भारत के सबसे बड़े किले में क्या देखें? - Chittorgarh Ka Kila, इसमें चित्तौड़ के किले के इतिहास के साथ दुर्ग में घूमने की जगह और उनके महत्व को बताया है।
{tocify} $title={Table of Contents}
जब-जब यह सुनने में आता है कि गढ़ तो चित्तौड़गढ़ बाकि सब गढ़ैया, तब हमारे मन में चित्तौड़ गढ़ के दुर्ग को देखने और जानने की जिज्ञासा उत्पन्न होने लगती है।
जैसे-जैसे हम चित्तौड़ को जानते हैं वैसे-वैसे इस दुर्ग की विशालता के साथ-साथ इसकी स्थापत्य कला और यहाँ के वीरों की गाथाओं को सुनकर मन गौरव और रोमांच से भर उठता है।
गंभीरी नदी के निकट एक ऊँचे पहाड़ पर मछली के आकार में फैला यह दुर्ग राजस्थान का ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत का गौरव है। 180 मीटर की ऊँचाई पर लगभग 700 एकड़ क्षेत्रफल में फैला हुआ यह किला चारों तरफ से एक मजबूत परकोटे से सुरक्षित है।
इस किले को वाटर फोर्ट के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि पहले यहाँ पर तालाब, कुंड और बावड़ियों के रूप में लगभग 84 पानी के स्त्रोत मौजूद थे जिनमे से अब लगभग 22 ही मौजूद हैं।
चित्तौड़गढ़ का इतिहास, Chittorgarh Ka Itihas
किले के निर्माण की अगर बात की जाए तो इसका निर्माण महाबली भीम द्वारा करवाया हुआ माना जाता है। बाद में सातवीं सदी में इसके निर्माण के तार मौर्य वंशी राजा चित्रांगद के साथ भी जुड़े हुए हैं। इसी वजह से पहले इस किले को चित्रकूट नाम से जाना जाता था।
लगभग सौलहवीं सदी तक यह किला मेवाड़ की राजधानी के रूप में रहा। यहाँ पर कई परम प्रतापी राजाओं का राज रहा जिनमे रावल रतन सिंह, महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, महाराणा उदय सिंह आदि प्रमुख है। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के जीवन का काफी समय यहाँ पर गुजरा है।
चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी, Chittorgarh Ki Gherabandi
इस किले ने 1303 ईस्वी में दिल्ली सल्तनत के अलाउद्दीन खिलजी, 1534-35 ईस्वी में गुजरात के शासक बहादुर शाह सहित 1567-68 ईस्वी में मुगल बादशाह अकबर की घेराबंदी और आक्रमणों को झेला है।
इन्ही तीनों आक्रमणों के समय किले के बाहर राजपूत योद्धाओं के साके और किले के अन्दर राजपूत वीरांगनाओं के जौहर हुए हैं जिनमे रानी पद्मावती का जौहर विश्व प्रसिद्ध है।
चित्तौड़गढ़ का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व, Chittorgarh Ka Dharmik Aur Etihasik Mahatv
यह किला धार्मिक समरसता का एक केंद्र रहा है जिसमे हिन्दू मंदिरों के साथ-साथ जैन मंदिर भी बहुतायत में मौजूद थे। कृष्ण भक्त मीराबाई का जीवन भी इसी किले में गुजरा। पन्ना धाय के त्याग और बलिदान की गाथा भी इसी किले से जुडी हुई है।
किले के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ समरसता पूर्ण कला और संस्कृति की वजह से यूनेस्को ने इसे वर्ष 2013 में विश्व धरोहर के रूप में शामिल किया।
दुर्ग में फतेह प्रकाश महल को छोड़कर ज्यादातर निर्माण अकबर के आक्रमण के पहले के समय के ही हैं मतलब लगभग पाँच सौ वर्ष प्राचीन।
इस आक्रमण के बाद में मेवाड़ के शासकों का केंद्र उदयपुर हो जाने की वजह से यहाँ की अधिकाँश इमारते देख रेख के अभाव में जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुँच गई हैं।
चित्तौड़गढ़ के किले में घूमने की जगह, Chittorgarh Ke Kile Me Ghumne Ki Jagah
चित्तौड़गढ़ का किला भारत का सबसे बड़ा किला है। इस किले के अंदर कई किलोमीटर क्षेत्र में अनेक धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल मौजूद हैं। किला इतना बड़ा है कि इसे देखने के लिए सुबह से शाम तक पूरा दिन चाहिए।
चित्तौड़गढ़ किला घूमने में कितना समय लगता है?, Chittorgarh Kila Ghoomne Me Kitna Samay Lagta Hai?
जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि पूरा चित्तौड़गढ़ किला घूमने के लिए सुबह से शाम तक पूरा दिन चाहिए, लेकिन अगर आपके पास समय नहीं है तो आप तीन चार घंटे में कुछ मुख्य दर्शनीय स्थल देख सकते हैं।
ज्यादातर पर्यटक या तो जानकारी के अभाव में या फिर समय की कमी की वजह से कुछ प्रमुख दर्शनीय स्थलों के अलावा उन स्थलों को नहीं देखते हैं जिनका इतिहास में काफी महत्व है।
हमारी आपको सलाह है कि आप जब भी चित्तौड़गढ़ किला घूमने जाएँ तो फुरसत में जायें और पूरा दिन लगाकर इसे ढंग से देखें। यह किला भारत के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
चित्तौड़गढ़ किले के अंदर यात्रा कैसे करें?, Chittorgarh Kile Ke Andar Yatra Kaise Karen?
