कुम्भलगढ़ में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार - Kumbhalgarh Ka Kila

कुम्भलगढ़ में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार - Kumbhalgarh Ka Kila, इसमें राजस्थान के राजसमंद में स्थित कुम्भलगढ़ के किले के बारे में जानकारी दी गई है।


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आज हम आपका परिचय उस धरोहर से करवाते हैं जो अपने वास्तु एवं शिल्प के साथ-साथ अपने सामरिक एवं ऐतिहासिक महत्व के लिए भी इतनी अधिक विख्यात है कि जिसे यूनेस्को को वर्ष 2013 में वर्ल्ड हेरिटेज साईट घोषित करना पड़ा।

ये वो धरोहर है जहाँ पर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार बनी हुई है। ये धरोहर स्वाभिमानी वीर योद्धा महाराणा प्रताप की जन्म स्थली होने के साथ-साथ मुगल शहंशाह अकबर से उनके संघर्ष के दिनों की शरण स्थली भी रही।

इसी धरोहर में बलिदानी पन्ना धाय द्वारा चित्तोड़गढ़ से महाराणा प्रताप के पिता कुंवर उदय सिंह को बाल्यावस्था में बनवीर से बचाकर लाया गया था।

इसी धरोहर में महाराणा कुम्भा के पौत्र एवं राणा रायमल के पुत्र कुंवर सांगा (राणा सांगा) और कुंवर पृथ्वीराज का बचपन गुजरा।

इसी धरोहर में किसी से पराजित ना होने वाला महाराणा कुम्भा राज गद्दी की लालसा में मदमस्त अपने पुत्र कुंवर ऊदा सिंह (उदय सिंह प्रथम) के हाथो मारा गया।

यह विश्व प्रसिद्ध विरासत राजसमन्द जिले में अरावली की पहाड़ियों के बीच में स्थित एक विशाल दुर्ग है जिसे कुम्भलगढ़ के अतिरिक्त कुम्भलमेर, मेवाड की आँख, अजयगढ आदि नामों से भी जाना जाता है।

इस दुर्ग की ऊँचाई के लिए अकबर के नवरत्न अबुल फजल ने लिखा है कि यह दुर्ग इतनी अधिक ऊँचाई पर बना है कि ऊपर देखने पर सिर से पगड़ी नीचे गिर जाती है।

कुंभलगढ़ कैसे जाएँ?, Kumbhalgarh Kaise Jayen?


यह दुर्ग उदयपुर से लगभग 85 किलोमीटर एवं राजसमन्द से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर केलवाडा कस्बे के निकट स्थित है।

यहाँ पर आने के लिए सड़क कई घाटियों के बीच में से गुजरती है जिस वजह से किले तक पहुँचने तक का सफर बड़ा रोमांचकारी हो जाता है।

लाखेला तालाब या लाखोला कुंड, Lakhela Talab Ya Lakhola Kund


केलवाडा से कुम्भलगढ़ की तरफ चलते ही लगभग 5 किलोमीटर की लम्बाई में फैला जलाशय आता है जिसे लाखेला या लाखोला तालाब के नाम से जाना जाता है। इसे महाराणा कुम्भा के पितामह (दादाजी) महाराणा लाखा ने बनवाया था।

यह दुर्ग समुद्र तल से लगभग 1100 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। साथ ही चारों तरफ से पहाड़ों एवं घने जंगल से घिरा हुआ है जिसमे अनेक प्रकार के जंगली जानवरों का निवास है।

इस दुर्ग की एक बड़ी खासियत इसकी लोकेशन भी है। दुर्ग के चारों तरफ स्थित पहाड़ियों की वजह से इस किले की बनावट इस प्रकार की बनी हुई है कि यह दुर्ग बहुत निकट से भी दिखाई नहीं देता है।

संभवतः इसी वजह से इसे हिडन जेम्स भी कहा जाता है। मध्यकालीन युग में इसकी यह संरचना शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करती थी।

कुंभलगढ़ के किले का निर्माण, Kumbhalgarh Ke Kile Ka Nirman


वर्तमान अवस्था में मौजूद इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने 1443 से 1458 के बीच अपने प्रसिद्ध शिल्पी एवं वास्तुकार मंडन की देखरेख में करवाया था।

जिस प्रकार चित्तोड दुर्ग का सम्बन्ध मौर्य सम्राटों से रहा है उसी प्रकार कुम्भलगढ़ दुर्ग का सम्बन्ध भी मौर्यों के साथ रहा है।

