यहाँ पर है दुनिया की सबसे बड़ी पगड़ी - Bagore Ki Haveli Udaipur

यहाँ पर है दुनिया की सबसे बड़ी पगड़ी - Bagore Ki Haveli Udaipur, इसमें उदयपुर की प्रसिद्ध बागोर की हवेली की जानकारी है जो अब एक म्यूजियम के काम आती है।


{tocify} $title={Table of Contents}

उदयपुर में झीलों, महलों और मंदिरों के साथ-साथ यहाँ की हवेलियाँ भी काफी प्रसिद्ध है। इन हवेलियों में बागोर की हवेली की एक अलग ही पहचान है।

लगभग ढाई शताब्दी पुरानी यह हवेली, स्थापत्य कला के साथ-साथ अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने के लिए भी जानी जाती है। इस हवेली में 138 कमरे, झरोखे, सजे हुए मेहराब, गलियारे, चौक एवं लम्बे चौड़े बरामदे बने हुए हैं।

वर्तमान में यह हवेली पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के अंतर्गत आती है और अब इसने एक म्यूजियम का रूप ले लिया है। म्यूजियम के साथ-साथ शाम के समय इसमें कई प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं।

बागोर की हवेली जगदीश मंदिर के पीछे गणगौर घाट के बगल में बनी हुई है। उदयपुर रेलवे स्टेशन से बागोर की हवेली की दूरी लगभग साढ़े तीन किलोमीटर है।

हवेली के गेट पर टिकेट विंडो से टिकट खरीद कर हवेली में प्रवेश करना होता है। सामने एक बड़ा चौक बना हुआ है जिसमे सामने की तरफ दो मंजिला कमल के आकार में झरोखों और फव्वारों के रूप में पत्थर की सुन्दर नक्काशी दिखाई देती है।

इस मुख्य चौक के एक तरफ शाही गाथा और दूसरी तरफ हथियार संग्रहालय और राजसी शादी नामक सेक्शन बने हुए हैं। कमल के आकार में झरोखों और फव्वारों वाले पोर्शन की हवेली में एक तरफ से एंट्री और दूसरी तरफ से एग्जिट बना हुआ है।

सीढ़ियों से ऊपर जाने पर लेफ्ट साइड में पहली मंजिल पर एक चौक बना हुआ है जिसके बीच में नीम का पेड़ लगा हुआ है। इसे नीम चौक कहा जाता है।

इस चौक में झरोखे बने हुए हैं जिनमें पत्थर की सुन्दर और बारीक नक्काशी की हुई है। ये वो ही झरोखे हैं जो हवेली में एंट्री के समय कमल की शेप में दिखाई देते हैं।

नीम चौक में कुछ पेंटिंग्स और एक फव्वारा बना हुआ है। शाम के समय यहाँ का माहौल काफी सांस्कृतिक हो जाता है क्योंकि शाम के समय इसी नीम चौक में धरोहर फोक डांस शो का आयोजन होता है।

इस डांस शो में चरी नृत्य, भवाई नृत्य तेराताली नृत्य, गोरबंद नृत्य, घूमर नृत्य, कठपुतली नृत्य के साथ जनजातियों के सांस्कृतिक नृत्य प्रस्तुत किये जाते हैं।

नीम चौक से आगे दूसरी तरफ जाने पर म्यूजियम शुरू होता है जिसमें सबसे पहले कठपुतली सेक्शन शुरू होता है। इसे कठपुतली संसार का नाम दिया गया है।

कठपुतली सेक्शन काफी लम्बा चौड़ा हॉल है जिसमें हजारों कि संख्या में छोटी बड़ी, रंग बिरंगी कठपुतलियाँ मौजूद है। इन कठपुतलियों में राजा रानी के साथ-साथ राजदरबार के सदस्य, नर्तकियाँ और हाथी घोड़े शामिल हैं।

बहुत सी कठपुतलियाँ तो इतनी सजीव दिखाई देती है कि लगता ही नहीं है कि ये कठपुतलियाँ है, ऐसा लगता है कि जैसे ये सभी जीवित हैं और अभी बोल उठेंगी। इन कठपुतलियों की ख़ास बात यह है कि ये सभी कठपुतलियाँ हाथ से बनी हुई हैं।