चित्तौड़गढ़ किला काफी बड़ा है और कई किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस किले में आप पैदल नहीं घूम सकते। आपको पूरा किला देखने के लिए कार या बाइक की आवश्यकता पड़ेगी।
चित्तौड़गढ़ किला घूमने का सबसे अच्छा समय कौनसा है?, Chittorgarh Kila Ghumne Ka Sabse Achcha Samay Kaunsa Hai?
जैसा कि आप जानते हैं कि राजस्थान मे गर्मी ज्यादा पड़ती है इसलिए गर्मी के मौसम के अलावा आप कभी भी चित्तौड़गढ़ किला घूमने के लिए आ सकते हैं। चित्तौड़गढ़ किला घूमने का सबसे अच्छा समय सितंबर से लेकर मार्च तक है।
आगे दी गई जानकारी के हिसाब से अगर आप चित्तौड़गढ़ के किले में घूमेंगे तो आप बिना किसी टुरिस्ट गाइड की मदद के बड़ी आसानी से पूरा किला खुद ही देख सकते हैं।
चित्तौड़गढ़ किले के प्रवेश द्वार, Chittorgarh Fort Ke Pravesh Dwar
किले को सात विशाल दरवाजों से सुरक्षित किया गया है जिन्हें पोल के नाम से जाना जाता रहा है। इन्हें नीचे से ऊपर की तरफ क्रमशः पाडन पोल, भैरों पोल, हनुमान पोल, जोडला पोल, गणेश पोल, लक्ष्मण पोल एवं राम पोल के नाम से जाना जाता है।
रावत बाघसिंह का स्मारक, Rawat Bagh Singh Ka Smarak
किले के प्रथम दरवाजे पाडन पोल के बाहर चबूतरे पर रावत बाघसिंह का स्मारक बना हुआ है। रावत बाघसिंह ने 1534-35 ईस्वी में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के आक्रमण के समय किले की रक्षा करते हुए इसी स्थान पर वीरगति पाई थी। बाद में इनकी याद में यहाँ स्मारक बनाया गया।
जयमल और कल्ला की छतरियाँ, Jaimal Aur Kalla Ki Chhatriya
भैरव पोल के पास ही राजपूत वीर जयमल और कल्ला राठोड़ की छतरियाँ बनी हुई है। ये छतरियाँ उन दो राजपूत वीरों की याद में बनी हुई है जिन्होंने 1567-68 ईस्वी में अकबर के आक्रमण के समय किले की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी।
आगे जाने पर जहाँ चढ़ाई समाप्त होती है वहां अंतिम दरवाजा रामपोल बना हुआ है। इस दरवाजे के सामने स्तम्भ युक्त बरामदा बना हुआ है जिसे शायद अतिथियों के विश्राम के लिए बनाया गया था।
पत्ता सिसोदिया का स्मारक, Patta Sisodiya Ka Smarak
रामपोल से कुछ दूरी पर राजपूत वीर पत्ता सिसोदिया का स्मारक बना हुआ है। ये वही पत्ता है जिन्होंने 1567-68 ईस्वी में जयमल और कल्ला के साथ अकबर से युद्ध करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया था।
चित्तौड़गढ़ किले में तुलजा भवानी का मंदिर, Chittorgarh Fort Me Tulja Bhawani Mandir
यहाँ से आगे दाँई तरफ आगे जाने पर तुलजा भवानी का मंदिर आता है। इस मंदिर को बनवीर ने अपने वजन के बराबर सोना तुलवाकर बनवाया था। इसी कारण से इसे तुलजा भवानी का मंदिर कहा जाता है।
चित्तौड़गढ़ किले में टिकट की कीमत और घूमने का समय, Chittorgarh Fort Me Ticket Ki Kimat Aur Ghumne Ka Samay
आगे टिकट विंडो बनी हुई है जहाँ से आपको सम्पूर्ण किले को देखने के लिए टिकट लेनी होती है। टिकट विंडो पर ही दुर्ग का नक्शा बना हुआ है जिसे समझने से आपको घूमने में आसानी होगी।
आप ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों तरीकों से टिकट खरीद सकते हैं। ऑफलाइन टिकट आपको टिकट विंडो से लेनी होती है और ऑनलाइन टिकट कहीं से भी बुक कर सकते हो।
इंडियन टूरिस्ट के लिए ऑनलाइन टिकट की कीमत 35 रुपये है और टिकट विंडो से ऑफलाइन टिकट लेने पर शायद 50 रुपये लगते हैं। फतेह प्रकाश महल म्यूजियम और लाइट एण्ड साउन्ड शो के लिए अलग से टिकट लेना पड़ता है।
चित्तौड़गढ़ किले में बनवीर की दीवार और नौलखा भण्डार, Chittorgarh Fort Me Banveer Ki Diwar Aur Naulkha Bhandar
टिकट विंडो से एक रास्ता बाँई तरफ जाता है और एक रास्ता सामने मौजूद गोल बुर्ज के आगे से घूमकर जाता है। सामने गोल बुर्ज और उससे लगती हुई एक लम्बी और अपूर्ण दीवार दिखाई देती है।
इस बुर्ज को नौलखा भण्डार एवं दीवार को बनवीर की दीवार के नाम से जानते हैं।
नौलखा भण्डार में बनवीर अपने राजकोष को रखता था एवं इस दीवार का निर्माण उसने दुर्ग को विभाजित कर दुर्ग के अन्दर एक और दुर्ग बनाने के लिए शुरू किया था।
लेकिन महाराणा उदय सिंह द्वारा उसे सत्ता से अपदस्त कर दिए जाने के कारण वह अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाया।