कुंभलगढ़ के किले का मौर्य वंश से संबंध, Kumbhalgarh Ke Kile Ka Maurya Vansh Se Sambandh


ऐसा माना जाता है कि मौर्यवंशी सम्राट अशोक के जैन मतावलंबी पौत्र सम्प्रति ने ठीक उसी जगह पर एक दुर्ग का निर्माण करवाया था जिस जगह पर आज कुम्भलगढ़ दुर्ग स्थित है। उस समय इसका नाम मछिन्द्रपुर था।

महाराणा कुम्भा के समय तक इस दुर्ग का कोई अधिक महत्व नहीं रह गया था जिसकी वजह से यह दुर्ग धीरे-धीरे खंडहर में तबदील हो गया।

महाराणा कुम्भा ने इस जगह के महत्व को समझा और विषम परिस्थितियों में उपयोग हेतु इन मौर्ययुगीन दुर्ग के खंडहरों पर एक नया दुर्ग बनवाया। बाद में समय समय पर इसमें और निर्माण होता गया।

कुंभलगढ़ के किले पर विभिन्न आक्रमण, Kumbhalgarh Ke Kile Par Aakraman


इस दुर्ग पर गुजरात के सुल्तान अहमद शाह और मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी सहित अकबर की मुग़ल सेना ने अनेक आक्रमण किये लेकिन एक बार के अतिरिक्त यह दुर्ग किसी के भी अधिकार में नहीं आया।

अकबर के सेनापति शाहबाज खान ने 1578 ईस्वी में इस दुर्ग पर अधिकार किया लेकिन 1585 तक यह दुर्ग पुनः महाराणा प्रताप के कब्जे में आ गया।

कुंभलगढ़ के किले की दीवार, Kumbhalgarh Ke Kile Ki Diwar


यह दुर्ग चारों तरफ से एक विशाल प्राचीर (दीवार) से घिरा हुआ है जिसमे नियमित अंतराल पर अर्ध कुम्भ (मटका) के रूप में अनेक बुर्ज बनी हुई है।

इस प्राचीर की लम्बाई लगभग 36 किलोमीटर एवं चौड़ाई लगभग सात मीटर है। इस दीवार पर चार घुड़सवार एक साथ चल सकते हैं।

कुंभलगढ़ के किले के द्वार, Kumbhalgarh Ke Kile Ke Darwaje


प्राचीर से किले के अन्दर प्रवेश के लिए कई दरवाजे बने हुए हैं जिन्हें पोल के नाम से जाना जाता है।

पर्यटकों को इस किले तक आने के लिए केलवाडा कस्बे से होकर आना पड़ता है। केलवाडा से दुर्ग के हनुमान पोल तक आने के लिए आरेट पोल, हल्ला पोल से गुजरकर आना पड़ता है।

हनुमान पोल पर हनुमानजी की प्राचीन प्रतिमा स्थित है। यह प्रतिमा कुम्भा की मंडोर पर विजय का प्रतीक है जिसे मंडोर से ही लाया गया था।

हनुमान पोल से आगे राम पोल स्थित है। राम पोल के बगल में टिकट विंडो स्थित है। किले में प्रवेश के लिए टिकट लेनी पड़ती है। राम पोल से किले में प्रवेश किया जाता है।

किले के बाहरी भाग में राम पोल से पूर्व दिशा में प्राचीर के बगल में कुछ आगे चलने पर विजय पोल आता है। इस द्वार का उपयोग प्राचीन समय में किया जाता था।

किले की पूर्व दिशा में हाथी गुढा की नाल की तरफ एक प्रवेश द्वार है जिसे ढाणी बट्टा के नाम से जाना जाता है। यह प्रवेश द्वार मेवाड़ को मारवाड़ से जोड़ता है।

किले के उत्तर की तरफ का पैदल रास्ता टूट्या का होडा कहलाता है एवं किले का पश्चिमी रास्ता हीरा बारी कहलाता है।

किले में विश्व प्रसिद्ध प्राचीर के अतिरिक्त महल, प्रवेश द्वार, मंदिर, बाँध, यज्ञवेदी, छतरियाँ, बावड़ियाँ आदि अनेक दर्शनीय स्थल मौजूद हैं।

इनमें से कई भग्नावस्था में होने के बावजूद भी इतने आकर्षक है कि हमें अनायास ही उस युग के शिल्पकारों की शिल्पकला के आगे नतमस्तक होना पड़ता है।

बताया जाता है कि महाराणा कुम्भा के काल में किले के अन्दर 360 से अधिक मंदिर थे जिनमें 300 से अधिक जैन मंदिर थे। अधिकांश मंदिरों के अब अवशेष ही बचे हैं।

कुंभलगढ़ के किले में विभिन्न पर्यटन स्थल, Kumbhalgarh Ke Kile Me Ghumne Ki Jagah


वर्तमान में यहाँ के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में बादल महल, कुम्भा महल, महाराणा प्रताप की जन्म स्थली (झाली रानी का महल), तोपखाना, गणेश मंदिर, चारभुजा मंदिर, वेदी मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर, पार्श्वनाथ मंदिर, खेडा देवी मंदिर, बावन देवरी मंदिर, जुना भीलवाडा मंदिर, पीतलिया देव मंदिर, सूर्य मंदिर, मामादेव मंदिर, गोलेराव मंदिर समूह, जैन मंदिर समूह, पृथ्वीराज की छतरी, बादशाही बावड़ी आदि प्रमुख है।

कुंभलगढ़ के किले में गणेश मंदिर, Kumbhalgarh Ke Kile Me Ganesh Mandir


राम पोल से किले में प्रवेश करने पर बाँई तरफ गणेश मंदिर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था। मंदिर एक ऊँची जगती पर बना हुआ है जिसमे जाने के लिए दक्षिण दिशा में सीढियाँ बनी हुई है।

भू विन्यास योजना में यह मंदिर गर्भगृह, अंतराल, स्तम्भीय कक्षासनयुक्त मंडप एवं मंडपयुक्त है। गर्भगृह ईंटो से निर्मित रेखा शिखर के रूप में बना है। मंडप एवं मुखमंडप पर गुम्बदाकार छत है।

कुंभलगढ़ के किले में चारभुजा मंदिर या लक्ष्मी नारायण मंदिर, Kumbhalgarh Ke Kile Me Charbhuja Mandir Ya Lakshmi Narayan Mandir


गणेश मंदिर के निकट ही परकोटे में चारभुजा मंदिर है जिसका प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में है। इसे लक्ष्मी नारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। क्षैतिज योजना में यह गर्भगृह, अंतराल, स्तम्भयुक्त कक्षासन सहित मंडप एवं मुखमंडपयुक्त है।

इसका रेखा शिखर चारों तरफ से उरुश्रंगों द्वारा सुसज्जित है। मंडप और मुखमंडप के ऊपर गुम्बदाकार छत बनी हुई है।

कुंभलगढ़ के किले में कटारगढ़, Kumbhalgarh Ke Kile Me Katargarh


दुर्ग के भीतर सबसे ऊपरी भाग पर पहाड़ी के शिखर पर एक और दुर्ग बना हुआ है जिसे कटारगढ़ कहा जाता है। यह दुर्ग भी प्राचीर और दरवाजों से सुरक्षित है।

ऊपर कटारगढ़ पर जाने के लिए भैरव पोल, नींबू पोल एवं चौगान पोल नामक दरवाजों से गुजरना पड़ता है।

कुंभलगढ़ के किले में तोपखाना, Kumbhalgarh Ke Kile Me Topkhana


चौगान पोल से आगे जाने पर एक बड़ा मैदान आता है जिसके बगल में तोपखाना स्थित है। इस तोपखाने में कई तरह की तोपें रखी हुई हैं।

यहाँ से आगे ऊपर पागडा पोल से गुजरने पर सामने बाँई तरफ घोड़ों का अस्तबल दिखाई देता है।

कुंभलगढ़ के किले में कुम्भा महल, Kumbhalgarh Ke Kile Me Kumbha Mahal


इसके थोडा आगे महाराणा कुम्भा का महल आता है। स्तम्भयुक्त यह महल बड़ा सादा है जिसमे देवी माता का मंदिर भी स्थित है। इसके सामने की तरफ खंडहर नुमा कक्ष मौजूद है। कुम्भा महल मर्दाना और जनाना दो भागों में विभक्त है।

कुंभलगढ़ के किले में महाराणा प्रताप जन्म स्थान, Kumbhalgarh Ke Kile Me Maharana Pratap Ka Janm Sthan


परिसर में झाली रानी का महल या झाली रानी का मालिया भी मौजूद है जिसे महाराणा प्रताप की जन्म भूमि माना जाता है।

इस महल को महाराणा कुम्भा ने अपनी झाली रानी के लिए बनवाया था। साथ ही एक बावड़ी भी बनवाई जिसे झालीबाव के नाम से जाना जाता है।

कुंभलगढ़ के किले में बादल महल,Kumbhalgarh Ke Kile Me Badal Mahal


कुम्भा महल के आगे बादल महल स्थित है जिसका निर्माण महाराणा फतेह सिंह ने करवाया था। बादल महल इस परिसर का सबसे नया निर्माण है।

बादल महल को कुम्भा महल की तरह सादा न रखकर थोड़ी भव्यता दी गई है। यह भी कुम्भा महल की तरह मर्दाना और जनाना दो भागों में विभक्त है।

सबसे पहले मर्दाना महल आता है जिसमें प्रवेश करते ही एक बड़ा चौक मौजूद है। यह महल थोडा सादगी लिए हुए प्रतीत होता है।

मर्दाना महल के आगे जनाना महल आता है जिसमें प्रवेश करने पर एक चौक है। इस चौक के एक किनारे पर एक छतरी में भैरव मंदिर स्थित है।


जनाना महल के अन्दर के कक्षों में पत्थर के तराशे हुए जाली युक्त झरोखे बने हुए हैं जिनमें से ठंडी हवा तेजी से अन्दर आती रहती है। हवा इतनी अधिक तेजी से अन्दर आती है कि उसके अन्दर आने से एक अजीब तरह की आवाज पैदा होती है।

इन कक्षों में नक्काशी और भित्ति चित्र भी बहुतायत में मौजूद हैं। जनाना महल काफी भव्यता लिए हुए है। दोनों महल आपस में एक रास्ते द्वारा जुड़े हुए हैं।

ऊपर जाने पर दोनों महलों की छत पर जाया जा सकता है। छत पर दोनों महलों के गुम्बदों के अतिरिक्त मर्दाना महल के पीछे के भाग में मौजूद छतरी का शिखर नजर आता है।

बादल महल की छत पर से दूर-दूर तक बड़ा खूबसूरत नजारा दिखाई देता है। यहाँ से कुम्भलगढ़ के किले का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। महल के पीछे की तरफ घने जंगल के साथ-साथ मारवाड़ राज्य और रेत के टीले भी दिखाई देते हैं।

कुंभलगढ़ के किले में वेदी मंदिर समूह और त्रिकूट मंदिर, Kumbhalgarh Ke Kile Me Vedi Mandir Samuh Aur Trikut Mandir


सूरज पोल के पूर्वी भाग में वेदी मंदिर समूह मौजूद हैं। इस मंदिर समूह को महाराणा कुम्भा ने 1457 ईस्वी में किले का निर्माण पूर्ण होने पर यज्ञ संपन्न करने के लिए बनवाया था जिस वजह से इसे यज्ञवेदी के नाम से जाना जाता है।

यह तीन तरफ से ऊँची दीवार से घिरा हुआ है। इस परिसर में सामने की तरफ तीन मंजिली सतम्भयुक्त सर्वतोभद्र वेदी, पीछे के हिस्से में त्रिकूट मंदिर समूह एवं मध्य भाग में वर्गाकार छतरी स्थित है।

यज्ञवेदी का तल अष्टकोणीय है जिसमे कक्षासन खुले हैं लेकिन उपरी तल के कक्षासनों को पत्थर की अलंकृत जालियों द्वारा ढक दिया गया है। वेदी में यज्ञ से उत्पन्न धुँए के निकास के लिए जगह छोड़ी गई है।

त्रिकूट मंदिर संभवतः वास्तुकार मंडन के त्रिपुरुष प्रासाद की अवधारणा पर बना हुआ है जिसमें भू विन्यास योजना में तीनो मंदिर और मंडप का वास्तु काफी विशेष प्रकार का है।

इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि तीनों मंदिरों के गर्भगृह अलग हैं लेकिन इनके मंडप एवं मुखमंडप संयुक्त है।

इन त्रिकूट मंदिरों में केवल एक मंदिर में ललितासन में बैठे षष्ट भुजायुक्त विष्णु की मूर्ति स्थित है जिसके दोनों तरफ मानवीय आकार में गरुड़ की मूर्तियाँ स्थित है।

वेदी और त्रिकूट मंदिर के बीच में स्थित छतरीनुमा चबूतरा संभवतः पशु बलि के लिए बनाया गया था।

कुंभलगढ़ के किले में पार्श्वनाथ मंदिर, Kumbhalgarh Ke Kile Me Parshvnath Mandir


वेदी समूह से आगे जाने पर पार्श्वनाथ मंदिर दिखाई देता है। इस मंदिर का निर्माण नाहर सिंह पोखर ने वर्ष 1451 में करवाया था। मंदिर एक ऊँचे परकोटे के अन्दर स्थित है।

गर्भगृह के ऊपर पाषाण निर्मित शिखर है और मुख मंडल के ऊपर गुम्बदाकार छत है। गर्भगृह के ललाटबिम्ब पर गणेश की प्रतिमा उत्कीर्ण है, अन्दर पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थित है।

कुंभलगढ़ के किले में नीलकंठ महादेव मंदिर, Kumbhalgarh Ke Kile Me Neelkanth Mahadev Mandir


पार्श्वनाथ मंदिर के निकट ही नीलकंठ महादेव का पश्चिमाभिमुख सर्वतोभद्र मंदिर स्थित है जिसका निर्माण 1458 ईस्वी में महाराणा कुम्भा ने करवाया था। यह मंदिर भू विन्यास में आयताकर है।

इसकी छत विभिन्न प्रकार के सात गुम्बदों से आच्छादित है और 26 विशाल प्रस्तर स्तंभों पर टिकी है। मंदिर के मध्य का गुम्बद सबसे बड़ा है और इसका शिखर कमल युक्त कलश से अलंकृत है।

गर्भगृह के मध्य भाग में काले पत्थर की विशाल योनिपीठ के ऊपर विशाल शिवलिंग स्थापित है। मंदिर की दीवार पर उत्कीर्ण अभिलेख के अनुसार इस मंदिर का जीर्णोद्धार राणा सांगा ने करवाया था।

कुंभलगढ़ के किले में खेड़ा देवी मंदिर, Kumbhalgarh Ke Kile Me Kheda Devi Mandir


नीलकंठ महादेव मंदिर से कुछ आगे खेडा देवी का पश्चिमाभिमुख मंदिर स्थित है। मंदिर के भू विन्यास में गर्भगृह एवं अन्तराल है जिनका रेखा शिखर ईंटों से निर्मित है।

कुंभलगढ़ के किले में जूना भीलवाड़ा मंदिर, Kumbhalgarh Ke Kile Me Juna Bhilwara Mandir


खेडा देवी से आगे गोलेराव मंदिर समूह की तरफ जाने वाले मार्ग पर जूना भीलवाडा नामक मंदिर स्थित है। भू विन्यास में यह मंदिर गर्भगृह, अंतराल एवं मुखमंडल युक्त है।

वर्तमान में यह मंदिर पूरी तरह से भग्न अवस्था में है जिसका केवल निचला भाग ही उपलब्ध है। इस पर विभिन्न मुद्राओं में देवी देवताओं की कलात्मक मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं।

इन प्रतिमाओं में भद्र रथिका की बालकोणी पर चतुर्भुज तीर्थकर की प्रतिमा एवं कर्ण रथिका पर नर्तकियों की प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं।

कुंभलगढ़ के किले में गोलेराव मंदिर समूह, Kumbhalgarh Ke Kile Me Golerao Mandir Samuh


जुना भीलवाडा मंदिर से आगे उत्तरी भाग में जाने पर गोलेराव मंदिर समूह आता है। यहाँ पर कुल नौ धार्मिक स्थल स्थित है जिनमें अधिकांश या तो आकृति में गोलाकार हैं या गोलाकार चबूतरे पर स्थित हैं।

सभी स्थलों पर देवी देवताओं की सुन्दर मूर्तियाँ उत्कीर्ण है। गोलेराव मंदिर समूह राणा कुम्भा के समय का निर्माण है जो बादल महल से काफी भव्य दिखाई देता है।

कुंभलगढ़ के किले में बावन देवरी मंदिर, Kumbhalgarh Ke Kile Me Bavan Devri Mandir


किले के पूर्वी भाग में विजय द्वार से थोडा आगे जाने पर बावन देवरी जैन मंदिर स्थित है। यहाँ पर मुख्य मंदिर के चारों तरफ आयताकार रूप में 52 छोटे मंदिर बने हुए हैं।

मुख्य मंदिर में एक गर्भगृह, मंडप और एक अन्तराल बना हुआ है। प्रवेश द्वार के ललाटबिम्ब पर जैन तीर्थकर की प्रतिमा उत्कीर्ण है।