यहाँ से ऊपर की मंजिल पर जाने पर हवेली का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। इसके साथ ही गणगौर घाट, अमराई घाट, लेक पैलेस और दूर-दूर तक पीछोला झील दिखाई देती है।


यहाँ से आगे म्यूजियम का दूसरा भाग आता है जिसमे एक दो मंजिला हवेली है। इस हवेली के बीच में एक चौक है जिसे तुलसी चौक के नाम से जाना जाता है।

चौक की एक दीवार पर पत्थर के दो झरोखे बने हुए हैं। इन झरोखों पर की गई कारीगरी शिल्प कला का नायाब उदाहरण है।

यह सेक्शन रानियों के साथ राज परिवार की अन्य महिलाओं के निवास के काम आता था। इसे जनाना महल भी कहा जा सकता है। हवेली के गलियारे में जगह-जगह सुन्दर पेंटिंग्स लगी हुई है।

हवेली के इस भाग में बैठक कक्ष, शयन कक्ष, गणगौर कक्ष, श्रृंगार कक्ष, संगीत कक्ष, आमोद प्रमोद कक्ष, पूजा घर, भोजन शाला, स्नानागार इत्यादि में राजसी जीवन शैली, वास्तु शिल्प तथा सांस्कृतिक मान्यताओं को भली भाँति दर्शाया गया है।

इस हवेली में राजा रजवाड़े के जमाने के शतरंज, चौपड़, सांप सीढ़ी और गंजीफे आज भी मौजूद हैं, जिसका उपयोग राजपरिवार की महिलाएं खेल, व्यायाम तथा मनोरंजन के लिए किया करती थीं। इन कक्षों में हर जगह भव्यता ही भव्यता झलक रही है।

यहाँ पर हुक्का, साड़ियाँ, बड़े बर्तन, सोने के लिए नर्म बिस्तर, पूजा की सामग्री और लकड़ी का बड़ा संदूक मौजूद है। एक कमरे में देवताओं की पेंटिंग्स लगी हुई है। एक कक्ष में श्री रामायण एवं श्री कृष्ण की कावड रखी हुई है।

हवेली में कुछ कक्षों में काँच का कार्य यानी पेट्राड्यूरा (Pietra Dura) भी किया गया है। यह कार्य भी पूरी राजसी भव्यता लिए हुए है। शिल्प कला की बात करें तो पत्त्थर की जालियों में की गई कारीगरी उल्लेखनीय है।

ग्राउंड फ्लोर पर एक कक्ष में विभिन्न प्रकार की छोटी बड़ी पगड़ियाँ रखी हुई है। ये पगड़ियाँ राजस्थान के विभिन्न भागों के साथ-साथ अलग-अलग राज्यों से भी ताल्लुक रखती है।

इन पगड़ियों में से एक पगड़ी को दुनिया की सबसे बड़ी पगड़ी बताया जाता है। इस पगड़ी का वजन 30 किलो बताया जाता है। दूसरा कक्ष संगीत से सम्बंधित है। इस कक्ष में विभिन्न प्रकार के वाद्य यन्त्र रखे हुए हैं जिनमें सितार, सारंगी, वीणा आदि प्रमुख है।

यहाँ से आगे कक्ष में पेंटिंग्स लगी हुई है और दीवारों पर भित्ति चित्र बने हुए हैं। यही पर थोडा आगे देवालय बना हुआ है जिसमें ठाकुर जी श्री प्रताप नारायण विराजमान है। पास में ही माताजी का मंदिर भी है।

हवेली में स्वर्ण तथा अन्य बेशकीमती सामान को रखने के लिए अलग से तहखाने बने हुए थे। यहाँ से आगे मुख्य चौक में बाहर निकलने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई है।

मुख्य चौक के शाही गाथा सेक्शन में राजस्थान की कई रियासतों के प्रमुखों के साथ-साथ मेवाड़ के कई प्रमुख महाराणाओं की मूर्तियाँ बनी हुई है।

हथियार संग्रहालय में विभिन्न प्रकार की ढाल-तलवारें, छुरे, भाले, फरसे, तीर-कमान, कटारें, बख्तरबंद आदि के साथ-साथ बागौर ठिकाने से गोद गए तत्कालीन महाराणा सरदार सिंह, शंभूसिंह, स्वरूपसिंह व सज्जन सिंह की फोटो भी लगी हुई है।