चित्तौड़गढ़ किले में श्रृंगार चवरी मंदिर, Chittorgarh Fort Me Shringar Chavari Mandir
इस दीवार के साथ चलने पर आगे इससे सटा हुआ एक जैन मंदिर है जिसे श्रृंगार चवरी (चौरी) के नाम से जाना जाता है। इसे महराणा कुम्भा के कोषाध्यक्ष बेलाक ने बनवाया था।
चित्तौड़गढ़ किले में महाराणा सांगा का देवरा, Chittorgarh Fort Me Maharana Sanga Ka Devra
इस मंदिर के समीप ही एक और मंदिर है जिसे महाराणा सांगा का देवरा के नाम से जाना जाता है। यहाँ पर भगवान देवनारायण की प्रतिमा स्थापित है। कहा जाता है कि महाराणा सांगा इसी देवरे से कवच पहन कर युद्ध में जाते थे और विजय प्राप्त करके लौटते थे।
चित्तौड़गढ़ किले का तोपखाना, Chittorgarh Fort Me Topkhana
यहाँ से थोडा सा आगे ही तोपखाना बना हुआ है जिसमे बहुत सी तोपें रखी हुई है। यहाँ पर पुरातत्व विभाग का ऑफिस भी बना हुआ है।
यहाँ से दीवार के साथ-साथ वापस लौटकर नौलखा भण्डार के आगे जाते हैं तो दाँई तरफ महाराणा कुम्भा का महल आता है। यहाँ से उत्तरी दरवाजे से कुम्भा महल में प्रवेश किया जा सकता है।
चित्तौड़गढ़ किले में कुम्भा महल,Chittorgarh Fort Me Kumbha Mahal
कुम्भा महल को दुर्ग का सबसे प्राचीन निर्माण माना जाता है। यह महल चित्तौड़ के पूर्ववर्ती महाराणाओं का निवास रहा है जिनमें कुम्भा के अलावा राणा मोकल, राणा सांगा आदि प्रमुख हैं। साथ ही यह महल रानी पद्मिनी, रानी कर्णावती और कृष्ण भक्त मीराबाई का निवास स्थान भी रहा है।
कुम्भा महल के अन्दर कई तहखाने और गुप्त रास्ते बने हुए हैं। एक रास्ता यहाँ के जनाना महल से गौमुख कुंड तक जाता है। इस रास्ते का उपयोग प्राचीन समय में राजपरिवार की महिलाओं द्वारा गौमुख कुंड तक जाने के लिए किया जाता था।
चित्तौड़गढ़ किले में पन्नाधाय का बलिदान,Chittorgarh Fort Me Pannadhay Ka Balidan
इसी महल में ही पन्नाधाय ने अपने पुत्र चन्दन का बलिदान देकर बनवीर से कुंवर उदय सिंह के प्राण बचाए थे। इन्ही उदय सिंह ने बाद में उदयपुर बसाया और जिनके महाराणा प्रताप जैसे वीर और स्वाभिमानी पुत्र पैदा हुए।
मीरा बाई को पीना पड़ा जहर का प्याला, Meera Bai Ko Peena Pada Jahar Ka Pyala
इसी कुंभा महल में स्थित मीरा महल के अंदर कृष्ण भक्त मीरा को जहर का प्याला दिया गया था। जहर का प्याला पीने के बाद भी मीराबाई का कुछ नहीं बिगड़ा। मीराबाई, महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज की पत्नी थी।
चित्तौड़गढ़ किले में बड़ी पोल और त्रिपोलिया गेट, Chittorgarh Fort Me Badi Pol Aur Tripoliya Gate
कुम्भा महल के उत्तरी दरवाजे के निकट ही लाइट एंड साउंड शो के लिए टिकट विंडो है जिसके आगे जाने पर एक दरवाजा आता है जिसे बड़ी पोल के नाम से जाना जाता है।
कुम्भा महल का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में बड़ी पोल के दाँई तरफ स्थित त्रिपोलिया गेट है। यहाँ से अन्दर आने पर सामने दरीखाना मौजूद है जहाँ पर आगंतुकों के साथ-साथ महत्वपूर्ण बैठकें आयोजित होती थी।
चित्तौड़गढ़ किले में फतेह प्रकाश महल म्यूजियम, Chittorgarh Fort Me Fateh Prakash Mahal Museum
बड़ी पोल के सामने की तरफ फतेह प्रकाश महल बना हुआ है जो कि इस दुर्ग की सबसे आधुनिक ईमारत है। इसका निर्माण महाराणा फतेह सिंह ने करवाया था। वर्तमान में इसमें म्यूजियम संचालित होता है।
चित्तौड़गढ़ किले में मीना बाजार और नगीना बाजार, Chittorgarh Fort Me Meena Bazar Aur Nagina Bazar
बड़ी पोल से बाएँ उत्तर की तरफ जाने पर फतेह प्रकाश महल के सामने सड़क के दोनों तरफ दुकानों के खंडहर मौजूद हैं।
इस जगह पर बाजार लगता था जिसे मीना बाजार और नगीना बाजार के नाम से जाना जाता है। यहाँ पर कीमती पत्थरों और नगीनों की दुकाने लगा करती थी।
चित्तौड़गढ़ किले में पातालेश्वर महादेव का मंदिर,Chittorgarh Fort Me Pataleshwar Mahadev Mandir
यहाँ से थोडा सा आगे ही पातालेश्वर महादेव का मंदिर बना हुआ है। यह अब जीर्ण शीर्ण अवस्था में मौजूद है। मंदिर के मध्य गर्भगृह में शिवलिंग मौजूद है।
चित्तौड़गढ़ किले में आल्हा काबरा और भामाशाह की हवेली, Chittorgarh Fort Me Aalha Kabra Aur Bhamashah Ki Haveli