सूरज पोल के बिलकुल सामने से उत्तर की तरफ एक पैदल रास्ता जाता है जिस पर आगे कई दर्शनीय स्थल मौजूद हैं। इनमें मामादेव मंदिर, सूर्य मंदिर, पीतलिया शाह मंदिर, पृथ्वीराज की छतरी, बाँध, बावड़ी आदि शामिल हैं।

कुंभलगढ़ के किले में मामादेव मंदिर या कुंभ श्याम मंदिर, Kumbhalgarh Ke Kile Me Mamadev Mandir Ya Kumbh Shyam Mandir


सूरज पोल के आगे उत्तर में नीची भूमि पर मामादेव मंदिर स्थित है जिसे कुम्भ श्याम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के चबूतरे पर स्तम्भ युक्त खुला बरामदा है।

यहाँ पर कई भव्य प्रतिमाएँ प्राप्त हुई है। महाराणा कुम्भा द्वारा यहाँ पर एक पत्थर की प्रशस्ति उत्कीर्ण करवाई गई थी जिस पर मेवाड़ का इतिहास उत्कीर्ण था।

कुंभलगढ़ के किले में कुंड, बांध और बावड़ियाँ, Kumbhalgarh Ke Kile Me Kund, Bandh Aur Bawadiyan


यहाँ से थोड़ी दूरी पर एक कुंड बना हुआ है। ऐसा कहा जाता है इस कुंड के समीप की कुम्भा के पुत्र ऊदा (उदय सिंह) ने कुम्भा की हत्या की थी।

यहाँ पर एक बाँध भी बना हुआ है जिसमें बारिश के समय पानी भर जाता है। अन्य दिनों में यहाँ कृषि की जाती है। निकट ही बावड़ीनुमा कुंड स्थित है।

कुंभलगढ़ के किले में सूर्य मंदिर, Kumbhalgarh Ke Kile Me Surya Mandir


ऊपर पहाड़ी पर सूर्य मंदिर स्थित है। यह पश्चिमाभिमुख मंदिर एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित है। इस मंदिर में गर्भगृह, अंतराल, कक्षासन युक्त मंडप और मुख मंडप मौजूद हैं।

गर्भगृह एक पीठ पर स्थित है जो भित्ति, खुर, कुम्भ, कलश एवं कपोत पट्टिकाओं द्वारा अलंकृत है। ऐसा लगता है कि गर्भगृह का शिखर ईंटों का बना हुआ था।

कुंभलगढ़ के किले में पीतलिया शाह मंदिर, Kumbhalgarh Ke Kile Me Pitaliya Shah Mandir


सूर्य मंदिर से आगे पहाड़ी में पीतलिया शाह का मंदिर बना हुआ है। इसे महाराणा कुम्भा के समय में पीतलिया शाह नामक जैन व्यापारी ने बनवाया था। यहाँ पर गर्भगृह के साथ स्तम्भयुक्त मंडप बना हुआ है।

कुंभलगढ़ के किले में पृथ्वीराज की छतरी, Kumbhalgarh Ke Kile Me Prithviraj Ki Chhatri


किले में राणा सांगा के भाई पृथ्वीराज की दो छतरियाँ बताई जाती है। एक छतरी दुर्ग की पश्चिमी तलहटी में है जहाँ इनका निधन हुआ था एवं दूसरी छतरी मामादेव मंदिर के पास स्थित कुंड के निकट है जहाँ पर इनका दाह संस्कार हुआ था।

पृथ्वीराज की 12 स्तंभों से निर्मित छतरी अपने शिल्प के लिए काफी प्रसिद्ध है। पृथ्वीराज को उसकी तेज धावक गति की वजह से उडणा पृथ्वीराज (Udna Prathviraj) के नाम से जाना जाता था।

कुंभलगढ़ के किले में जैन मंदिरों के खंडहर, Kumbhalgarh Ke Kile Me Jain Mandiron Ke Khandahar


सम्पूर्ण दुर्ग में जगह-जगह भग्नावस्था में अनेक जैन मंदिरों के अवशेष मौजूद हैं। अगर आप रणबाँकुरों की भूमि राजस्थान को करीब से देखना चाहते तो आपको अपने जीवन में एक बार कुम्भलगढ़ दुर्ग को अवश्य देखना चाहिए।

कुम्भलगढ़ के किले की मैप लोकेशन, Kumbhalgarh Ke Kile Ki Map Location



कुम्भलगढ़ के किले की फोटो, Kumbhalgarh Ke Kile Ki Photos


Kumbhalgarh Ka Kila

Kumbhalgarh Ki Diwar

लेखक

रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
GoJTR.com

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