इस जगह हुआ था हल्दीघाटी का युद्ध - Rakt Talai Haldighati Ke Yuddh Ka Maidan

इस जगह हुआ था हल्दीघाटी का युद्ध - Rakt Talai Haldighati Ke Yuddh Ka Maidan, इसमें हल्दीघाटी के युद्ध की जगह रक्त तलाई के बारे में जानकारी दी गई है।


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आज हम आप को उस जगह के बारे में बताते हैं जहाँ पर 18 जून 1576 के दिन महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच घमासान युद्ध हुआ था। इस जगह को रक्त तलाई के नाम से जाना जाता है।

इस जगह का नाम रक्त तलाई पड़ने कारण यह है कि इस युद्ध में दोनों तरफ के इतने ज्यादा सैनिक मारे गए थे कि उनके रक्त से बनास नदी के किनारे पर स्थित इस जगह पर लाल रंग का तालाब बन गया था।

रक्त यानी खून से तालाब भर जाने की वजह से इस जगह को रक्त तलाई (Pond of Blood) कहा जाता है। आपको बता दें कि तालाब को स्थानीय भाषा में तलाई भी कहा जाता है।

दरअसल उस दिन बारिश होने की वजह से इस क्षेत्र की निचली भूमि पर युद्ध में मारे गए सैनिकों के खून और बारिश के पानी ने मिलकर एक तालाब का रूप ले लिया था।

इस बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि युद्ध में कितने सैनिक मारे गए होंगे। तो आइए, आज हम हल्दीघाटी के उस मैदान को देखते हैं जहाँ महाराणा प्रताप और अकबर की सेना में युद्ध हुआ था।

रक्त तलाई की यात्रा और विशेषता, Rakt Talai Ki Yatra Aur Visheshta


कभी एक बड़े मैदान के रूप में रही इस जगह ने अब एक पार्क का रूप ले लिया है। पार्क काफी बड़ा है जिसमें कुछ छतरियाँ बनी हुई है।

रक्त तलाई के इस पार्क को देखकर एक बात तो साफ नजर आती है कि ये स्थल भी उसी प्रकार उपेक्षा झेल रहा है जिस प्रकार हल्दीघाटी का मूल दर्रा।

ऐसा लगता है कि अब इस जगह का केवल ऐतिहासिक महत्व ही रह गया है, बाकी देखने लायक तो इसमें ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता जिससे टूरिस्ट आकर्षित हो सके।

यह जगह अब देखने से ज्यादा महसूस करने की ही रह गई है। यही वो जगह है जहाँ युद्ध में महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक, मानसिंह के हाथी पर चढ़ गया था।

यहाँ पर हल्दीघाटी के योद्धाओं की याद में स्मारक बने हुए हैं। जो योद्धा जिस जगह पर वीरगति को प्राप्त हुआ, उस जगह पर उनका स्मारक बना हुआ है।


झाला मान सिंह की छतरी, Jhala Man Singh Ki Chhatri


रक्त तलाई में अंदर जाते ही सामने की तरफ झाला मान सिंह की छतरी बनी हुई है। छतरी के अंदर सती स्तम्भ लगा हुआ है।

बड़ी सादड़ी के झाला मान सिंह के बारे में बताया जाता है कि उनकी कद काठी महाराणा प्रताप के जैसी थी। इनकी वजह से ही महाराणा प्रताप हल्दीघाटी से सुरक्षित बाहर निकल पाए।

हल्दीघाटी के युद्ध में जब महाराणा प्रताप चारों तरफ से मुगलों से घिर गए थे तब झाला मान ने मुगलों को धोखा देने के लिए महाराणा प्रताप का छत्र धारण करके उनकी जगह पर युद्ध किया।

मुगल सेना ने इन्हें महाराणा प्रताप समझ कर इन पर आक्रमण किया और इन्होंने मुगल सेना से लड़ते-लड़ते अपने प्राणों का बलिदान दिया।

इस प्रकार झाला मान सिंह ने महाराणा प्रताप को युद्ध क्षेत्र से सुरक्षित बाहर निकालने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया।

सती माता का स्थान, Sati Mata Ka Sthan


झाला मान सिंह की छतरी के पास एक पेड़ के नीचे सती माता का स्थान बना हुआ है। ऐसा बताया जाता है कि इस स्थान पर महाराणा प्रताप के किसी योद्धा की पत्नी सती हुई थी। अब इस स्थान को सती माता के मंदिर के रूप में पूजा जाता है।

हकीम हकीम खाँ सूर की मजार, Hakim Khan Sur Ki Majar


रक्त तलाई में झाला मान सिंह की छतरी से लेफ्ट साइड में थोड़ा आगे जाने पर एक मजार बनी हुई है। यह मजार महाराणा प्रताप के सेनापति हकीम खाँ सूर की है।

इस जगह पर सेनापति हाकिम खान सूर लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए थे। बताया जाता है कि इन्होंने मरने के बाद में भी अपनी तलवार को नहीं छोड़ा था जिस वजह से इन्हें इनकी तलवार के साथ ही दफनाया गया।

ऐसा बताया जाता है कि युद्ध में इस जगह पर लड़ते-लड़ते हकीम खाँ सूर का सिर धड़ से अलग हो गया था। सिर के धड़ से अलग हो जाने के बाद भी इनका धड़ लड़ते-लड़ते हल्दीघाटी के दर्रे के पास जाकर गिरा।

इस तरह से इनका सिर रक्त तलाई में और धड़ हल्दीघाटी के दर्रे के पास गिरा। कुछ सदियों बाद में इन दोनों जगहों पर इनकी मजार बनाकर इन्हें पीर का दर्ज दिया गया।