पातालेश्वर महादेव के मंदिर से आगे बाँई तरफ भामाशाह की हवेली के खंडहर मौजूद हैं। हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात महाराणा प्रताप का राजकोष खाली हो गया था।
उस समय महाराणा प्रताप को मुगलों से लड़ने के लिए धनराशि की आवश्यकता थी तब भामाशाह ने अपना सारा धन महाराणा प्रताप को भेंट कर दिया था।
भामाशाह की हवेली के निकट ही आल्हा काबरा की हवेली के खंडहर मौजूद हैं।
चित्तौड़गढ़ किले में सतबीस देवरी जैन मंदिर, Chittorgarh Fort Me Satbees Devri Jain Mandir
बड़ी पोल से दाँई तरफ दक्षिण की ओर आगे जाने पर बाँई दिशा में सतबीस देवरी जैन मंदिर बना हुआ है। मंदिर परिसर में कुल 27 देवरियाँ बनी हुई होने के कारण इसे सतबीस देवरी के नाम से जाना जाता है। मुख्य मंदिर भगवान आदिनाथ को समर्पित है।
चित्तौड़गढ़ किले में कुम्भ श्याम और मीरा मंदिर, Chittorgarh Fort Me Kumbha Shyam Mandir Aur Mira Mandir
यहाँ से आगे जाने पर दाँई तरफ एक परिसर में कुम्भ श्याम एवं मीरा मंदिर मौजूद है। परिसर में प्रवेश करते ही सामने गरुड़ की प्रतिमा है जिसके बिलकुल सामने कुम्भ श्याम मंदिर मौजूद है।
इस मंदिर के बगल में एक छोटा मंदिर है जिसे मीरा मंदिर के नाम से जाना जाता है। मीरा मंदिर के सामने छतरी बनी हुई है जिसमे इनके गुरु संत रवीदास या रैदास (Raidas) की चरण पादुकाएँ स्थित है।
बताया जाता है कि वर्तमान कुम्भ श्याम मंदिर पहले वराह मंदिर था एवं वर्तमान मीरा मंदिर पहले कुम्भ श्याम मंदिर था। कालांतर में मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा इनकी मूर्तियों को खंडित कर दिया गया।
बाद में मीरा बाई द्वारा कुम्भ श्याम मंदिर में कृष्ण की पूजा करने के कारण कुम्भ श्याम मंदिर को मीरा मंदिर के नाम से जाना जाने लगा एवं वराह मंदिर में कुम्भ श्याम की नई मूर्ति स्थापित किए जाने के कारण इसे कुम्भ श्याम मंदिर के नाम से जाना जाने लगा।
चित्तौड़गढ़ किले में जटा शंकर महादेव मंदिर और तेल घी की बावड़ी, Chittorgarh Fort Me Jata Shankar Mahadev Mandir Aur Tel Ghee Ki Baori
मीरा मंदिर के पीछे की तरफ परकोटे के पास जटा शंकर महादेव का मंदिर मौजूद है। इस मंदिर के एक तरफ तेल एवं दूसरी तरफ घी की बावड़ी मौजूद है।
सार्वजनिक भोज के निर्माण के साथ-साथ धार्मिक आयोजनों के समय इन दोनों बावड़ियों में तेल और घी रखा जाता था।
चित्तौड़गढ़ किले में विजय स्तम्भ, Chittorgarh Fort Me Vijay Stambh
यहाँ से आगे जाने पर दाँई तरफ विजय स्तम्भ आता है। महाराणा कुम्भा ने इसे 1448 ईस्वी में मालवा के सुलतान महमूद शाह खिलजी को परास्त करने के उपरांत अपने इष्टदेव विष्णु के निमित्त बनवाया था।
विजय स्तम्भ नौ मंजिला है जिसकी ऊँचाई 37।19 मीटर है। सबसे ऊपर की मंजिल तक पहुँचने के लिए अन्दर सीढियाँ बनी हुई है।
यह स्तम्भ चारों तरफ से हिन्दू देवी देवताओं की इतनी अधिक मूर्तियों से आच्छादित है कि इसे मूर्तियों का संग्रहालय भी कहा जाता है।
चित्तौड़गढ़ किले में जौहर स्थल या महासती स्थल, Chittorgarh Fort Me Jauhar Sthal Ya Mahasati Sthal
विजय स्तम्भ के बगल में महासती स्थल मौजूद है। इसमें प्रवेश के लिए उत्तर और पूर्व दिशा में दो द्वार बने हुए हैं। पूर्वी द्वार को महासती द्वार कहते हैं जो सीधा महासती स्थल की तरफ खुलता है।
महासती स्थल को ही जौहर स्थल माना जाता है। प्राचीन समय में यह एक कुंड की शक्ल में था जिसमे चन्दन की लकड़ियाँ जलाकर राजपूत महिलाओं द्वारा जौहर के रूप में अपना बलिदान दिया जाता था।
अब इस कुंड को भरकर इसे एक बगीचे की शक्ल दे दी गई है। इस स्थल के सम्बन्ध में जैसे ही पता चलता है उन वीरांगनाओं के प्रति मन श्रद्धा से भर उठता है।
पूर्वी द्वार से बाँई तरफ आगे गौमुख कुंड की तरफ जाया जाता है एवं सामने की तरफ का रास्ता समाधीश्वर महादेव के प्राचीन मंदिर की तरफ जाता है।
परिसर में मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा कई खंडित मंदिरों के साथ-साथ तोड़ी गई मूर्तियों के अवशेष बहुतायत में बिखरे पड़े हुए है। ये अवशेष इन आक्रान्ताओं की धार्मिक कट्टरता और बेरहमी की कहानी बयान कर रहे हैं।
चित्तौड़गढ़ किले में गौमुख कुंड, Chittorgarh Fort Me Gaumukh Kund
गौमुख कुंड की तरफ एक द्वार से जाने पर कुछ मंदिरों के जीर्ण शीर्ण अवशेष नजर आते हैं। नीचे वो गुप्त रास्ता भी है जो इस गौमुख कुंड को कुम्भा महल से जोड़ता है।
गौमुख कुंड में गाय की मुखाकृति में से बारह महीने पानी बहकर शिवलिंग पर गिरता रहता है। गौमुख कुंड को बड़ा पवित्र माना जाता है जिसका तीर्थ स्थल के रूप में धार्मिक महत्व है। ऊपर से यहाँ का नजारा बड़ा मनोरम है।
कुंड के उत्तरी भाग से सीढियाँ चढ़कर सीधा समाधीश्वर महादेव के मंदिर में पहुँचा जा सकता है।
चित्तौड़गढ़ किले में समाधीश्वर महादेव मंदिर, Chittorgarh Fort Me Samadhishwar Mahadev Mandir
समाधीश्वर महादेव के मंदिर और महासती स्थल तक पहुँचने के लिए महासती स्थल के उत्तर में एक द्वार और बना हुआ है। इस द्वार को समाधीश्वर महादेव के मंदिर में जाने के साथ-साथ गौमुख कुंड तक जाने के लिए भी काम में लिया जाता होगा।
समाधीश्वर महादेव का मंदिर काफी भव्य है जिसे त्रिभुवन नारायण का शिवालय या भोज का मंदिर भी कहा जाता है। इसे मालवा के राजा भोज ने ग्यारहवीं सदी में बनवाया था।
महाराणा मोकल द्वारा इसका जीर्णोद्धार करवाए जाने के कारण इसे मोकलजी के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में शिवलिंग के पीछे दीवार पर शिव की विशाल त्रिमूर्ति बनी हुई है जिसकी भव्यता देखते ही बनती है।
चित्तौड़गढ़ किले में हाथी कुंड और खातन रानी की बावड़ी, Chittorgarh Fort Me Hathi Kund Aur Khatan Rani Ki Baori
महासती स्थल से दक्षिण में आगे जाने पर दाँई तरफ हाथी कुंड एवं बाँई तरफ खातन रानी की बावड़ी मौजूद है। हाथी कुंड को हाथियों के नहलाने के काम में लिया जाता था।
चित्तौड़गढ़ किले में जयमल पत्ता की हवेली और कंकाली माता मंदिर, Chittorgarh Fort Me Jaimal Patta Ki Haveli Aur Kankali Mata Mandir
आगे दाँई तरफ जयमल और पत्ता की हवेली मौजूद है। ये वही जयमल और पत्ता है जिन्होंने अकबर की सेना से युद्ध करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया था और जिनके स्मारक चित्तौड़ के द्वारों के पास मौजूद है।
जब 1567-68 में अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था तो पत्ता की पत्नी फूलकँवर ने कई राजपूत महिलाओं के साथ इसी हवेली में जौहर किया था।
वर्तमान में इस हवेली में कंकाली माता का मंदिर स्थापित है जिसके कारण यह हवेली एक मंदिर में बदल गई है।
चित्तौड़गढ़ किले में जयमल पत्ता तालाब और सूरज कुंड, Chittorgarh Fort Me Jaimal Patta Talab Aur Suraj Kund
हवेली के सामने ही एक बड़ा सा तालाब है जिसे जयमल पत्ता का तालाब कहा जाता है। इस तालाब के बगल में एक बड़ा कुंड बना हुआ है जिसे सूरज कुंड कहते हैं। जयमल पत्ता तालाब और सूरज कुंड को एक सड़क दो भागों में विभाजित करती है।
इसे एक पवित्र कुंड माना जाता है और मान्यता है कि महाराणा को युद्ध में सहायता के लिए इसमें से सफेद घोड़े पर सवार एक सशस्त्र योद्धा प्रतिदिन निकलता था।
चित्तौड़गढ़ किले में कालिका माता मंदिर, Chittorgarh Fort Me Kalka Mata Mandir
जयमल पत्ता की हवेली के आगे एक ऊँची जगती पर कालिका माता का मंदिर स्थित है। मूल रूप में इसे सूर्य मंदिर माना जाता है बाद में मुस्लिम आक्रमण के समय मूर्तियाँ खंडित किये जाने के कारण इसमें कालिका माता की मूर्ति स्थापित की गई जिसकी वजह से इसे कालिका माता के मंदिर के रूप में पहचाना जाता है।
चित्तौड़गढ़ किले में महारानी पद्मिनी का महल और जल महल, Chittorgarh Fort Me Rani Padmini Ka Mahal Aur Jal Mahal
कालिका माता के मंदिर के आगे बाँई तरफ पानी से घिरा हुआ महारानी पद्मिनी का महल बना हुआ है। इस महल के दक्षिणी भाग में सरोवर में उतरने के लिए सीढियाँ बनी हुई हैं एवं ताखों में मूर्तियाँ स्थापित हैं।
इसी दक्षिणी भाग में चारों तरफ पानी से घिरा हुआ तीन मंजिला मेहराब युक्त एक दूसरा महल बना हुआ है जिसे जल महल के नाम से जाना जाता है। जल महल के तालाब को पद्मिनी तालाब या पद्मिनी सरोवर के नाम से जाना जाता है।
कहा जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने इसी जलमहल की सीढ़ियों के पानी में बने रानी पद्मिनी के चेहरे के प्रतिबिम्ब को पद्मिनी महल के शीशे में देखा था।
चित्तौड़गढ़ किले में खातन रानी का महल, Chittorgarh Fort Me Khatan Rani Ka Mahal
पद्मिनी महल की दक्षिण दिशा में सरोवर के किनारे पर खातन रानी के महल के खंडहर मौजूद हैं। खातन रानी को महाराणा क्षेत्र सिंह की उपपत्नी बताया जाता है। इसी रानी के चाचा और मेरा नामक दो पुत्रों ने महाराणा मोकल की हत्या की थी।
चित्तौड़गढ़ किले में गोरा बादल की घुमरें और हवेलियाँ, Chittorgarh Fort Me Gora Badal Ki Guhumre Aur Haveliya
पद्मिनी महल के आगे दाँई तरफ रामपुर भानपुर हवेली है जिसके आगे दो गुम्बंदनुमा इमारते हैं जिन्हें गोरा बादल का महल या गोरा बादल की घुमरें कहा जाता है।
यहीं पास में ही महराणा मोकल के मामा राव रणमल की हवेली के खंडहर मौजूद हैं। राव रणमल की बहन हँसाबाई का विवाह महाराणा लाखा से हुआ था।
इस क्षेत्र में इन हवेलियों के अतिरिक्त बूंदी और सलुम्बर की हवेलियाँ, बीका हवेली सहित कई अज्ञात हवेलियों के खँडहर भी मौजूद है।
चित्तौड़गढ़ किले में नाग चंद्रेश्वर मंदिर और बादशाह की भाक्सी, Chittorgarh Fort Me Nag Chandreshwar Mandir Aur Badshah Ki Bhaksi
इसके आगे प्राचीन नाग चंद्रेश्वर मंदिर स्थित है। इस मंदिर के सामने की तरफ चारदीवारी से घिरा बादशाह की भाक्सी नामक स्थान मौजूद है जिसमे महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी को बंदी बनाकर रखा था।
चित्तौड़गढ़ किले में चित्रांगद तालाब और घोड़े दौड़ाने का चौगान, Chittorgarh Fort Me Chitrangad talab Aur Ghode Daudane Ka Chaugan
इसके कुछ आगे चित्रांगद मौर्य द्वारा निर्मित चत्रंग तालाब या चित्रांगद तालाब मौजूद है। इस तालाब के पीछे खातन रानी के महलों तक एक विशाल मैदान है जिसे पुराना चौगान या घोड़े दौड़ाने का चौगान कहा जाता है। यहाँ पर सैन्य गतिविधियों को अंजाम दिया जाता था।
चित्तौड़गढ़ किले में रंग रसिया की छतरियाँ और राज टीला, Chittorgarh Fort Me Rang Rasiya Ki Chhatriya Aur Raj Teela
चत्रंग तालाब के निकट उत्तरी पूर्वी दिशा में दो छतरियाँ बनी हुई है जिन्हें रंग रसिया की छतरियाँ कहा जाता है। तालाब की पूर्वी दिशा में राज टीला नामक ऊँचा स्थान है जहाँ पर पहले मौर्य शासक मान के महल बताए जाते हैं।
ऐसा भी माना जाता है कि राज टीला पर ही राजाओं का राज्याभिषेक हुआ करता था। राज टीले तक मृगवन के मुख्य गेट से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
चित्तौड़गढ़ किले में चित्तौड़ी बुर्ज और मोहर मगरी, Chittorgarh Fort Me Chittodi Burj Aur Mohar Magari
चत्रंग तालाब से आगे अंतिम दक्षिणी बुर्ज को चित्तौड़ी बुर्ज कहा जाता है। इस बुर्ज के नीचे की मिट्टी के टीलेनुमा कृत्रिम पहाड़ी है जिसे मोहर मगरी के नाम से जाना जाता है।
कहा जाता है जब अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था तब इस स्थान पर मोर्चाबंदी के लिए इसे मजदूरों को लगाकर ऊँचा उठवाया था। इस कार्य के लिए मजदूरों को एक मिट्टी की टोकरी के लिए एक मोहर दी गई थी जिस वजह से इसे मोहर मगरी कहा जाता है।
चित्तौड़गढ़ किले में बीका (भीखा) खोह, Chittorgarh Fort Me Bika (Bhikha) Khoh
चत्रंग तालाब के समीप ही बीका (भीखा) खोह नामक प्रसिद्ध बुर्ज है जिसका एक हिस्सा गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के आक्रमण के समय सुरंग बनाकर विस्फोट से उड़ा दिया गया था। इस बुर्ज की रक्षा में मौजूद बूंदी के अर्जुन हाड़ा ने सैंकड़ों वीर सैनिकों सहित अपने प्राण बलिदान कर दिए थे।
चित्तौड़गढ़ किले में मृगवन फॉरेस्ट सैंक्चुअरी, Chittorgarh Fort Me Mrigvan Forest Sanctuary
चत्रंग तालाब से आगे चित्तौड़ी बुर्ज तक का हिस्सा मृगवन फॉरेस्ट सैंक्चुअरी कहलाता है जहाँ पर प्रवेश बंद है।
मृगवन में विभिन्न प्रकार के वन्य जीवों के निवास स्थान के अतिरिक्त कई ऐतिहासिक स्थल भी मौजूद हैं जिनमें मोहर मगरी, चित्तौडी बुर्ज, बीका (भीखा) खोह बुर्ज, माल गोदाम, बैठी बारी, मनसा महादेव आदि प्रमुख है।
चित्तौड़गढ़ किले में तेलंग की गुमटी, Chittorgarh Fort Me Telang Ki Gumti
मृगवन से सड़क घूमकर उत्तर दिशा की तरफ जाती है जिस पर कुछ आगे जाने पर बाँई तरफ तेलंग की गुमटी के अवशेष मौजूद हैं।
चित्तौड़गढ़ के युद्ध का मैदान, Chittorgarh Ke Yuddh Ka Maidan
इस गुमटी की पूर्वी दिशा में देखने पर पहाड़ के नीचे घना जंगल और सपाट मैदान दिखाई देता है। प्राचीन काल में संभवतः यह युद्ध का मैदान रहा होगा।
चित्तौड़गढ़ किले में भीमलत और भीम गोडी कुंड, Chittorgarh Fort Me Bhimlat Aur Bhim Godi Kund
यहाँ से आगे जाने पर बाँई तरफ एक बड़ा कुंड बना हुआ है जिसके एक छोर पर शिव मंदिर बना हुआ है। इस कुंड को भीमलत कुंड कहा जाता है और इसके निर्माण को महाबली भीम की लात से बना हुआ माना जाता है।
यहाँ से आगे बाँई तरफ एक छोटा तालाब है जिसे भीम के घुटने से बना हुआ माना जाता है और भीम गोडी कुंड कहा जाता है।
भीमलत कुंड और भीम गोडी पर कालिका माता के मंदिर के सामने जयमल पत्ता तालाब और सूरज कुंड के बीच में से आने वाली सड़क से भी आया जा सकता है।
चित्तौड़गढ़ किले में अद्भुद जी का मंदिर, Chittorgarh Fort Me Adbhud Ji Mandir
इससे कुछ आगे बाँई तरफ अद्भुद जी का भव्य मंदिर मौजूद हैं जिसका निर्माण पंद्रहवीं शताब्दी में हुआ था। यहाँ पर भी समाधीश्वर महादेव मंदिर की तरह शिवलिंग के पीछे दीवार में शिव की विशाल त्रिमुखी मूर्ति मौजूद है। मंदिर की शिल्प और वास्तु कला को देखने पर यह मंदिर अद्भुद ही प्रतीत होता है।
चित्तौड़गढ़ किले में सूरज पोल और चुंडा पोल, Chittorgarh Fort Me Suraj Pol Aur Chunda Pol
इसके आगे दाँई तरफ पूर्व दिशा में किले से नीचे जाने के लिए एक विशाल द्वार बना हुआ है जिसे सूरज पोल कहा जाता है। यहाँ से किले के बाहरी पूर्वी भाग का विहंगम दृश्य नजर आता है।
इस दरवाजे के आगे नीचे जाने के लिए एक और दरवाजा बना हुआ है जिसे संभवतः चुंडा पोल के नाम से जाना जाता है।
चित्तौड़गढ़ किले में सांईदास का स्मारक, Chittorgarh Fort Me Saidas Ka Smarak
सूरज पोल दरवाजे के पास दो स्मारक बने हुए हैं जिनमे से एक स्मारक सलूम्बर के चुण्डावत सरदार सांईदास का है। इन्होंने 1567-68 ईस्वी में अकबर की सेना से लड़ते हुए इस स्थान पर वीरगति पाई थी।
चित्तौड़गढ़ किले में नीलकंठ महादेव का मंदिर, Chittorgarh Fort Me Neelkanth Mahadev Ka Mandir
यहाँ से आगे बाँई तरफ नीलकंठ महादेव का प्राचीन मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर में भगवान शिव का विशाल शिवलिंग स्थित है जिन्हें महाराणा कुम्भा का इष्टदेव माना जाता है।
इस स्थान को पांडवों की तपोभूमि भी माना जाता है। मंदिर के बाहर नीचे की तरफ कुछ प्राचीन छतरियाँ बनी हुई हैं।
चित्तौड़गढ़ किले में कीर्ति स्तम्भ, Chittorgarh Fort Me Kirti Stambh
यहाँ से आगे जाने पर दाँई तरफ महावीर स्वामी को समर्पित भव्य जैन मंदिर है एवं इसके निकट ही प्रसिद्ध कीर्ति स्तम्भ मौजूद हैं।
भगवान आदिनाथ को समर्पित यह छः मंजिला स्तम्भ 1301 ईस्वी में बना था। इसकी ऊँचाई 24।5 मीटर है। सबसे उपरी मंजिल तक पहुँचने के लिए अन्दर सीढियाँ बनी हुई है। इसके चारों तरफ जैन तीर्थकरों की मूर्तियाँ बनी हुई हैं।
चित्तौड़गढ़ किले में बोलिया तालाब, Chittorgarh Fort Me Bolia Talab
यहाँ से थोडा आगे बाँई तरफ बोलिया तालाब बना हुआ जो कि प्राचीन समय में पानी का एक प्रमुख स्त्रोत रहा होगा।
चित्तौड़गढ़ किले में लाखोटा की बारी, Chittorgarh Fort Me Lakhota Bari
यहाँ से आगे जाने पर पहाड़ी के उत्तर पूर्वी छोर पर दुर्ग से नीचे जाने के लिए एक छोटा सा दरवाजा बना हुआ है जिसे लाखोटा की बारी कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इसी दरवाजे के पास अकबर की संग्रामी बन्दूक द्वारा दागी गई गोली से जयमल लंगड़ा हो गया था।
चित्तौड़गढ़ किले में रतन सिंह का महल और रत्नेश्वर तालाब, Chittorgarh Fort Me Ratan Singh Mahal Aur Ratneshwar Talab
यहाँ से सड़क घूमकर दक्षिण दिशा की तरफ मुडती है जिस पर आगे बढ़ने पर दाँई तरफ उत्तर दिशा में महाराणा रतन सिंह का महल मौजूद है।
इसके सामने कुंड रुपी बड़ा तालाब है जिसे रत्नेश्वर तालाब के नाम से जाना जाता है। इस तालाब को रतन सिंह ने खुद बनवाया था। तालाब के किनारे पर रत्नेश्वर महादेव का मंदिर बना हुआ है।
यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन महराणा रतन सिंह का महारानी पद्मावती से कोई सम्बन्ध नहीं है।
महारानी पद्मावती और उनके पति रावल रतन सिंह का जीवन काल इनके कार्यकाल की दो सदियों से भी अधिक समय पूर्व ही समाप्त हो गया था।
रतन सिंह के महल बनवाने से पहले इस स्थान पर डूंगरपुर का आहाड़ा सरदार हिंगलू यहाँ रहा करता था जिसकी वजह से इन्हें हिंगलू आहाड़ा के महल के रूप में भी जाना जाता है।
चित्तौड़गढ़ किले में कुकड़ेश्वर महादेव मंदिर और कुकड़ेश्वर कुंड, Chittorgarh Fort Me Kukdeshwar Mahadev Mandir Aur Kund
रतन सिंह के महल के पीछे से दक्षिण दिशा में रामपोल दरवाजे की तरफ जाने पर बाँई तरफ या रामपोल दरवाजे से प्रवेश करते ही बाँई तरफ उत्तर में आगे आने पर दाहिनी तरफ कुकड़ेश्वर कुंड मौजूद है।
इस कुंड के ऊपरी भाग में कुकड़ेश्वर महादेव का मंदिर मौजूद है। किवदंती के अनुसार ये दोनों महाबली भीम से जुड़े हुए निर्माण हैं।
कई इतिहासकारों के अनुसार आठवीं सदी में चित्तौड़ पर राजा कुकड़ेश्वर का शासन था और इसी ने ही इस कुंड और शिवालय का निर्माण करवाया था।
चित्तौड़गढ़ किले में अन्नपूर्णा माता मंदिर,बाणमाता का मंदिर, राघवदेव का स्मारक, Chittorgarh Fort Me Annpoorna Mata Mandir, Banmata Mandir, Raghavdev Ka Smarak
निकट ही अन्नपूर्णा माता मंदिर परिसर स्थित है जिसमे अन्नपूर्णा माता का मंदिर, बाणमाता का मंदिर, महाराणा लाखा के पुत्र राघवदेव का स्मारक है।
अन्नपूर्णा माता का मंदिर पहले महालक्ष्मी मंदिर था जिसका निर्माण गजलक्ष्मी मंदिर के रूप में मौर्य युग में हुआ था।
कालांतर में महाराणा हम्मीर ने इसका जीर्णोद्धार करवाकर अन्नपूर्णा नाम से पुनर्स्थापित किया। साथ ही पास में जलकुंड का निर्माण भी करवाया जिसे अन्नपूर्णा कुंड के नाम से जाना जाता है।
इस वजह से लगभग 1326 ईस्वी से मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश द्वारा अन्नपूर्णा माता की पूजा अपनी इष्टदेवी के रूप में की जा रही है जिसे हम राजनगर में स्थित राजसिंह के महल में अन्नपूर्णा माता के मंदिर को देखकर समझ सकते हैं।
मंदिर परिसर में ही बाणमाता का मंदिर स्थित है। इसके निकट ही महाराणा लाखा के छोटे पुत्र और चुंडाजी के अनुज राघवदेव की याद में उनका स्मारक बना हुआ है।
यहाँ से निकट ही रामपोल दरवाजा स्थित है। जैसे इस दरवाजे से किले में प्रवेश किया था वैसे ही किले के नीचे जा सकते हैं।
चित्तौड़गढ़ कैसे जाएँ?, Chittorgarh Kaise Jaye?
चित्तौड़गढ़ का किला चित्तौड़गढ़ शहर के पास में ही एक बड़ी पहाड़ी पर स्थित है। चित्तौड़गढ़ शहर एक जिला मुख्यालय है जिसका पिन कोड 312001 है। चित्तौड़गढ़ शहर उदयपुर, जयपुर, अजमेर आदि बड़े शहरों से बस और ट्रेन द्वारा जुड़ा हुआ है।
चित्तौड़गढ़ से नजदीकी एयरपोर्ट महाराणा प्रताप एयरपोर्ट है जो चित्तौड़गढ़ से उदयपुर जाने वाले नैशनल हाइवै पर उदयपुर से 20 किलोमीटर पहले डबोक नामक जगह पर बना हुआ है।
उदयपुर से चित्तौड़गढ़ कैसे जाएँ, Udaipur Se Chittorgarh Kaise Jaye?
उदयपुर और चित्तौड़गढ़, आपस में रोड़ और ट्रेन दोनों से अच्छी तरह जुड़े हुए हैं। उदयपुर से चित्तौड़गढ़ की दूरी लगभग 110 किलोमीटर है।
बस द्वारा उदयपुर से चित्तौड़ जाने के लिए नैशनल हाइवै द्वारा देबारी, डबोक, मेनार, मंगलवाड, भादसोडा, रीठोला होते हुए जा सकते हैं। ट्रेन द्वारा उदयपुर से चित्तौड़ जाने के लिए मावली, कापासन होते हुए जा सकते हैं।
जयपुर से चित्तौड़गढ़ कैसे जाएँ, Jaipur Se Chittorgarh Kaise Jaye?
जयपुर और चित्तौड़गढ़, आपस में रोड़ और ट्रेन दोनों से अच्छी तरह जुड़े हुए हैं। जयपुर से चित्तौड़गढ़ की दूरी लगभग 350 किलोमीटर है।
बस द्वारा जयपुर से चित्तौड़ जाने के लिए नैशनल हाइवै द्वारा किशनगढ़, नसीराबाद, बिजयनगर, मांडल, भीलवाड़ा होते हुए जा सकते हैं। ट्रेन द्वारा जयपुर से चित्तौड़ जाने के लिए अजमेर, बिजयनगर, भीलवाड़ा होते हुए जा सकते हैं।
चित्तौड़गढ़ के किले की मैप लोकेशन, Chittorgarh Ke Kile Ki Map Location
चित्तौड़गढ़ के किले की फोटो, Chittorgarh Kile Ki Photos
लेखक
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}