीडिया के क्रांतिकारी
घर में बैठे-बैठे
चाय कॉफी की चुस्कियों के साथ
वक्त की नजाकत को समझते हुए
क्रान्ति को अंजाम देते हैं।

जब कोई आतंकवादी हमला होता है तो
आवाम के अघोषित प्रतिनिधि बनकर
पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करने के लिए
रात-दिन सोशल मीडिया पर
पोस्ट लिखते हैं
जो इनके विचारों से सहमत नहीं हो
उसे गद्दार और देशद्रोही बताकर
तुरंत पाकिस्तान भेजते हैं।

इन्हें गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार,
महंगाई, बिजली, पानी आदि से
कोई मतलब नहीं है
इन्हें शहीदों के परिवार को मिलने वाली
उस सहायता से भी कोई मतलब नहीं है
जो किसी सरकार ने शहीद होने पर
उस परिवार के लिए घोषित की थी
इन्हें सरकारी सहायता के लिए
भटकती शहीद की वीरांगना, अबोध बच्चों और माँ की
उन अश्रु पूरित आँखों से भी कोई मतलब नहीं है
जो अपने पति, पिता और पुत्र को खोने के बाद
सम्मान की उम्मीद में तकती है।

खुफिया विभाग द्वारा
आतंकवादी हमले के अंदेशे के पश्चात भी
ये सत्ता को उसके उस नाकारापन के लिए
कभी नहीं कोसते हैं
जिसकी वजह से आतंकवादी हमला हो जाता है
ये अपने आप को सैनिकों का शुभचिंतक बताकर
सिर्फ ढिंढोरा पीटते हैं
और सैनिकों को घटिया खाना मिलने पर भी
सत्ता के खिलाफ नहीं बोलते हैं।

शायद ये अपनी देशभक्ति को
अपने फायदे के तराजू में तौलते हैं
तभी तो ये अधिकतर समय
सिर्फ अपने फायदे के लिए मुँह खोलते हैं
सोशल मीडिया के इन तथाकथित सिपाहियों में
अमूमन वो लोग ज्यादा होते हैं
जो सक्षम तथा अच्छे ओहदों पर होते हैं
जिनके घरों से शायद एक भी सैनिक नहीं निकलता है
ये क्या जाने जब कोई सैनिक मरता है
तो कई दिनों तक उसके घर में चूल्हा नहीं जलता है।

इनके हिसाब से वास्तविक युद्ध भी
सोशल मीडिया की पोस्टों की तरह लड़ा जाता है
परन्तु ये नहीं जानते हैं कि
बार्डर पर जब एक जिंदगी जंग लड़ती है
तब उसके पीछे कई जिंदगियाँ
रातों को जाग-जागकर भगवान से
उसकी सलामती की दुआ करती हैं।

सरकारी अवार्ड लौटाने वालों को लताड़कर
कलाकारों को फिल्मों से निकलवाकर
कभी मंदिर-मस्जिद
कभी हिन्दू-मुस्लिम
कभी कश्मीर को लेकर
किसी को भी, कभी भी
देशद्रोही का तमगा तुरंत देकर
अपनी चपलता का परिचय देते रहते हैं।

गाली-गलौच और अपशब्द हैं इनके प्रमुख हथियार
जिनसे ये अपने सभी विरोधियों पर करते हैं वार
राहुल को पप्पू, ममता को गाली
केजरीवाल को खुजली बताकर बजाते हैं ताली
हर वो शख्स जो सत्ता के विरोध में बोलता है
इनके द्वारा देशद्रोही कहलाकर
इनके कहर को झेलता है
ऐसा लगता है कि ये
विपक्ष विहीन भारत चाहते हैं
तभी तो किसी न किसी मुद्दे पर
स्वघोषित नृप द्वारा आयोजित
अश्वमेध यज्ञ के अश्व को घुमाते है।

आधुनिक नृप भी
सोशल मीडिया की ताकत से वाकिफ है
तभी तो अश्वमेध की सफलता के लिए
सेनानायकों को सौंपी जिम्मेदारी है
सेनानायक चौबीसों घंटे
रणनीतिक तैयारियों के तहत
चाणक्य के उपाय-चतुष्ठय को अपनाकर
नए-नए मैसेज तथा पोस्ट रचकर
सोशल मीडिया पर अश्वमेध की
सफलता सुनिश्चित करते हैं
नृप और उसके सेवक, काफी चतुर और सजग है
जो स्वयं सेनानायकों को फॉलो कर
पल-पल की रणनीति और तैयारियों पर नजर रखते हैं।

मार्केटिंग की ताकत से
मिट्टी को सोना बनाकर बेचा जा सकता है
भारतीय बहुत भावुक होते हैं इसलिए
भावनाओं से खेलकर सत्ता तक
फिर से पहुँचा जा सकता है
मार्केटिंग के सभी हुनर अपनाकर
अपनी जयकार करवाओ
हिन्दू शेर की उपाधि के साथ फिर से सत्ता पाओ।

6. मैं नादान था हिंदी कविता


मैं नादान था जो इस भुलावे में रहा
कि परिवार एक मंदिर की तरह होता है
जिसमें कई देवी-देवताओं का वास होता है
आखिर मैं इस सच्चाई को क्यों नहीं समझ पाया
कि परिवार की वजह से ही राम को बनवास होता है

मैं नादान था जो इस भुलावे में रहा
कि मेरे दिल को कोई पढ़ लेगा
जान लेगा कि मुझमें कोई सनक नहीं है
बस एक ही कमी रह गई मुझ में
कि मेरे पास सिक्कों की खनक नहीं है

मैं नादान था जो इस भुलावे में रहा
कि दुनिया में कोई है जो मुझे जानता है
सुख में और दुख में मुझे अपना मानता है
मेरी आँखों से ही जान लेता है मेरे दिल का हाल
और मेरी हँसी को मुझसे ज्यादा पहचानता है

नादानी से निकल कर अब मैं ये जान चुका हूँ
दुनियादारी को हद से ज्यादा पहचान चुका हूँ
अपनों से ठोकरें खा कर इस बात को मान चुका हूँ
आज के युग में पैसा ही काबिलियत का सबूत है
मैं अब अपनी काबिलियत साबित करने की ठान चुका हूँ

7. साठ की उम्र में जीवन दर्शन हिंदी कविता


साठ का होने पर ये समझ आया
कि अगर अस्सी वर्ष की उम्र भी मानूँ
तो अब बीस ही बची है
जीवन धीरे-धीरे कब हाथ से फिसल गया
ये सोच सोच कर
मन में खलबली सी मची है

गुजरे साठ वर्षों में
क्या पाया और क्या खोया
लौटकर अतीत में
जब करता हूँ जीवन का आँकलन
गिनने लगता हूँ उपलब्धियों को
सिवाए वक्त कटने के कुछ नजर नहीं आता

किस-किस कार्य को उपलब्धि मानूँ
क्या-क्या गिनूँ
बचपन में नए खिलौने ही उपलब्धि थी
जवानी में पैसा कमाना ही उपलब्धि थी
लेकिन आज ना जाने क्यों
कुछ भी उपलब्धि नजर नहीं आती

आज समझ में आ रहा है
कि ये जीवन बड़ा नश्वर है
यहाँ सिकंदर भी खाली हाथ ही रुखसत होता है
और जो माया मोह लोभ लालच में
दिन रात उलझा रहता है
वो उम्र के इस दौर में भी अपना चैन खोता है

आज लगता है कि मैं जिन्हें उपलब्धियाँ समझ कर
दौड़ता रहा, भागता रहा, जिनके पीछे दिन रात
कहीं वो माया रुपी कस्तूरी मृग तो नहीं था
जिसकी मरीचिका में भाग-भागकर
पहुँच गया उस मोड़ पर जिसके आगे
दूर दूर तक कोई रास्ता नजर नहीं आया

वक्त बड़ा संगदिल दोस्त है
जो चौबीसों घंटे साथ रहकर भी
दोस्ती को नहीं निभाता
चलता रहता है निरंतर
मेरे थककर रुकने पर भी
कभी मेरे लिए नहीं रुकता

आज जब गौर करता हूँ
कि इस दुनिया से मेरे जाने के बाद
कितनी पलकें भीगेगी मेरी याद में
उंगलियों पर गिनती शुरू करने पर
मेरा अंगूठा मेरी उंगली पर
बमुश्किल कुछ दूरी तक ही चल पाया

8. वो सुबह कभी तो आएगी हिंदी कविता


कुछ लोग सपने बड़े संजोते है
फिर मैयत उनकी ढोते हैं
सबके व्यंग बाण सहते हैं
लेकिन चुप ही रहते हैं

सबको मनमौजी दिखते हैं
प्रेम की कौड़ी में बिकते हैं
सनकी भी समझे जाते हैं
दिल ही दिल में सब पी जाते हैं

गम को गले लगाते हैं
तनहाई में आँसू बहाते हैं
ईश्वर से ये कहते हैं
हम धरती पर क्यों रहते हैं

क्यों सब हमको ठुकराते हैं
क्यों गले नहीं लगाते हैं
क्यों उपेक्षित से रह जाते हैं
क्यों प्यार नहीं हम पाते हैं

सपने दिन रात सताते हैं
अकेलेपन को गले लगाते हैं
जिससे भी बतियाते हैं
वो समझ हमें नहीं पाते हैं

कहने को सब का साथ है
सर पे सभी का हाथ है
फिर ऐसी क्या बात है
जो हर रात अमावस की रात है

जिस काम में भी हाथ डालते हैं
उस काम का जनाजा निकालते हैं
मेहनत पूरी करते हैं
पर केवल हाथ मलते हैं

असफल होना कर्मों का फल लगता है
शायद, इसलिए कुछ भी नहीं फलता है
मन घुट घुट कर, तिल तिल कर, मरता है
पर जाने किस उम्मीद में जीवन चलता है

अब जीवन का वो मुकाम आ गया
जहाँ लोगों के जीवन में खुशी है
पर हमारे जीवन में
आज भी छाई खामोशी है

बढ़ती खामोशी धीरे धीरे नकारात्मकता लाती है
अब जीवन किस काम का, यही बात बतलाती है
त्याग दे ये असफल जीवन, छोड़ दे सभी सुनहरे सपने
बारम्बार आँखों के सामने घूम जाते हैं कुछ चेहरे अपने

इन चेहरों की अश्रु पूरित कातर नजरे डोलती है
टकटकी लगाकर डबडबाई आँखें ये बोलती है
तुम्हारे बाद हमारा क्या होगा, हम कैसे जी पाएँगे
दुनिया बड़ी बेरहम है, क्या हम सुखी रह पाएँगे

ये चेहरे ही जीवन बचाते हैं
मरे हुए आत्मविश्वास को फिर से जगाते हैं
उम्मीद की सुनहरी किरण फिर से दिखाते हैं
नाउम्मीदी के अंधकार में जीवन का लक्ष्य बताते है

जीवन पर हमारा हक नहीं, यह ईश्वर की नैमत है
इसका चलते रहना ही खुदा की इबादत है
जिस दिन इस इबादत का अंत अपने आप होगा
केवल उस दिन ही आत्मा का परमात्मा से मिलाप होगा

सफलता, असफलता और भाग्य, उस ईश्वर के हाथों में है
बिना फल के कर्म करने का ज्ञान, हमेशा उसकी बातों में है
आज से जीवन को ईश्वर की अमानत समझकर जीना है
दुख रूपी जहर को, नीलकंठ बनकर खुशी खुशी पीना है

जीवन अनमोल है यह अब हमने ठान लिया
नियति को स्वीकार कर इसको अपना मान लिया
चाहे कुछ भी हो जाए फिर से नई शुरुआत करनी है
वो सुबह कभी तो आएगी, गम की रात भी ढलनी है

9. कॉलेज लाइफ फिर से जिऊँ हिंदी कविता


उदयपुर मेरी जन्म स्थली नहीं, विद्या स्थली रही है
इस जैसा दूसरा शहर पूरी दुनिया में कहीं नहीं है
बहुत सीधे, सरल, भोले है लोग यहाँ के
रखते है सभी को अपनी छत्र छायाँ में छुपा के

लेकिन फिर भी, गुजरे हुए दिन सभी को याद आते हैं
ये दिन अगर कॉलेज के हों, तो बहुत तड़पाते हैं
आँखों के सामने पुराना मंजर घूम जाता है
पल दो पल के लिए मन खुशी से झूम जाता है

बचपन के दोस्तों और परिवार के बिन
कॉलेज में था जब मेरा पहला दिन
दिल था थोडा उदास और थोडा सा खिन्न
लगता था, कैसे बीतेंगे मेरे ये पल छिन

कुछ दिन बीते, धीरे-धीरे मन बदलने लगा
उदासी ढलने लगी और दिल मचलने लगा
नए यारों के साथ दूर होने लगी तन्हाई
उदयपुर की आबो हवा मेरे मन में समाई

दिन कॉलेज में और शाम को फतहसागर की पाल
यारों के साथ इधर उधर घूमते फिरते करते धमाल
पाल के चारों तरफ झुण्ड में बाइक से घूमना
बिना किसी की परवाह किये कहीं पर भी झूमना

पाल पे बैठे-बैठे हाथों से चाय का इशारा
चाय में देरी बिलकुल ना थी गवारा
किसी के हाथों में होता था भुना हुआ भुट्टा
कोई मारता था छुपा कर सिगरेट का सुट्टा

कई बार यहीं पर दिख जाते थे गुरुदेव हमारे
वो हमें निहारे हम उन्हें निहारे
गुरु शिष्य दोनों नजरे बचाकर अनदेखा कर जाते
अगले दिन क्लास में इशारों में पूरा किस्सा दोहराते

सहेलियोँ की बाड़ी में सहेलियों को तकना
ना जाने क्यों, दूर तलक पीछे पीछे चलना
पलटकर देखे जाने पर अचानक से रूकना
जूते की डोरी को खोलकर उसको कसना

गुलाब बाग की मस्ती और पिछोला का जोश
गन्ने के रस का बड़ा गिलास उड़ाता था होश
चेतक सिनेमा की फिल्में और स्वप्नलोक का जुनून
कई बार अशोका में भी मिल जाता था स्वप्नलोक सा सुरूर

कंधे पर एप्रिन और मदमस्त हाथी सी चाल
यारों का साथ और रुतबा बनता था ढाल
बिना पैसे दिए टेम्पो पर लटकनें का खुमार
चाय की टपरी पे गपशप में सभी होते थे शुमार

सिटी पैलेस, गुलाब बाग में विदेशियों को देखना
टूटी फूटी अंग्रेजी में उल्टा सीधा कुछ भी फेंकना
उदयापोल, सूरजपोल और देहली गेट का नजारा
अब सिर्फ यादों में है, बहुत वर्षों से ना देख पाया दुबारा

जो गुजर गया वो एक सुन्दर सपना था
मेरा कॉलेज और उदयपुर सब अपना था
जहाँ मिला अमिट प्यार और अपनापन
उसी चाहत में आज भी तड़पता है मेरा मन

उम्र के साथ कई दोस्तों के ओहदे भी बड़े हो गए हैं
पैसे की चाहत और दुनियादारी के मसले खड़े हो गए हैं
मेरे दोस्तों को पुरानी जिंदगी याद तो आती होगी
वर्षों में ही सही कभी-कभी तो आँखे भिगाती होगी

फतेहसागर, सुखाडिया सर्किल, सब वहाँ है
मगर मेरे पुरानें साथी न जाने कहाँ है
बहुत बार दिल करता है कि वही पल फिर से जीऊँ
उन्हीं दोस्तों के साथ एक कप चाय फिर से पीऊँ
एक कप चाय फिर से पीऊँ

10. मैं हूँ विद्यार्थी हिंदी कविता


जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
आया शरण में तेरी
अरज तू सुन ले मेरी
देखते देखते साल चला गया
जाते जाते मुझको जला गया
इस साल मैं पढ़ ना पाया
मजे भी कर ना पाया
अब बेडा पार लगा दे माँ
मुझको पास करा दे माँ

जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
किससे करूँ मेरे मन की बात
दोस्त भी माथा पकडे रोये दिन रात
मैंने बोला यार मैं तो पढ़ नहीं पाया
वो बोला यार मैं भी पढ़ नहीं पाया
सारे बोले यार हम तो पढ़ नहीं पाए
कोरस में सारे रोये हाये हाये
हाये को याहू में बदलवा दे माँ
मुझको पास करा दे माँ

जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
लगा था इस साल भी
प्रमोट हो जाऊंगा
बिना पढ़े लिखे ही
पास हो जाऊँगा
अगर एग्जाम हुई
कुछ भी लिख नहीं पाऊंगा
मुझको प्रमोट करा दे माँ
मुझको पास करा दे माँ

जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
अगर एग्जाम हुई
डब्बा गोल हो जायेगा
तेरा ये पक्का भक्त
कहाँ मुँह छुपायेगा
दंडवत प्रणाम करके
नारियल चढाऊंगा
अगरबत्ती जलाऊंगा
भक्ति की शक्ति दिखा दे माँ
मुझको पास करा दे माँ

जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी
जय हो माँ भारती
मैं हूँ विद्यार्थी ...

लेखक

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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