रक्त तलाई के अलावा हकीम खाँ सूर की दूसरी मजार, बादशाही बाग के अंतिम छोर से थोड़ा आगे हल्दीघाटी की मुख्य चढ़ाई की शुरुआत के लेफ्ट साइड में सड़क के किनारे बनी हुई है।

वर्षों पहले यह मजार, हल्दी घाटी के दर्रे के पास पहाड़ी पर थी। उस समय यह सड़क दो पहाड़ों के बीच में से निकलती थी।

हल्दीघाटी के मूल दर्रे को बचाने के लिए उस सड़क के लेफ्ट साइड की पहाड़ी को काटकर नई सड़क बनाई गई। इस वजह से यह मजार नई घुमावदार सड़क की ठीक शुरुआत में ही धरातल पर आ गई।

रामशाह तंवर और उनके पुत्रों की छतरी, Ram Shah Tanwar Aur Unke Putron Ki Chhatri


झाला मान सिंह की छतरी से सीधे आगे जाने पर दो छतरियाँ एक साथ बनी हुई हैं जिन्हें तँवरों की छतरी कहा जाता है। इनमें से एक छतरी में सती स्तम्भ लगा हुआ है।

इस स्थान पर ग्वालियर के राजा रामशाह तंवर की तीन पीढ़ियों ने एक साथ बलिदान दिया था। युद्ध में राम शाह के साथ उनके बेटे और पोते वीरगति को प्राप्त हुए।

युद्ध में रामशाह तंवर के साथ उनके तीन पुत्र शालिवाहन सिंह, भवानी सिंह एवं प्रताप सिंह और उनके पोते यानी शालीवाहन के 16 वर्षीय पुत्र बलभद्र सिंह ने अपने प्राणों का बलिदान दिया।

तंवरों की तीन पीढ़ी के इस बलिदान को ध्यान में रखते हुए सन् 1624 ईस्वी में मेवाड़ के महाराणा करण सिंह ने उनकी याद में छतरी का निर्माण करवाया।

यहाँ बना था खून का तालाब, Yahan Bana Tha Khoon Ka Talab


झाला मान सिंह की छतरी से राइट साइड में आगे जाने पर वो जगह आती है जहाँ पर युद्ध के समय खून का तालाब बन गया था।

जिस जगह पर खून का तालाब बना था उस जगह पर अब एक पक्का पूल बना दिया गया है। अब इस जगह को देखकर वैसी फीलिंग नहीं आती जैसी रक्त तलाई का नाम सुनकर आती है।

बादशाही बाग, Badshahi Bag


रक्त तलाई के साथ ही हम बात करते हैं बादशाही बाग के बारे में। हल्दीघाटी के दर्रे के पास इस जगह पर हल्दीघाटी के युद्ध के समय अकबर की सेना ने अपना पड़ाव डाला था।

अकबर की सेना के इस पड़ाव स्थल को अब एक गार्डन के रूप में बदल गया है जिसे बादशाही बाग के नाम से जाना जाता है।

हल्दीघाटी के युद्ध के समय पर यह जगह पहाड़ियों से घिरे हुए जंगल के रूप में थी जिसके चारों तरफ पहाड़ियाँ और घने पेड़ पौधे हुआ करते थे।

यह पार्क भी अब केवल ऐतिहासिक महत्व के लिए ही रह गया है, बाकी यहाँ पर भी देखने लायक कुछ विशेष नहीं है।

रक्त तलाई के पास घूमने की जगह, Rakt Talai Ke Paas Ghumne Ki Jagah


अगर हम रक्त तलाई के पास घूमने की जगह के बारे में बात करें तो हल्दीघाटी का दर्रा, महाराणा प्रताप की गुफा, चेतक की समाधि, चेतक नाला, प्रताप स्मारक आदि जगह देखी जा सकती है।

रक्त तलाई कैसे जाएँ?, Rakt Talai Kaise Jayen?


अब हम बात करते हैं कि रक्त तलाई कैसे जाएँ? रक्त तलाई, खमनौर गाँव के बीच में स्थित है। हल्दीघाटी के युद्ध के समय यह जगह एक खाली मैदान के रूप में थी।

उदयपुर रेलवे स्टेशन से यहाँ की दूरी लगभग 50 किलोमीटर है। उदयपुर से रक्त तलाई तक जाने के लिए आपको उदयपुर-गोगुंदा हाईवे पर घसियार से आगे ईसवाल से राइट टर्न लेकर लोसिंग से बलीचा होते हुए जाना है। आप नाथद्वारा होते हुए भी खमनौर जा सकते हैं।

अगर आप हल्दीघाटी के युद्ध के बारे में गहराई से जानना चाहते हैं तो आपको महाराणा प्रताप की सबसे बड़ी कर्म भूमि हल्दीघाटी के युद्ध के इस मैदान को जरूर देखना चाहिए।

आज के लिए बस इतना ही, उम्मीद है हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी। कमेन्ट करके अपनी राय जरूर बताएँ।

इस प्रकार की नई-नई जानकारियों के लिए हमारे साथ बने रहें। जल्दी ही फिर से मिलते हैं एक नई जानकारी के साथ, तब तक के लिए धन्यवाद, नमस्कार।

रक्त तलाई की मैप लोकेशन, Rakt Talai Ki Map Location



रक्त तलाई की फोटो, Rakt Talai Ki Photos


Rakt Talai Haldighati Ke Yuddh Ka Maidan

Rakt Talai Khoon Ka Talab

Rakt Talai Ram Shah Tanwar Chhatri

Ram Shah Tanwar Chhatri Sati Stambha

Rakt Talai Hakim Khan Sur Majar

Rakt Talai Jhalaman Chhatri

Rakt Talai Main Gate

लेखक
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
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