राजसी शादी नामक सेक्शन में राजपरिवार की शादियों के तरीके एवं रीति रिवाजों और रस्मों को विस्तार से दर्शाया गया है। इन्हें दर्शाने के लिए कई प्रकार के मॉडल बनाये गए हैं। यह हिस्सा भी जनाना महल का ही एक भाग प्रतीत होता है।

बागोर की हवेली के कुछ हिस्से पर्यटकों को नहीं दिखाए जाते हैं जिनमें दीवान-ऐ-ख़ास, दरीखाना और काँच महल शामिल है। ये हिस्से रेस्ट्रिक्टेड एरिया हैं जहाँ पर्यटक नहीं जा सकते हैं।

अगर बागोर की हवेली के निर्माण की बात की जाये तो इस हवेली का निर्माण मेवाड़ के तत्कालीन प्रधानमंत्री अमर चंद बडवा ने 1751 से 1778 के दौरान करवाया गया। प्रधानमंत्री अमरचंद बड़वा राजपूत ना होकर एक उच्च कुलीन सनाढ्य ब्राह्मण थे।

अमर चंद बडवा ने महाराणा प्रताप द्वितीय, अरीसिंह, राज सिंह द्वितीय और हमीर सिंह के शासन काल में प्रधानमंत्री पद पर कार्य किया था।

कुछ इतिहासकार यह भी दावा करते हैं कि इस हवेली का निर्माण महाराणा संग्राम सिंह ने अपने पुत्र नाथ सिंह के लिए कराया था।

अमर चंद बडवा के निधन के पश्चात यह हवेली महाराणा मेवाड़ के छोटे भाई महाराज नाथ सिंह के नियंत्रण में आई।

सन 1828 से 1884 के दौरान बागोर ठिकाने से महाराणा सरदार सिंह, स्वरुप सिंह, शम्भू सिंह एवं सज्जन सिंह गोद लेकर मेवाड़ के महाराणा बनाये गए। महाराज नाथ सिंह के वारिस महाराज भीम सिंह ने पिछोला झील के किनारे गणगौर घाट का निर्माण करवाया।

महाराज शक्ति सिंह ने सन 1878 में गणगौर घाट के त्रिपोलिया (नक्काशीदार तीन दरवाजों) पर काँच की कारीगरी से सज्जित महल का निर्माण करवाया।

सन 1930 में यह हवेली मेवाड़ राज्य द्वारा अधिग्रहीत की गई तथा इसे राज्य का अतिथि गृह बनाया गया। स्वतंत्रता के पश्चात राजस्थान सरकार ने राज्य कर्मचारियों के आवास के लिए इस हवेली का प्रयोग किया।

सन 1986 में यह हवेली जर्जर हालत में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र को उसके कार्यालय के लिए हस्तांतरित की गई।

पाँच वर्ष के कठिन जीर्णोद्धार कार्य के बाद, इस हवेली को एक संग्रहालय का रूप दिया गया। हवेली में राजसी जीवन शैली, वास्तु शिल्प तथा सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुरूप इसके पुरातन स्वरुप को संरक्षित किया गया है।

बागोर की हवेली ऐतिहासिक एवं प्राचीन इमारत के पुनर्निर्माण एवं संरक्षण का एक ज्वलंत उदाहरण कही जा सकती है।

बागोर की हवेली के निकट दर्शनीय स्थलों में गणगौर घाट, अमराई घाट, जगदीश मंदिर, सिटी पैलेस आदि प्रमुख है।

बागोर की हवेली की मैप लोकेशन, Bagore Ki Haveli Ki Map Location



बागोर की हवेली की फोटो, Bagore Ki Haveli Ki Photos


Bagore Ki Haveli Udaipur

लेखक
रमेश शर्मा {एम फार्म, एमएससी (कंप्यूटर साइंस), पीजीडीसीए, एमए (इतिहास), सीएचएमएस}
GoJTR.com

GoJTR - Guide of Journey To Rajasthan provides information related to travel and tourism, arts and culture, religious, festivals, personalities, etc. It tells about the various travel destinations of Rajasthan and their historical and cultural importance. It discovers the hidden aspects of Indian historical background and heritages. These heritages are Forts, Castles, Fortresses, Cenotaphs or Chhatris, Kunds, Step Wells or Baoris, Tombs, Temples and different types of monuments, related to Indian historical glory.

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने